आपदा

मसूरी में भूस्खलन और अस्थिर ढलानों से प्रभावित क्षेत्रों पर दिया जा रहा है ध्यान: उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि मसूरी में भूस्खलन की रोकथाम के लिए कार्य योजना तैयार की गई है

Susan Chacko, Lalit Maurya

उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मसूरी पर अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मसूरी के आसपास भूस्खलन और अस्थिर ढलानों से प्रभावित क्षेत्रों पर ध्यान दिया जा रहा है। इसके लिए एक कार्य योजना बनाई गई है, जिसमें मिट्टी को बांधे रखने वाले पौधों के लिए नर्सरी बनाना शामिल है। इसके साथ ही अस्थिर ढलानों को स्थिर रखने के लिए ओक के पौधे लगाना और क्षतिग्रस्त क्षेत्रों को प्राकृतिक रूप से बहाल करने के लिए कदम उठाना शामिल है।

गौरतलब है कि यह रिपोर्ट 16 जनवरी, 2023 को द ट्रिब्यून में प्रकाशित एक खबर के संबंध में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा 26 जुलाई, 2023 और नौ नवंबर, 2023 को दिए आदेशों पर कोर्ट में सौंपी गई है।

इस मामले में मिट्टी, स्थलाकृति और भूवैज्ञानिक अध्ययन और आईआईटी दिल्ली द्वारा उसके अनुमोदन के बाद भूस्खलन की रोकथाम के लिए कार्य योजना बनाई गई है। यह योजना एनएच नंबर एक जो देहरादून-मसूरी राज्य राजमार्ग है, उसके लिए है।

यह भी जानकारी दी गई है कि उत्तराखंड के मसूरी शहर के मास्टर ड्रेनेज प्लान के लिए एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट बनाई जाएगी। यह रिपोर्ट तीन मुख्य कार्यों को कवर करेगी:

  • मसूरी शहर में बरसाती पानी की निकासी पर गहन अध्ययन करना।
  • मसूरी के लिए एक स्थाई और प्रभावी मास्टर ड्रेनेज योजना का विकास करना।
  • 16 दिसंबर, 2023 को लिखे एक पत्र में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, देहरादून के निदेशक से आइसोटोप हाइड्रोलॉजिकल सर्वेक्षण, भू तकनीकी सर्वेक्षण, भूभौतिकीय सर्वेक्षण और उप-सतह पर्कोलेशन अध्ययन का अनुरोध किया गया था। 

 मसूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) गति शक्ति पोर्टल पर जीआईएस तकनीक का उपयोग करके एक निर्णय समर्थन प्रणाली (डीएसएस) बना रहा है। इस प्रणाली में ढलान विश्लेषण, आपदा-संभावित क्षेत्र, भूवैज्ञानिक रिपोर्ट, वन क्षेत्र और निजी वन क्षेत्र जैसी सुविधाएं शामिल होंगी। मौजूदा बहुमंजिला इमारतों का उचित मूल्यांकन और संरचनाओं की रेट्रोफिटिंग के साथ-साथ इमारतों की तकनीकी ऑडिटिंग सुनिश्चित करने के लिए, एमडीडीए ने रूड़की में केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई) से सहायता मांगी है।

दामोदर नदी को हुए नुकसान की एवज में उद्योगों से वसूला गया है 4.37 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय मुआवजा

धनबाद के उपायुक्त ने 30 मार्च, 2024 को कोर्ट में सौंपी अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि झारखंड दामोदर नदी की बहाली और संरक्षण के लिए सभी कदम उठा रहा है। गौरतलब है कि दामोदर, झारखंड नदी प्रणाली का हिस्सा है, जो गंगा की एक सहायक नदी भी है।

इससे जुड़ी योजनाओं में दामोदर नदी बेसिन क्षेत्र में 28 जल निकायों का जीर्णोद्धार किया जाना प्रस्तावित है। इसके तहत 2024 में 12 तालाबों के जीर्णोद्धार के साथ चार डैम के निर्माण का काम चल रहा है।

रिपोर्ट के मुताबिक दामोदर नदी को हुए नुकसान की एवज में झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने उद्योगों से 43,747,769 रुपए पर्यावरणीय मुआवजे के रूप में वसूले हैं। इनका उपयोग पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई के लिए किया जाएगा।

इसके अतिरिक्त, धनबाद वन प्रभाग ने दामोदर और उसकी सहायक नदियों के 10 किलोमीटर के दायरे में 30,000 पेड़ लगाए हैं। गौरतलब है कि यह रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा 18 सितंबर, 2023, पांच फरवरी, 2023 और 20 फरवरी, 2024 को जारी आदेशों पर कोर्ट में सबमिट की गई है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने गंगा और उसकी सहायक नदी-नालों में औद्योगिक अपशिष्टों के निर्वहन को रोकने के लिए उचित कार्यप्रणाली सुनिश्चित करने के साथ-साथ जरूरी कदम उठाने के लिए कहा है।

यह निर्देश राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के साथ-साथ सम्बंधित राज्यों जैसे उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल के लिए जारी किया गया है। उन्हें यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहा गया कि कचरे को साफ करने के लिए उपचार संयंत्र ठीक से काम कर रहे हैं।

ट्रिब्यूनल ने यह भी कहा कि साफ किए गए सीवेज या कीचड़ का उपयोग उर्वरक के लिए किया जाना चाहिए। कोर्ट ने ईटीपी/सीईटीपी के रखरखाव के साथ-साथ सेप्टेज प्रबंधन और नदियों में पर्याप्त पानी प्रवाहित होता रहे इसका भी ध्यान रखने को कहा है।

ठोस कचरे से निपटने के लिए बठिंडा में क्या कुछ उठाए गए हैं कदम, रिपोर्ट में दी गई जानकारी

बठिंडा नगर निगम, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 का पालन करने और पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। 27 मार्च, 2024 को पंजाब की ओर से बठिंडा के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दायर एक रिपोर्ट के अनुसार, वे एम/एस जेआईटीएफ कचरा संयंत्र में वर्षों से जमा ठोस कचरे का वैज्ञानिक प्रबंधन करने के लिए सभी प्रयास कर रहे हैं।

गौरतलब है कि इस मामले में आवेदक की शिकायत छह जून, 2021 को मेसर्स जेआईटीएफ अपशिष्ट संयंत्र में लगी आग की घटना से जुड़ी थी। उनका दावा है कि आग इसलिए लगी क्योंकि डंपसाइट पर बहुत सारी ज्वलनशील सामग्री खुली छोड़ दी गई थी। इससे पता चलता है कि मेसर्स जेआईटीएफ समझौते के अनुसार शहरी कचरे का ठीक से प्रबंधन नहीं कर रहा है।

रिपोर्ट के मुताबिक डंपसाइट पर आग को रोकने के लिए एक पाइपलाइन बिछाई गई है। इसके लिए ट्रीटेड वेस्ट वाटर का उपयोग किया जाना है। बठिंडा नगर निगम ने वहां स्थाई रूप से एक फायर ट्रक भी तैनात किया है और एक भंडारण टैंक बनाया है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से डंपसाइट तक एक पाइपलाइन भी बिछाई गई है। इसके साथ ही वहां दुर्गंध न फैले इसके लिए डंप साइट के चारों ओर करीब 15 मीटर चौड़ी एक हरित पट्टी भी विकसित की गई है।