आपदा

देश की आधी आबादी सूखे की चपेट में

आईआईटी गांधीनगर के प्रोफेसर विमल मिश्रा ने बताया कि आगामी गर्मियों में लोगों को पीने के पानी की समस्या से भी जूझना पड़ सकता है

Anil Ashwani Sharma

भारत की आधी जनसंख्या सूखे की चपेट में है। इस जनसंख्या की 16 प्रतिशत आबादी असाधारण या भीषण सूखे की मार झेल रही है। यह जानकारी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गांधीनगर ने साउथ एशिया ड्राउट मॉनिटरिंग सिस्टम के माध्यम से हासिल की है। इस संबंध में आईआईटी गांधीनगर के प्रोफेसर विमल मिश्रा ने बताया कि आगामी गर्मियों में लोगों को पीने के पानी की समस्या से भी जूझना पड़ सकता है।

देश में सूखे को लेकर वास्तविक समय की सटीक निगरानी प्रणाली का संचालन करने वाली उनकी टीम ने भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) से मौसम और वर्षा संबंधी आंकड़ों को एकत्र किया है और फिर मिट्टी की नमी एवं सूखे संबंधी आंकड़ों के साथ इसका विस्तृत अध्ययन किया। 

मिश्रा ने बताया कि देश की जनसंख्या “असाधारण” सूखे की मार झेल रही है। इसकी जानकारी हमें अपनी वास्तविक समय की निगरानी प्रणाली से मिली है, जिसे हमारे देश में ही तैयार किया किया गया है। उन्होंने बताया कि इस वर्ष अरुणाचल प्रदेश में अच्छी बारिश नहीं हुई और झारखंड, दक्षिणी आंध्र प्रदेश, गुजरात और तमिलनाडु के उत्तरी हिस्से सूखे की चपेट में हैं।

उन्होंने चेतावनी दी कि यदि इन राज्यों में मॉनसून की शुरुआत से पहले बहुत तेज गर्मी का अनुभव होता है, तो इससे संकट गहरा सकता है। उनके अनुसार, इस सूखे से देश के पहले से ही घट रहे भूजल संसाधनों पर और अधिक बोझ पड़ेगा, क्योंकि हम भूजल के स्रोतों को बढ़ा नहीं रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हम इन स्रोतों से ही अधिक से अधिक पानी निकाल रहे हैं। आने वाले वर्षों में ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन से सूखे की संभावना बढ़ जाएगी। इसलिए, सरकार को भूजल और जल संरक्षण के संबंध में कुछ कठोर निर्णय लेने की आवश्यकता है। मिश्रा ने कहा कि यदि हमारे पास पहले से ही भूजल कम है तो आप उचित फसलों का चुनाव करके भूजल क्षरण को कम कर सकते हैं। 

हमें उन फसलों को उगाने पर जोर देना चाहिए, जिसमें पानी का प्रयोग कम होता हो। बेशक, संरक्षण को हर स्तर पर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, क्योंकि कुल ताजे पानी का 80 प्रतिशत आवासीय स्थलों के बजाय कृषि स्थलों में उपयोग किया जाता है। हालांकि, अकाल जैसी स्थिति पैदा होने की उम्मीद नहीं है, लेकिन इस सूखे से अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।