आपदा

बाढ़ क्षेत्रों में बढ़ रही इंसानी बसावट, 30 वर्षों में 122 फीसदी बढ़ी बस्तियां

पिछले 30 वर्षों में ऐसे क्षेत्रों में इंसानी बसावट 122 फीसदी बढ़ी है, जहां बाढ़ का जोखिम बेहद ज्यादा है

Lalit Maurya

बढ़ती आबादी और महत्वाकांक्षा के चलते आज इंसान तेजी से नए क्षेत्रों की ओर रुख कर रहा है। इस आपाधापी में वो उन क्षेत्रों में भी बसने से गुरेज नहीं कर रहा है, जो उनके लिए सुरक्षित नहीं हैं। वर्ल्ड बैंक के शोधकर्ताओं द्वारा इस बारे में किए अध्ययन से पता चला है कि उन क्षेत्रों में भी इंसानी बसावट बढ़ रही है, जहां बाढ़ का गंभीर खतरा मौजूद है।

रिपोर्ट में जारी आंकड़ों की मानें तो पिछले 30 वर्षों में ऐसे क्षेत्रों में इंसानी बसावट 122 फीसदी बढ़ी है, जहां बाढ़ का जोखिम बेहद ज्यादा है। मतलब कि यह वो क्षेत्र है जहां बाढ़ का स्तर 150 सेंटीमीटर से ऊपर जा सकता है और जो इंसानी जीवन और बुनियादी ढांचे के लिए सुरक्षित नहीं है।

इसके विपरीत 1985 से 2015 के बीच वैश्विक स्तर पर गांवों से लेकर बड़े शहरों में इंसानी बस्तियों में 85.4 फीसदी की वृद्धि हुई है। जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि इन तीन दशकों में बाढ़ से सुरक्षित क्षेत्रों की तुलना में उन क्षेत्रों में बसावट कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ी है, जहां बाढ़ आने का खतरा बहुत ज्यादा है। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित हुए हैं।

पिछले कुछ दशकों को देखें तो दुनिया भर में शहरों में बड़ी तेजी से विस्तार हुआ है, क्योंकि लोग आर्थिक अवसरों की तलाश में बड़े पैमाने पर शहरों की ओर रुख कर रहे हैं। देखा जाए तो शहरीकरण और आर्थिक विकास आमतौर पर आपस में जुड़े रहते हैं। शहर लोगों, विचारों और निवेश को आकर्षित करते हैं और बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्था का निर्माण करते हैं।

हालांकि इसके बावजूद तेजी से होते शहरीकरण के चलते न केवल भीड़भाड़, सार्वजनिक सेवाओं और बुनियादी ढांचे पर दबाव जैसी चुनौतियां पैदा हो सकती हैं, साथ ही प्राकृतिक आपदाओं का जोखिम भी बढ़ जाता है।

बाढ़ की चपेट में 76,400 वर्ग किलोमीटर में फैली मानव बस्तियां

रिसर्च के अनुसार 2015 में करीब 20 फीसदी बसावट उन क्षेत्रों में थी जहां बाढ़ का जोखिम मध्यम से उच्च था। वहीं इससे तीन दशक पहले 1985 में यह आंकड़ा 17.9 फीसदी दर्ज किया गया था। हालांकि 2.1 फीसदी की यह वृद्धि देखने में ज्यादा बड़ी न लगे, लेकिन यह विशाल क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती है। शोधकर्ताओं के अनुसार 2015 में करीब 76,400 वर्ग किलोमीटर में फैली मानव बस्तियां जोकि आकार में लंदन से 48 गुणा ज्यादा हैं, वो आधे मीटर से भी ज्यादा बाढ़ की चपेट में थी।

विश्व बैंक में अर्थशास्त्री और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता जून रेंटस्लर का इस बारे में कहना है कि, "जैसे-जैसे कोई देश थोड़ा अमीर होता है, ग्रामीण से शहरी आबादी की ओर बदलाव होता है, क्योंकि लोग गांवों को छोड़ शहरों की ओर रुख करने लगते हैं, जो अक्सर नदियों या जलमार्गों के आसपास बसना शुरू कर देते हैं, जहां अक्सर बाढ़ आती है।“

उनका आगे कहना है कि, "आप क्या उम्मीद करते हैं कि शुरू में सुरक्षित स्थानों पर बस जाएं, लेकिन जैसे-जैसे शहर का विस्तार होता है, इसके उन क्षेत्रों में बढ़ने की अधिक सम्भावना रहती है जहां पहले ऐसा करने से बचा जाता था। बाढ़ क्षेत्र ऐसा ही एक उदाहरण हैं।

इस बारे में विश्व बैंक के वरिष्ठ जलवायु सलाहकार और आपदा अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ स्टीफन हैलेगेट का कहना है कि, "लोग बेहतर जीवन और जीविका की तलाश में अक्सर उन क्षेत्रों में पहुंच जाते हैं, जो रहने के लिए कम अनुकूल होते हैं, क्योंकि वो उन्हीं क्षेत्रों का खर्च वहन कर सकते हैं।" उनके मुताबिक लोग जब आते हैं तो उन्हें इन जोखिमों के बारे में पता होता है।

रिसर्च के अनुसार यह समस्या निम्न और मध्यम आय वाले देशों के लिए ऐसी समस्या है जो तेजी से पैर पसार रही है। खासकर उन देशों में यह कहीं ज्यादा बड़ा खतरा हैं जहां सीमित संसाधनों के चलते बुनियादी ढांचें और शहरी योजनाओं में बाढ़ से जुड़े जोखिमों को कम करने पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। न ही उनको ध्यान में रखकर योजनाएं बनाई जा रही हैं।

चीन, वियतनाम, बांग्लादेश में सबसे खराब है स्थिति

अमेरिका और यूरोप के कुछ देशों में जो आर्थिक रूप से समृद्ध हैं वहां बाढ़-प्रवण क्षेत्रों की तुलना में सुरक्षित क्षेत्रों में अधिक बसावट हुई है। इसी तरह सबसे कमजोर देशों में भी बाढ़ के जोखिम वाले क्षेत्रों में उतना विकास नहीं हुआ है।

रिपोर्ट की मानें तो पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में यह संकट सबसे ज्यादा गहरा है, जहां विशेष रूप से चीन, वियतनाम और बांग्लादेश में इन क्षेत्रों में तेजी से शहरी विस्तार हुआ है। आंकड़ों की मानें तो 2015 के दौरान इस क्षेत्र की करीब 18.4 फीसदी बस्तियों को बाढ़ के जोखिम का सामना करना पड़ा था, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है। इसके विपरीत, उत्तरी अमेरिका में जहां केवल 4.5 फीसदी और उप-सहारा अफ्रीका में 4.6 फीसदी बस्तियों ने बाढ़ के जोखिम का सामना किया था।

देखा जाए तो यह चीन के आंकड़े सबसे ज्यादा चौंकाने वाले थे। चीन में पिछले तीन दशकों में, उन क्षेत्रों में तीन गुणा से भी ज्यादा बसावट हुई हैं जहां बाढ़ का खतरा सबसे ज्यादा था। इन देशों में जहां जगह मिल रही है, बस निर्माण किया जा रहा है। बढ़ती भीड़ बस खाली क्षेत्रों को भरने पर ध्यान दे रही है। नतीजन बाढ़ के मैदान जैसी उन जगहों पर भी तेजी से निर्माण हो रहा है, जो बसावट के दृष्टिकोण से सुरक्षित नहीं हैं।

इससे पहले किए शोध में भी इस बात की पुष्टि हुई है जिसके मुताबिक 2010 तक 30 वर्षों के दौरान, चीन में 70 फीसदी नए विकास बाढ़-प्रवण क्षेत्रों या उन क्षेत्रों में हुए हैं जहां बाढ़ का खतरा बेहद ज्यादा है। वहीं यदि वियतनाम को देखें तो वहां समुद्र तट का करीब एक-तिहाई हिस्सा अब निर्मित हो चुका है, जो बड़े खतरे की ओर इशारा करता है।

देखा जाए तो जिस तरह से वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है और जलवायु बदलाव आ रहे हैं उसके चलते आने वाले भविष्य में यह समस्या कहीं ज्यादा गंभीर रूप ले सकती है। चूंकि गर्म वातावरण में कहीं ज्यादा नमी होती है, ऐसे में बारिश की घटनाएं पहले से कहीं ज्यादा शक्तिशाली हो सकती हैं। इसका मतलब है कि बाढ़ की जिन घटनाओं के आने की आशंका पहले हर सौ वर्षों में मानी जाती थी, उनका आना अब बेहद आम होता जाएगा।

ऐसे में यह जरूरी है कि बाढ़ के इन खतरों से बचाव के लिए शहरीकरण और बसावट से जुड़ी नीतियों में बदलाव किया जाए, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों के जान माल की सुरक्षा की जा सके। साथ ही इसके जोखिम से निपटने से पहले देशों को इस बेतरतीब तरीके से होते शहरीकरण और बसावट पर लगाम लगाने की जरूरत है। रेंटस्लर के मुताबिक स्थानीय अधिकारी लोगों की सुरक्षा और भविष्य में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को रोकने के लिए और भी बहुत कुछ कर सकते हैं।