आपदा

बाढ़ से खतरे में आने वाली आबादी में हुई एक चौथाई वृद्धि: अध्ययन

Dayanidhi

बाढ़ अब तक की चरम मौसम की घटनाओं में सबसे आम है, जिसकी बढ़ोतरी के लिए जलवायु परिवर्तन काफी हद तक जिम्मेवार है। वर्षा पैटर्न में भी बार-बार बदलाव आ रहे हैं, जिससे बाढ़ आने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।  

हाल ही में भारत, चीन, जर्मनी और बेल्जियम जैसे देशों में घातक बाढ़ से अरबों का नुकसान हुआ है, जो अक्सर समाज के गरीब इलाकों को असमान रूप से प्रभावित करता है। भारत में तो बाढ़ आने का दौर जारी है, यहां मानसून किसी राज्य में जरूरत से ज्यादा बरस रहा है, तो वहीं कुछ राज्यों में बारिश में काफी कमी देखने को मिल रही है। अध्ययन के मुताबिक 2000 से 2019 तक दुनिया भर में बाढ़ की वजह से लगभग 65,100 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ है।  

उपग्रह आधारित आंकड़ों के अनुसार, पिछले दो दशकों में दुनिया भर में बाढ़ के संपर्क में आने वाले लोगों की संख्या में लगभग एक चौथाई की वृद्धि हुई है। जिससे पता चलता है कि दुनिया भर में 8.6 करोड़ लोग ऐसे इलाकों में रहते है जहां बाढ़ आने की सबसे अधिक आशंका है।

अधिकांश बाढ़ मानचित्र आधारित वर्षा और ऊंचाई जैसे जमीनी स्तर के अवलोकन मॉडलिंग पर निर्भर करते हैं, लेकिन वे अक्सर उन क्षेत्रों को पूरी तरह से याद कर सकते हैं जिन इलाकों में पहले बाढ़ नहीं देखी गई थी। उन अंतरालों को पूरा करने के लिए, अमेरिका के शोधकर्ताओं की एक टीम ने 2000 के बाद से 169 देशों में 900 से अधिक हरेक बाढ़ की घटनाओं की दो बार हर दिन इमेजिंग के आधार पर उपग्रह के आंकड़ों का पता लगाया।

उन्होंने दुनिया भर में आने वाली बाढ़ के लिए डेटाबेस बनाने हेतु आंकड़ों का इस्तेमाल किया, जिसमें 913 बाढ़ की घटनाओं में से प्रत्येक से जुड़े मरने वालों की संख्या, विस्थापन और वर्षा के स्तर पर जानकारी प्रदान करता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए 2000-2015 के बीच 8.6 करोड़ लोग उन इलाकों में चले गए जहां बाढ़ अधिक आती है, जिसमें कि 24 फीसदी की वृद्धि दिखाई दी।

22.3 लाख वर्ग किलोमीटर यानी 8,60,000 वर्ग मील, जो कि ग्रीनलैंड के पूरे क्षेत्र से अधिक है, इतने बड़े इलाके में 2000 से 2018 के बीच आई बाढ़ ने 29 करोड़ लोगों को प्रभावित किया था। भविष्य में स्थिति बद से बदतर होने वाली है।

कंप्यूटर मॉडलिंग के द्वारा लगाए गए अनुमान के मुताबिक जलवायु परिवर्तन की वजह से लोग दूसरे जगहों पर जाने के लिए मजबूर होंगे। इतनी बड़ी आबादी का मतलब होगा कि 2030 तक 25 अतिरिक्त देश बाढ़ के सबसे अधिक खतरे का सामना करेंगे।

कोलंबिया विश्वविद्यालय के अर्थ इंस्टीट्यूट के शोधकर्ता और फ्लड एनालिटिक्स फर्म क्लाउड टू स्ट्रीट के सह-संस्थापक और प्रमुख अध्ययनकर्ता बेथ टेलमैन ने बताया कि पिछले अनुमानों की तुलना में बाढ़ के खतरे में अब आने वाले अतिरिक्त लोगों की संख्या 10 गुना अधिक होगी। टेलमैन ने कहा हम उन बाढ़ की घटनाओं को मापने में सक्षम हैं जिन्हें अक्सर बिना मापे छोड़ दिया जाता है या आमतौर पर जिन्हें बाढ़ के मॉडल में शामिल नहीं किया जाता है, जैसे कि बर्फ के पिघलने या बांध के टूटने से आने वाली बाढ़ आदि। बांध के टूटने से भारी प्रभाव पड़ता है। बांध के अतिप्रवाह या बांध टूटने की केवल 13 घटनाओं में, 1.3 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे।

बाढ़ की आशंका वाले अधिकांश देश दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में हैं, लेकिन उपग्रह के आंकड़ो ने लैटिन अमेरिका और मध्य पूर्व में भी बाढ़ के खतरों में वृद्धि दिखाई है, जहां पहले ऐसा नहीं होता था।

क्या हो सकते हैं बाढ़ से बचने के संभावित उपाय

संयुक्त राष्ट्र जलवायु विज्ञान की एक रिपोर्ट, में पूर्वानुमान लगाया गया है कि बाढ़ भविष्य में अफ्रीका में सालाना 27 लाख लोगों को विस्थापित करेगी और 2050 तक 8.5 करोड़ लोग अपने घरों को छोड़ने के लिए मजबूर हो सकते हैं।

आईपीसीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि तापमान में सिर्फ 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड जो कि पेरिस समझौते का तापमान लक्ष्य भी है,  इससे कोलंबिया, ब्राजील और अर्जेंटीना बाढ़ से दो या तीन गुना अधिक प्रभावित होगा, जबकि इक्वाडोर और उरुग्वे में इसका असर चार गुना अधिक होगा और पेरू में पांच गुना होगा।

नए डेटाबेस से पता चला है कि अधिकांश बाढ़ की घटनाएं अधिक बारिश होने के कारण हुईं हैं, इसके बाद तूफान, बर्फ या बर्फ के पिघलने और बांध के टूटने जैसी घटनाओं से हुई हैं। टेलमैन ने कहा कि अध्ययन ने ग्रामीण और शहरी नियोजन के लिए बाढ़ की रोकथाम के उपायों में निर्माण से फायदा होने के बारे में भी बताया है। यह अध्ययन नेचर नामक पत्रिका में प्रकाशित  हुआ है।

उन्होंने कहा यह सर्वविदित है कि आपदा प्रबंधन और रोकथाम पर 1 डॉलर खर्च करने से राहत और फिर से बहाली करने के प्रयासों पर 6 डॉलर तक की बचत हो सकती है। विश्व बैंक के एक विशेषज्ञ, ब्रेंडन जोंगमैन ने कहा कि बाढ़ का डेटाबेस जलवायु परिवर्तन और सामाजिक-आर्थिक विकास के बीच की कड़ी को समझने में एक महत्वपूर्ण कदम है।

उन्होंने कहा उपग्रह तकनीक सुरक्षात्मक पारिस्थितिक तंत्र में परिवर्तनों का पता लगा सकती है, इसी तरह बाढ़ और जनसंख्या परिवर्तन की निगरानी में इसका उपयोग किया जा सकता है। जोंगमैन ने कहा हालांकि बढ़ते समुद्र के स्तर से निपटने के लिए बुनियादी ढांचे और प्रकृति आधारित दृष्टिकोणों का सबसे अच्छा संयोजन भी अपर्याप्त हो सकता है। कुछ समुदायों के लिए एकमात्र विकल्प बाढ़ प्रवण क्षेत्रों से दूसरे इलाकों में निकल जाना ही बाढ़ प्रबंधन करना जैसा होगा।