आपदा

500 वर्षों के इतिहास में सबसे भीषण सूखे का सामना कर रहा है यूरोप

महाद्वीप का करीब 47 फीसदी हिस्से में चेतावनी जारी की गई है कि जहां मिट्टी तेजी से अपनी नमी खो रही है जबकि 17 फीसदी हिस्सा ऐसा है, जहां वनस्पति पर सूखे का प्रभाव साफ दिखने लगा है

Lalit Maurya

पिछले 500 वर्षों के इतिहास में यूरोप अपने सबसे भीषण सूखे के दौर का सामना कर रहा है। यूरोप के करीब दो-तिहाई हिस्से में सूखे को लेकर किसी न किसी रूप में चेतावनी जारी की गई है।

हालात इतने बदतर हो गए हैं कि वहां का 47 फीसदी हिस्से में मिट्टी सूख गई हैं और फसलें सूखने की स्थिति में आ गई हैं। यह जानकारी ग्लोबल ड्राउट ऑब्जर्वेटरी द्वारा जारी रिपोर्ट “ड्राउट इन यूरोप: अगस्त 2022” में सामने आई है।

रिपोर्ट की मानें तो यूरोप के कुछ देशों खासकर इटली, स्पेन, पुर्तगाल, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड, बेल्जियम, लक्जमबर्ग, रोमानिया, हंगरी, उत्तरी सर्बिया, यूक्रेन, मोल्दोवा, आयरलैंड और यूनाइटेड किंगडम में सूखे का खतरा तेजी से बढ़ रहा है।

वहीं यूरोप के अन्य हिस्से जो पहले ही सूखे की चपेट में थे वहां स्थिति और गंभीर हो गई है। पता चला है कि जो क्षेत्र बसंत के पहले से ही सूखा प्रभावित थे जैसे उत्तरी इटली, दक्षिण-पूर्वी फ्रांस, हंगरी और रोमानिया के कुछ क्षेत्र, वहां स्थिति सबसे ज्यादा विकट है। यूरोपियन कमीशन द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक स्थिति यह है कि सूखे के चलते यूरोप में फैसले सूखने लगी हैं। अंतर्देशीय शिपिंग के साथ-साथ बिजली उत्पादन और पैदावार घट गई है।

मक्के की पैदावार में दर्ज की गई 16 फीसदी की गिरावट

रिपोर्ट के मुताबिक महाद्वीप का करीब 47 फीसदी हिस्से में चेतावनी जारी की गई है कि उसमें मिट्टी तेजी से अपनी नमी खो रही है जबकि 17 फीसदी हिस्सा ऐसा है जहां वनस्पति पर सूखे का प्रभाव साफ दिखने लगा है और इसे देखते हुए अलर्ट जारी करना पड़ा है। ।

सूखे का खामियाजा ग्रीष्मकालीन  फसलों को भी भुगतना पड़ रहा है जानकारी मिली है कि 2022 में मक्के की पैदावार पिछले पांच वर्षों के औसत से 16 फीसदी कम हुई है जबकि सोयाबीन में 15 फीसदी और सूरजमुखी की पैदावार में भी 12 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।

इतना ही नहीं रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि सूखे का प्रभाव यूरोप की ज्यादातर नदियों पर पड़ा है और वो कुछ हद तक सूख भी गई हैं। राइन जैसी नदियों में तो पानी की कमी के चलते शिपिंग को भी रोकना पड़ गया है।

वहीं दूसरी तरफ नदियों में पानी की कमी ने बिजली उत्पादन पर भी असर डाला है। जिसकी वजह से यूरोप में पनबिजली उत्पादन पर भी गहरा असर पड़ा है। रिपोर्ट में सामने आई जानकारी के मुताबिक वहां पनबिजली उत्पादन में करीब 20 फीसदी की महत्वपूर्ण गिरावट आई है। वहीं स्पेन के जलाशयों में जमा पानी पिछले 10 साल के औसत का केवल 58 फीसदी ही रह गया है। पुर्तगाल में जलविद्युत ऊर्जा पिछले पांच वर्षों के औसत की आधे से भी कम रह गई है।

देखा जाए तो यूरोप के कई देश वर्ष की शुरुआत से ही सूखे की स्थिति का सामना कर रहे थे जो अगस्त आते-आते और गंभीर होती गई। यह कहीं न कहीं मई से चल रही भीषण लू और घटती बारिश का ही नतीजा है कि अगस्त में सूखे की स्थिति इतनी विकट हो गई है।

60,000 हेक्टेयर से ज्यादा जंगल चढ़ चुके हैं आग की भेंट

इसके साथ-साथ यूरोप में जल संकट भी गहराता जा रहा है। जानकारी मिली है कि फ्रांस में, 100 से अधिक नगर पालिकाओं में पीने के पानी की गंभीर समस्या है जिससे निपटने के लिए वहां ट्रकों के माध्यम से पानी की सप्लाई की जा रहिए है। फ्रांस के 66 डिपार्टमेंट में सूखे अपनी चरम स्थिति पर पहुंच गया है। वहीं 93 डिपार्टमेंट ने सूखे की गंभीर चेतावनी जारी की है।

इतना है नहीं बारिश की कमी और सूखा की यह स्थिति जंगल में लगने वाली आग को और दहका रही है। यूरोपियन फारेस्ट फायर इन्फॉर्मेशन सिस्टम के मुताबिक 2022 की शुरुआत से अब तक करीब 60,000 हेक्टेयर से ज्यादा हिस्से में जंगल की आग फैल चुकी है, जोकि 2021 की तुलना में दोगुने से ज्यादा है। वहीं यदि पिछले 10 वर्षों में लगने वाली आग के औसत से इसकी तुलना करें तो इस साल आग का यह दायरा उससे 4.6 गुना ज्यादा है।

हालांकि मध्य अगस्त में यूरोप के कुछ क्षेत्रों में हुई बारिश ने सूखे के प्रभाव को कम किया है। लेकिन उसके साथ ही गरज के साथ आए तूफान से हुए नुकसान ने बारिश के उस फायदे को सीमित कर दिया है। 

रिपोर्ट में आशंका जताई है कि आने वाले कुछ महीनों में नवंबर 2022 तक पश्चिमी यूरो-भूमध्यसागरीय क्षेत्र में परिस्थितियां सामान्य से अधिक गर्म और शुष्क रहने की आशंका है। इसके साथ ही इबेरियन प्रायद्वीप के कुछ क्षेत्रों में अगले तीन महीनों में स्थिति सामान्य से अधिक शुष्क रहने की आशंका है।