सिलवंता देवी पिछले तीन दिन से लगातार कोशिश कर रही हैं कि उनके परिवार का नाम मुख्यमंत्री सुखाड़ राहत योजना में शामिल कर लिया जाए, लेकिन वह निराश लौट जाती है। कभी कहा जाता है कि उनके कागज पूरे नहीं हैं तो कभी कहा जाता है कि सर्वर काम नहीं कर रहा है। उन्हें चिंता है कि कहीं उनका परिवार राहत राशि से वंचित न रह जाए। वह कहती हैं कि अगर आज भी आवेदन नहीं हो पाया तो उन्हें रात को आना पड़ेगा।
दरअसल, सिलवंता देवी उन लोगों में से हैं, जो झारखंड में पड़े सूखे की वजह से अपनी खरीफ की फसल पूरी तरह गंवा चुकी हैं। सिलवंता देवी झारखंड के पलामू जिले के ब्लॉक मनातू के गांव पन्नाडीह की रहने वाली हैं। वह तीन दिन से पदमा कस्बे में स्थित कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) में ऑनलाइन आवदेन करने आई हैं।
सूखे से प्रभावित किसानों को राहत देने के लिए झारखंड सरकार द्वारा शुरू की गई मुख्यमंत्री सुखाड़ राहत योजना शुरू की है। इस योजना में ऑनलाइन आवेदन सीएससी के माध्यम से लिए जा रहे हैं। लेकिन इसके लिए किसानों को घंटों कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है।
किसानों यहां तक कि महिलाओं को भी रात-रात भर कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) पर बितानी पड़ रही है। तब भी वे अपना आवेदन नहीं कर पा रहे हैं।
राज्य सरकार के आंकड़े बताते हैं कि पूर्वी सिंहभूम एवं सिमडेगा को छोड़कर राज्य के 22 जिलों के 226 प्रखंडों को सूखाग्रस्त घोषित किया गया है। इन सभी प्रखंडों के तत्काल सूखा राहत हेतु प्रत्येक किसान को 3500 रुपए ( अग्रिम ) राशि देने का ऐलान किया है। सरकार का आकलन है कि राज्य के लगभग 30 लाख से अधिक किसान परिवार सूखे की चपेट में हैं, जिन्हें यह राहत राशि दी जाएगी।
राज्य सरकार ने आवेदन की अंतिम तारीख 30 नवंबर 2022 रखी थी, लेकिन इसे बढ़ा कर अब 15 दिसंबर कर दिया गया है। मुख्यमंत्री सुखाड़ राहत योजना की वेबसाइट में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक 8 दिसंबर तक 10,34,525 किसान आवेदन कर चुके हैं। इनमें से 5,70,883 किसान बुआई कर ही नहीं पाए, जबकि 4,11,629 किसानों को 33 प्रतिशत से अधिक फसल का नुकसान हुआ है। यानी कि आवेदन करने में अब केवल सात दिन शेष हैं और लगभग 20 लाख किसान आवेदन नहीं कर पाए हैं।
पदमा में सीएससी चला रहे रवि शंकर कुमार कहते हैं कि हमारे इलाके में तो पहले-पहल लिंक खुल ही नहीं रहा था। 29 नवंबर से लिंक खुलना शुरू हुआ, लेकिन उसके बाद सर्वर की दिक्कत आने लगी। रोजाना छह से सात घंटे सर्वर बंद रहता है। रवि कहते हैं कि रात में सर्वर थोड़ा सामान्य होता है, इसलिए किसानों को रात को बुलाकर आवेदन अपलोड कर रहे हैं।
वह बताते हैं कि रात को भी काफी किसान लाइन पर लग कर आवेदन कर रहे हैं। रवि के मुताबिक आसपास के लगभग हर इलाके में किसानों को बहुत नुकसान हुआ है। रोजाना 300 से 400 किसान आवेदन करने आते हैं, लेकिन सर्वर के सही से काम न करने के कारण 30 से 35 किसानों का ही आवेदन हो पाता है।
चतरा जिले के प्रतापपुर ब्लॉक के किसानों की दिक्कत यह है कि उनके ब्लॉक को सूखा ग्रस्त माना ही नहीं गया है, जबकि किसानों का कहना है कि इलाके में बारिश न होने के कारण उनका धान बिछड़ा (नर्सरी) में ही सड़ गया।
प्रतापपुर में सीएससी में काम करने वाले अखिलेश कुमार कहते हैं कि उनके इलाके में किसानों को 100 प्रतिशत धान की फसल का नुकसान हुआ है, लेकिन जब मुख्यमंत्री सूखाड़ राहत योजना में ऑनलाइन अप्लाई करते हैं तो बताया जाता है कि जिले में परतापुर और कुंदा ब्लॉक को सूखा प्रभावित घोषित नहीं किया गया है।
प्रतापपुर ब्लॉक के किसानों ने डाउन टू अर्थ को बताया कि उन्होंने अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार बिछड़ा (धान की नर्सरी) तैयार की थी, लेकिन जब बारिश नहीं हुई तो किसानों ने नर्सरी में ही धान छोड़ दी, जो वहीं सड़ गई।
प्रतापपुर ब्लॉक के गांव सतबहिनी के किसान रामस्वरूप यादव बताते हैं कि पांच किलो बीज का बिछड़ा (नर्सरी) तैयार किया था, लेकिन बारिश ही नहीं हुई, इसलिए बिछड़ा में खड़ी धान ही सूख गई।
किसानों की यह भी शिकायत है कि ऑनलाइन आवेदन करने के लिए उनसे 100 रुपए लिए जा रहे हैं, जबकि सरकार बार-बार बयान दे रही है कि केवल एक रुपया ही आवेदन के वक्त लिया जाएगा। फार्म में बकायदा लिखा गया है कि आवेदन के लिए एक रुपया से अधिक न दें।
किसानों ने डाउन टू अर्थ को बताया कि उन्हें कहा जा रहा है कि आवेदन का एक रुपया है और 100 रुपए केवीसी के लिए मांगे जा रहे हैं। हालांकि किसान डाउन टू अर्थ को यह नहीं बता पाए कि केवीसी का मतलब क्या होता है?
हालांकि सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक आवेदन के वक्त जो डॉक्यूमेंट जमा कराने होते हैं, उनमें आधार कार्ड, बायोमेट्रिक (अंगूठे की छाप), बैंक पास बुक, जमीन की रसीद और आवेदक के नाम पर वंशावली को स्कैन करा कर वेबसाइट पर अपलोड करना होता है।
वंशावली से आशय है कि गांव के मुखिया से सत्यापित कराना होता है कि आवेदक प्रभावित किसान से संबंधित है। इसी पूरी प्रक्रिया के नाम पर किसानों से 100 रुपए लिए जा रहे हैं। झारखंड मजदूर किसान यूनियन के संयोजक हेमंत दास कहते हैं कि आदिवासी किसान इतने सक्षम नहीं हैं कि वे 100 रुपए दे पाएं, सरकार को इस वसूली पर अंकुश लगाना चाहिए।
कई आदिवासी किसानों को पता ही नहीं है कि सरकार ने सुखाड़ राहत राशि देने का ऐलान किया है। हालात यह हैं कि राज्य की राजधानी और विधानसभा से मात्र लगभग 30 किलोमीटर दूर खुंटी जिले के गांव लुदुरु निवासी बिलू उरांव बताते हैं कि इस बार आधी ही धान हुई है, लेकिन जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने सुखाड़ राहत राशि के लिए आवेदन कर दिया है तो उन्होंने इंकार कर दिया, क्योंकि उन्हें इस बारे में पता ही नहीं था।
सरकारी रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में 38 लाख हेक्टेयर भूमि पर खेती करते हैं। उनमें से लगभग 27 लाख (71 प्रतिशत) किसान दो हेक्टेयर तक के छोटे और सीमांत किसान हैं। झारखंड में जून से सितंबर की अवधि (मॉनसून सीजन) के दौरान खरीफ मौसम में राज्य में 1022.9 मिमी बारिश होती है। लेकिन इस साल 817.9 मिलीमीटर बारिश हुई है। जो सामान्य से 20 फीसदी कम है।
खरीफ सीजन की राज्य की मुख्य फसल धान है, इसके अलावा मक्का, दलहन और तिलहन की खेती होती है। इस सीजन में राज्य में 28.27 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बुआई का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन 14.13 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई। यानी कि लगभग 50 फीसदी हिस्से में खेती नहीं हो पाई।