आपदा

पिछले चार दशकों में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की संख्या में हुई भारी वृद्धि: शोध

1980 के बाद से पूर्वी प्रशांत, दक्षिणी हिंद महासागर और दक्षिण प्रशांत महासागर की घाटियों में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति में गिरावट आई है

Dayanidhi

उष्णकटिबंधीय चक्रवात (टीसी) पृथ्वी पर सबसे विनाशकारी, चरम मौसम की घटनाओं में से एक हैं। चक्रवात लोगों के जीवन और उनकी संपत्ति, स्थानीय बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाते हैं, जिसके बाद भारी आर्थिक नुकसान होता है। उष्णकटिबंधीय चक्रवात गर्म उष्णकटिबंधीय महासागरों में उत्पन्न होने वाले मजबूत गोलाकार तूफान हैं और भारी वर्षा और तेज हवाओं के साथ होते हैं।

हालांकि, समुद्र के तापमान पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण उष्णकटिबंधीय चक्रवातों  की आवृत्ति  और तीव्रता के वैश्विक स्तर के रुझानों के बारे में वैज्ञानिकों के बीच कोई सहमति नहीं बन पाई है। इसलिए, इसे हासिल करने के लिए और अंततः भविष्य में इन चरम मौसम की घटनाओं के लिए बेहतर तरीके से तैयार होने के लिए, समुद्र के घाटियों में विभिन्न उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की विशेषताओं का समग्र मूल्यांकन करना जरूरी है।

एक नए अध्ययन में, चीन के फुदान विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वेन झोउ और सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ हॉन्गकॉन्ग के पोस्ट-ग्रेजुएट शोधकर्ता एरंदानी लक्षानी ने देखे गए दशकों के पैमाने पर होने वाले बदलाव या डिकैडल-स्केल शिफ्ट्स पर अधिक प्रकाश डाला है। उन्होंने 1980 से 2021 तक दुनिया भर में आए उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की गतिविधियों के रुझान का पता लगाया है।

अध्ययन से पता चलता है कि पिछले चार दशकों में उत्तरी अटलांटिक बेसिन और उत्तरी हिंद महासागर में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है, जबकि पश्चिमी उत्तरी प्रशांत क्षेत्र में कमी आई है। यह भी पाया गया कि 1980 के बाद से पूर्वी प्रशांत, दक्षिणी हिंद महासागर और दक्षिण प्रशांत महासागर की घाटियों में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति में गिरावट आई है, हालांकि यह प्रवृत्ति सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण नहीं है।

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति की आवृत्ति के साथ-साथ विभिन्न महासागर घाटियों में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की तीव्रता में भी काफी भिन्नता है।

प्रोफेसर झोउ और लक्शानी कहते हैं कि, विशेष रूप से, उत्तर हिंद महासागर में औसत अधिकतम उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की तीव्रता हाल ही में बढ़ी है और इसे मध्य-क्षोभमंडलीय सापेक्ष आर्द्रता में ऊपर की ओर प्रवृत्ति और इस बेसिन में ऊर्ध्वाधर हवाओं के दबाव को कम करके समझाया जा सकता है।

अध्ययन यह भी बताता है कि पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की औसत तीव्रता में भारी से कमी आई है, जबकि दक्षिण प्रशांत में यह काफी बढ़ गई है।

इसके अलावा, उन्होंने पश्चिमी उत्तरी प्रशांत क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की बढ़ती तीव्रता का रुझान देखा लेकिन उत्तरी अटलांटिक पर इनकी प्रवृत्ति घटती हुई देखी गई। उत्तरी अटलांटिक में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की तीव्रता मुख्य रूप से उत्तरी अटलांटिक के दक्षिण में मध्य-क्षोभमंडलीय सापेक्ष आर्द्रता में घटती प्रवृत्ति से जुड़ी हो सकती है।

इस काम की एक अन्य खोज ऊर्ध्वाधर हवाओं का मुड़ना या वर्टीकल विंड शियर और इसके सापेक्षिक आर्द्रता और विभिन्न महासागर घाटियों में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की आवृत्ति दोनों की औसत बड़े पैमाने की विशेषताओं के बीच एक महत्वपूर्ण सहयोग की और इशारा है।

इसके अलावा, उष्णकटिबंधीय चक्रवातों आवृत्ति, वर्टिकल विंड शियर और इसके सापेक्षिक आर्द्रता पूरे बेसिन में अलग-अलग होती है, जो एक इंटर-बेसिन टेलीकनेक्शन या भौगोलिक रूप से अलग क्षेत्रों के बीच जलवायु का वर्णन करने के बारे में बताती है।

यह अध्ययन दुनिया भर में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों प्रवृत्तियों में अहम जानकारी प्रदान करता है, जो उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के विकास की हमारी समझ को बेहतर बनाने के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, अध्ययन भविष्य की भविष्यवाणी और तैयारी के लिए उष्णकटिबंधीय चक्रवातों गतिविधि में इन बदलावों के पर निरंतर शोध की जरूरत पर प्रकाश डालता है। यह शोध एटमॉस्फेरिक एंड ओशनिक साइंस लेटर्स में प्रकाशित हुआ है।