आपदा

ठाणे में बढ़ते शहरीकरण के साथ बढ़ा बाढ़ का खतरा, 2050 तक 56 फीसदी बढ़ जाएगा शहरी जंगल

जलवायु परिवर्तन और बढ़ते शहरीकरण के साथ ठाणे में सिकुड़ते जंगल, जल स्रोत और खुली जगहें बाढ़ की वजह बन रही हैं

Lalit Maurya

ठाणे में बढ़ता शहरीकरण अपने साथ नई समस्याएं भी साथ ला रहा है। इस बारे में मुंबई के वीरमाता जीजाबाई प्रौद्योगिकी संस्थान से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा किए नए अध्ययन से पता चला है कि ठाणे में बढ़ते शहरी जंगल और मौसम की चरम घटनाओं के चलते बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है। अध्ययन के नतीजे जर्नल ऑफ इंटीग्रेटेड डिजास्टर रिस्क मैनेजमेंट में प्रकाशित हुए हैं। 

शोधकर्ताओं के मुताबिक देश के भूमि उपयोग में बड़ी तेजी से बदलाव आ रहे हैं। साथ ही जलवायु में आते बदलावों के चलते एक और जहां भीषण बारिश और समुद्र के जलस्तर में वृद्धि हो रही उसके चलते तटीय इलाकों में बसे शहरों में बाढ़ का खतरा भी बढ़ रहा है। ऐसा ही कुछ शोधकर्ताओं को महाराष्ट्र के ठाणे में भी देखने को मिला है।

हाल के वर्षों में शहरी क्षेत्रों में आने वाली बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि हुई है। इनकी वजह से जान-माल को भी भारी नुकसान हुआ है और अर्थव्यवस्था को भी गहरा धक्का लगा है। गौरतलब है कि 2005 में मुंबई, 2014 में श्रीनगर और हाल के कुछ वर्षों में चेन्नई और केरल के कुछ हिस्सों में ऐसी ही विनाशकारी बाढ़ की घटनाएं सामने आई हैं।

रिसर्च के मुताबिक वर्तमान में जहां ठाणे का 6.21 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जलभराव की समस्या का सामना कर रहा है। वहीं भविष्य में यह समस्या बढ़कर 9.6 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अपनी चपेट में ले लेगी। यह अध्ययन पिछले 25 वर्षों (1990 से 2020) के दौरान ठाणे के भूमि उपयोग में आए बदलावों के साथ बारिश के पैटर्न और समुद्र के जल स्तर में होती वृद्धि पर आधारित हैं। साथ ही इन आंकड़ों के आधार पर शोधकर्ताओं ने 2050 तक शहर की क्या स्थिति होगी इसका भी जायजा लिया है।

बता दें की मानसून के दौरान ठाणे को हर साल जलभराव और बाढ़ की समस्या का सामना करना पड़ता है। अब बारिश की बढ़ती आवृत्ति के साथ-साथ बढ़ का क्षेत्र भी बढ़ रहा है। ऐसे में इस अध्ययन का उद्देश्य भूमि उपयोग और जलवायु में आते बदलावों को ध्यान में रखते हुए शहर में बढ़ के बढ़ते खतरे का आंकलन करना और उसका मैप तैयार करना था।

बढ़ते कंक्रीट के बीच तेजी से घट रहे जंगल, जल स्रोत और खुली जगह

रिसर्च के मुताबिक ठाणे के शहरी जंगल में पिछले 25 वर्षों (1995-2020) में 27.5 फीसदी की वृद्धि हुई है। वहीं दूसरी तरफ खुली जगहों में में 29.5 फीसदी, वनक्षेत्र में आठ फीसदी, जल स्रोतों में 18.9 फीसदी और मैंग्रोव में 36.3 फीसदी की गिरावट आई है।

अनुमान है कि अगले 30 वर्षों में शहर में मौजूदा निर्मित क्षेत्र 2050 तक करीब 56 फीसदी बढ़ जाएगा। जबकि दूसरी ओर खुली जगहों में 17.06 फीसदी, वन क्षेत्र में 55.98 फीसदी, जल स्रोतों में 87.4 फीसदी और मैंग्रोव में 72.13 फीसदी की गिरावट आ जाएगी।   

विश्लेषण के अनुसार निर्मित क्षेत्र में होने वाले बदलाव की वार्षिक दर में 1.09 फीसदी की वृद्धि हुई है, जबकि दूसरी तरफ खुली जगह में हर साल 1.17 फीसदी की दर से कमी आ रही है। वहीं मैंग्रोव में साल दर साल 1.45 फीसदी की दर से कमी आ रही है। देखा जाए तो यह वन क्षेत्र, जल स्रोत, खुली जगहें, और मैंग्रोव जलभराव के लिए प्राकृतिक बफर का काम करते हैं। लेकिन इनके होते विनाश के चलते शहर में जल भराव और बाढ़ की समस्या कहीं ज्यादा बढ़ जाएगी।

अध्ययन के अनुसार निर्मित क्षेत्र, बारिश की चरम घटनाओं और समुद्र के स्तर में होती वृद्धि के साथ शहर में अपवाह भी बढ़ रहा है। रिसर्च के अनुसार पिछले 25 वर्षों में बढ़ता शहरीकरण के चलते अपवाह में 11.5 फीसदी की वृद्धि हुई है। वहीं अंदेशा है कि जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहा है और शहरी जंगल फैल रहा है उसके चलते इस अपवाह में 2050 तक और 31.8 फीसदी की वृद्धि हो सकती है।

अनुमान है कि इसके साथ ही जलभराव की समस्या भी कहीं ज्यादा विकराल रूप ले लेगी। शोधकर्ताओं के अनुसार पिछले 25 वर्षों में ठाणे में जलमग्न क्षेत्र बढ़कर 9.15 फीसदी हो गया है, जो अगले 30 वर्षों में बढ़कर 14.03 फीसदी हो सकता है।

भारी बारिश की स्थिति में जल निकासी के लिए ठाणे में कुल 17 प्रमुख नाले हैं, इनमें से आठ समुद्र तल से नीचे हैं जबकि छह समुद्र तल से तो ऊंचे हैं लेकिन उनमें से केवल तीन ऐसे हैं जो उच्च ज्वार की स्थिति में होने वाले पानी के स्तर से ऊपर है। ऐसे में भारी बारिश की स्थिति में जलभराव का होना लाजिमी ही है।

ठाणे नगर निगम के आपदा प्रबंधन विभाग ने भी ठाणे में नौ स्थानों की पहचान की है, जो हर साल गंभीर रूप से जलभराव का सामना करते हैं। इन क्षेत्रों में चिखलवाड़ी, वंदना टाकीज क्षेत्र, राम मारुति रोड, सिडको ब्रिज, वृंदावन सोसाइटी, देबिनॉइर सोसाइटी, श्रीरंग सोसाइटी, ग्लेनडेल सोसाइटी और ईडनवुड सोसाइटी शामिल हैं।

क्या है समाधान

ऐसे में शोधकर्ताओं को भरोसा है कि ठाणे पर बाढ़ के बढ़ते खतरे का यह मैप, नीतिनिर्मातों, निर्णयकर्ताओं या सम्बंधित अधिकारियों के लिए मददगार साबित हो सकता है। विशेष तौर पर यह तूफानी जल की निकासी सम्बन्धी योजनाओं के निर्माण के साथ-साथ ठाणे में पानी से जुड़ी समस्याओं और बार-बार आने वाली बाढ़ के कारण होने वाली जान-माल की क्षति को कम करने में मददगार हो सकता है।

शोधकर्ताओं ने जो नक्शा तैयार किया है उसके मुताबिक सिडको ब्रिज, वृंदावन, रबोडी-कोलीवाड़ा, क्रांति नगर, मजीवाड़ा गांव और पूर्वी ठाणे में चेंदनी कोलीवाड़ा में बाढ़ का खतरा ज्यादा है।

शोधकर्ताओं की सलाह है कि क्रीक के आसपास के क्षेत्रों में विकास करते समय ठाणे नगर निगम को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि विकसित की जा रही संरचनाएं 4.5 मीटर ऊंची या उच्च ज्वार के स्तर से अधिक ऊंची होनी चाहिए, जिससे जलभराव की समस्या से निपटा जा सके। साथ ही शोधकर्ताओं ने पानी को स्टोर करने के लिए तालाबों, पम्पिंग सिस्टम्स और ज्वारीय फाटकों के उपयोग की बात भी कही है।