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तमिलनाडु में भयंकर बारिश के लिए अल नीनो जिम्मेवार, मौसम वैज्ञानिकों की राय

Akshit Sangomla

दिसंबर की शुरुआत में चक्रवात मिचौंग से चेन्नई में आई बाढ़ के बाद पिछले दो दिनों में दक्षिणी तमिलनाडु के कई हिस्सों में बाढ़ आई हुई है। इसका कारण उत्तर पूर्वी मॉनसून (एनईएम) है, लेकिन इसका असर अल नीनो की वजह से काफी बढ़ गया है।

इस साल का अल नीनो मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर में अल नीनो दक्षिणी दोलन घटना (ईएनएसओ) के सामान्य चरण से अधिक गर्म है, जो आमतौर पर के उत्तर पूर्वी मॉनसून दौरान होने वाली बारिश की चरम सीमा को बढ़ाता है।

18 दिसंबर को तमिलनाडु के पांच जिलों में 100 मिमी से अधिक बारिश हुई। इनमें सबसे अधिक तिरुनेलवेली में 363.6 मिमी थी, जो उस दिन की सामान्य वर्षा से 5094 प्रतिशत अधिक है और दूसरी सबसे अधिक तूतीकोरिन में 343.6 मिमी थी, जो सामान्य से 7059 प्रतिशत अधिक है।

मूसलाधार बारिश से दोनों शहरों में बाढ़ आ गई और तमिलनाडु सरकार ने 19 दिसंबर को इन्हें बाढ़ प्रभावित घोषित कर दिया है। जिन अन्य जिलों में अत्यधिक वर्षा हुई है, वे हैं तेनकासी (206.8 मिमी), विरुधुनगर (149.5 मिमी) और कन्याकुमारी (121.2 मिमी)।

यूनाइटेड किंगडम के रीडिंग विश्वविद्यालय के नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक के एक शोध वैज्ञानिक अक्षय देवरस ने कहा, "सामान्य तौर पर अल नीनो के कारण उत्तर-पूर्व मॉनसून की तीव्रता बढ़ जाती है। इससे क्षेत्र के चारों ओर निम्न दबाव प्रणाली या साइक्लोनिक सर्कुलेशन बढ़ गया है, जो बारिश के लिए आवश्यक नमी प्रदान कर रहे हैं।"

साइक्लोनिक सर्कुलेशन यानी चक्रवाती परिसंचरण वायुमंडल की ऊपरी परतों में हवाओं के चक्कर हैं, जो आमतौर पर वायुमंडल की निचली परतों में कम दबाव वाले क्षेत्रों को प्रेरित करते हैं और अंततः वर्षा का कारण बनते हैं। कभी-कभी चक्रवाती परिसंचरण क्षेत्र में नमी भरी हवाएं लाकर अपने आप बारिश का कारण बन सकते हैं।

दक्षिण कोरिया में जेजू नेशनल यूनिवर्सिटी के टाइफून रिसर्च सेंटर के शोध वैज्ञानिक विनीत कुमार सिंह ने डाउन टू अर्थ को बताया कि कन्याकुमारी के पास एक साइक्लोनिक सर्कुलेशन था, जिससे ऊपरी स्तर का मजबूत विचलन (डावर्जेंस) हुआ, जिससे एक महत्वपूर्ण निम्न स्तर का अभिसरण (कंवर्जेंस) बन गया। परिणामस्वरूप पूर्वी हवाओं द्वारा भारी नमी दक्षिण तमिलनाडु की ओर चली गई, जिससे अत्यधिक बारिश हुई।”

ऊपरी स्तर का विचलन वायुमंडल की ऊपरी परतों में हवा का फैलना है, जिसके कारण नीचे से हवा ऊपर उठती है। इससे अन्य हवाएं अपना स्थान ले लेती हैं, जिन्हें निम्न स्तर का अभिसरण कहा जाता है।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बॉम्बे के प्रोफेसर और मैरीलैंड विश्वविद्यालय के एमेरिटस प्रोफेसर रघु मुर्तुगुड्डे ने बताया कि एक व्यापक और फैला हुआ चक्रवाती तंत्र दक्षिण तमिलनाडु तट के पास है, जो उत्तर-पूर्वी हवाओं को और नीचे खींच रहा है और जहां हवाओं और लहरों का एक अभिसरण बना रहा है।

उन्होंने कहा, "लहरें चक्रवाती तंत्र से आ रही हैं, जिसने श्रीलंका और तमिलनाडु के बीच छोटी सी जगह में नमी भर दी है। मुझे लगता है कि एक पवन सुरंग (विंड टनल) का प्रभाव हुआ है।"

दक्षिण तमिलनाडु और श्रीलंकाई तटों के आसपास ऐसी भयंकर बारिश पहले भी देखी गई है। जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित एक शोध पत्र से पता चलता है कि उत्तर पूर्व मानसून (दिसंबर-फरवरी) के दौरान उन क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा दक्षिण पश्चिम मानसून के मौसम (जून-सितंबर) की तुलना में कहीं अधिक होना आम बात है।

अध्ययन में भारतीय उपमहाद्वीप में जलवायु परिवर्तनशीलता को समझने के लिए 30 अलग-अलग मौसम पैटर्न को देखा गया और पाया गया कि इनमें से कुछ शरद ऋतु और सर्दियों के मौसम में श्रीलंका और दक्षिण तमिलनाडु के आसपास अत्यधिक वर्षा से जुड़े थे।

अध्ययन के लेखकों में से एक देवरस का कहना है कि एक विशेष पैटर्न तूतीकोरिन और तिरुनेलवेली में मौजूदा बाढ़ के लिए उपयुक्त है। उन्होंने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर समझाया, “यह पैटर्न मुख्य रूप से उत्तर पूर्वी मॉनसून सीजन के दौरान मौजूद होता है। जब यह पैटर्न सक्रिय होता है, तो मॉनसून मजबूत होता है, जिससे श्रीलंका और तटीय तमिलनाडु में वर्षा बढ़ सकती है।”