आपदा

ओडिशा और छत्तीसगढ़ के बीच संवाद न होने के कारण आई बाढ़

महानदी नदी के बेसिन से जुड़ी जानकारी को साझा करने को लेकर दोनों राज्य आमने-सामने आ गए हैं

Shagun

ओडिशा और छत्तीसगढ़ के बीच समन्वय में पूरी तरह से नाकामी का नतीजा मौजूदा बाढ़ के रूप में सामने आता दिख रहा है। महानदी नदी के बेसिन से जुड़ी जानकारी को साझा करने को लेकर दोनों राज्य आमने-सामने आ गए हैं। विडंबना यह है कि दोनों राज्य गैर-मानसून के महीनों में पानी की मात्रा मे कमी को लेकर तीखे विवाद में फंस गए हैं।

11 अगस्त को ओडिशा के हीराकुद बांध के अधिकारियों ने ज्यादा पानी छोड़ने के लिए जलमार्ग के दस गेट खोल दिए थे। यह अतिरिक्त पानी महानदी बेसिन के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र से जलाशय में बह गया। ऐसा छत्तीसगढ़ के जल संसाधन विभाग द्वारा यह सूचना दिए जाने के बाद किया गया था कि उन्होंने राज्य में भारी बारिश के कारण महानदी नदी पर बैराज खोल दिए हैं। हालांकि दोनों राज्यों के बीच 11 अगस्त से पहले इस बारे में कोई जानकारी साझा नहीं की गई थी।

अगले दिन बांध के 34 और गेट खोल दिए गए, इसके बाद 15 अगस्त को आठ गेट बंद किए गए। उसके अगले दिन यानी 16 अगस्त को बांध के 64 में से 40 गेट खोल दिए गए।

राज्य में बारिश के साथ-साथ, निचले इलाकों में अतिरिक्त पानी छोड़ने के लिए इन गेटों के खुलने से भारी बाढ़ आ गई। ऐसा इस तथ्य के बावजूद हुआ है कि 1958 में शुरू किया गया यह बांध, बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया था।

आदर्श तौर पर दोनों पड़ोसी राज्यों को पानी के बहाव और बारिश के कारण नदी में जमा हुए पानी की मात्रा के बारे में नियमित रूप से जानकारी साझा करनी चाहिए। ऐसा करने से दोनों राज्यों को हीराकुद बांध में पानी के जमा होने और उसे छोड़ने को लेकर प्रभावी फैसले लेने में मदद मिलती।
ओडिशा जल संसाधन अधिकारियों ने कहा कि छत्तीसगढ़ के अधिकारियों ने उनसे 11 अगस्त को बैराज के गेट खोलने और पानी छोड़ने के लिए कहा। महानदी के जलग्रहण क्षेत्र का 85 प्रतिशत हिस्सा छत्तीसगढ़ में है।

महानदी, ओडिशा जल संसाधन विभाग के बेसिन प्रबंधक और मुख्य अभियंता आनंद चंद्र साहू ने कहा, ‘हम नहीं जानते कि किसी विशेष समय में कितना पानी आएगा। टेलीफोन पर बातचीत और हमारे द्वारा कई कोशिशों के बावजूद छत्तीसगढ़ इस संबंध में सूचना साझा नहीं कर रहा है।’ उन्होंने आगे कहा - ‘हमें नहीं पता कि उन्होंने कब गेट खोले और पानी छोड़ा। हमें तो उन्होंने ऐसा करने के बाद बताया।’

11 अगस्त को जलाशय का स्तर 616 फीट था। उसके बाद छत्तीसगढ़ बैराज से हीराकुद में पानी का बहाव अचानक बढ़ गया। 18 अगस्त को यह 626.41 फीट था जबकि जलाशय का पूर्ण स्तर 630 फीट ही होना चाहिए। इसके बावजूद हीराकुद बांध के अधिकारियों ने इसके 40 गेटों से बाढ़ का अतिरिक्त पानी निकालना जारी रखा।

17 अगस्त को जलाशय में पानी की आवक 642,055 क्यूसेक थी, जबकि इसका बहिर्प्रवाह 680,175 क्यूसेक था।

इस बारे में छत्तीसगढ़ के चीफ इंजीनियर आईजे उइके और राकेश कुमार से बातचीत का प्रयास किया गया लेकिन दोनों ने फोन पर बात नहीं की।  

दोनों राज्यों के बीच विवाद कोई नई बात नहीं है, हालांकि अब उनके बीच संवाद की कमी बाढ़ प्रबंधन को नुकसान पहंुचा रही है। बांध की सुरक्षा के लिए 13 जुलाई को एक बैठक की योजना बनाई गई थी लेकिन बैठक से कुछ दिन पहले छत्तीसगढ़ ने उससे बाहर रहने का फैसला लिया। दोनों राज्यों के बीच समन्वय को लेकर अंतिम बैठक 2019 में हुई थी।

महानदी, ओडिशा जल संसाधन विभाग के बेसिन प्रबंधक और मुख्य अभियंता आनंद चंद्र साहू ने कहा, ‘केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) की चिंता के बावजूद छत्तीसगढ़ कोई जानकारी साझा नहीं कर रहा है। मैैंने पिछले साल और इस साल राज्य के अधिकारियों को कई पत्र लिखे लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। हमारे चीफ इंजीनियर ने भी उन्हें पत्र लिखा है।’

उन्होंने कहा कि 13 जुलाई की बैठक, बांध की सुरक्षा और बाढ़ के बेहतर प्रबंधन के लिए जानकारी साझा करने को लेकर थी, लेकिन उससे एक सप्ताह पहले ही छत्तीसगढ़ के अधिकारियों ने कहा कि उन्हें बीस जुलाई से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र के लिए तैयार करनी है।

महानदी बचाओ, जीविका बचाओ अभियान के सुदर्शन छोतोराय ने कहा कि राज्यों को उचित जानकारी देने में नाकाम रहने का दोष सीडब्ल्यूसी के सिर पर मढ़ा जाता है। उन्होंने कहा, ‘ छत्तीसगढ़ में कलमा बैराज में सीडब्ल्यूसी का ऑफिस है। आदर्श तौर पर उन्हें समय पर ओडिशा को जानकारी देनी चाहिए। हालांकि पिछले 6-7 सालों में हम कई बार इस ऑफिस गए हैं, लेकिन हमें वहां कभी कोई नहीं मिला।’

महानदी में बाढ़ के ऊपरी स्तर तक पहुंचने के लिए विशेषज्ञ छत्तीसगढ़ द्वारा बनाए गए छह औद्योगिक बैराजों - समोदा, सोरीनारायण, बसंतपुर, मिरौनी, सारडीहा और कलमा को भी दोष देते हैं।

ओडिशा के रहने वाले जल-विशेषज्ञ रंजन पांडा ने कहा, ‘ “बैराज नदी के मुख्य मार्ग पर हैं, जो हीराकुद के बिल्कुल ऊपर की ओर है, और ऊपर के बैराज से जुड़ता है। यह एक मुश्किल स्थिति है क्योंकि तकनीकी रूप से बैराज के बीच की दूरी के लिए कोई योजना नहीं बनाई गई है।”

उन्होंने कहा कि खराब पानी के अवरोध के कारण छत्तीसगढ़ ऐसी बाढ़ का सामना कर रहा है, जिसका उसने पहले कभी अनुभव नहीं किया था और उसने ओडिशा से पानी छोड़ने के लिए कहा था।

हालांकि छत्तीसगढ़ को अकेले इसके लिए दोष नहीं दिया जा सकता। वैसे पहले भी, ओडिशा हीराकुद बांध पर बाढ़ का प्रबंधन करने में सक्षम नहीं रहा है। वह अपने जलाशय से उद्योगो को पानी की आपूर्ति करने के लिए प्रतिबद्ध है लेकिन वह उसके लिए वह पानी जमा करने के लिए उचित बफर जोन नहीं बना पा रहा है।

यह विडंबनापूर्ण इसलिए है क्योंकि हीराकुद बांध का निर्माण आवश्यक तौर पर बाढ़ के नियंत्रण के लिए ही किया गया था जबकि अब यह बहुउद्देश्यीय बन चुका है।

पांडा ने कहा, “बांध एक नियम वक्र का पालन करता है, जो इसे इस उम्मीद के साथ पानी से भरते रहने के लिए कहता है कि मानसून के अंत तक जलाशय भर जाएगा। लेकिन बाढ़ से बचाव के लिए बाध में कोई निचला किनारा नहीं है।’

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचलित नियम वक्र, एक बांध संचालन कार्यक्रम है। वह यह नियंत्रित करता है कि बांध को कब और कैसे भरा और खाली किया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित करता है कि बैरियर केवल मानसून के अंत तक अपनी क्षमता से भरा हुआ हो।

विशेषज्ञों ने कई बार कहा है कि जलवायु परिवर्तन और मानसून की बढ़ती अनिश्चित प्रकृति को ध्यान में रखकर नियम वक्र को संशोधित किया जाना चाहिए। हीाकुद बांध 1968 में स्थापित नियम वक्र का पालन करता है।

छोतोराय बताते हैं कि ओडिशा के पास बाढ़ प्रबंधन की योजना नहीं है। उनके मुताबिक, ‘ “ओडिशा में केवल आकस्मिक बाढ़ की योजना है। इन उसके ऊपर, महानदी का मुद्दा अभी भी जल न्यायाधिकरण में लंबित है। इसे लेकर आज तक, चार साल में 28 बार सुनवाई हुई है। हमने इस मामले में मध्यावधि फैसले की मांग की है।’

गौरतलब है कि महानदी के जल के बटवारे को लेकर दोनों राज्यों के बीच विवाद सुलझाने के लिए 2018 में जल न्यायाधिकरण की स्थापना की गई थी।