सूखे के कारण विकासशील देशों में कृषि क्षेत्र को लगभग 2900 करोड़ डॉलर (लगभग 2 लाख करोड़ रुपए) का नुकसान हुआ है। यह नुकसान 2005-2015 के बीच हुआ। मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र के संगठन (यूएनसीसीडी) द्वारा जारी श्वेतपत्र में यह आकलन किया गया है। श्वेत पत्र में कहा गया है कि कृषि को बाढ़, भूकंप और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के मुकाबले सबसे अधिक नुकसान सूखे से हुआ है।
श्वेत पत्र में सूखे को लेकर वर्तमान दृष्टिकोण और सूखे से निपटने की तैयारियों की चुनौतियों का विश्लेषण किया गया है। इस अध्ययन में बताया गया है कि 2003 और 2013 के बीच कृषि क्षेत्र को हुए कुल घाटे में से 25 फीसदी केवल जलवायु परिवर्तन की वजह से हुआ।
जबकि केवल सूखे से होने वाले नुकसान का आकलन किया जाए तो लगभग 80 प्रतिशत से अधिक नुकसान है, इसमें विशेष रूप से पशुधन और फसल उत्पादन शामिल हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हाल के दिनों में दुनिया भर में सूखे की वजह से आबादी, अर्थव्यवस्था, आजीविका और पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है। सूखे की स्थिति और उससे हुए नुकसान का आकलन अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, उत्तरी अमेरिका, एशिया, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और पूर्वी भूमध्य सागर जैसे विभिन्न क्षेत्रों में किया गया।
यूएनसीसीडी, विश्व मौसम विज्ञान संगठन, ग्लोबल वाटर पार्टनरशिप, एकीकृत सूखा प्रबंधन कार्यक्रम (आईडीएमपी), ग्लोबल फ्रेमवर्क ऑन एग्रीकल्चर फॉर एग्रीकल्चर (डब्ल्यूएएसएजी) के सहयोग से फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन (FAO) द्वारा यह पेपर तैयार किया गया।
रिपोर्ट में विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के कारण कृषि क्षेत्र को हुए नुकसान के विवरण का विश्लेषण किया गया। सूखे के बाद, तापमान, तूफान जैसी मौसम संबंधी आपदाओं की वजह से 26.5 बिलियन अमरीकी डालर का कृषि घाटा हुआ। बाढ़ की वजह से 19 बिलियन अमरीकी डालर का नुकसान पहुंचा, जबकि भूकंप और भूस्खलन से 10.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ। जैविक आपदाओं की वजह से (9.5 बिलियन डॉलर) और जंगलों में आग के कारण (1 बिलियन डॉलर) का नुकसान हुआ।
सूखा और ऊर्जा उद्योग
श्वेत पत्र में ऊर्जा उत्पादन पर सूखे के प्रभाव का विवरण भी दिया गया है जो विभिन्न विकासशील क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण चुनौती बन गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जलविद्युत संयंत्रों में बिजली पैदा करने के लिए पानी महत्वपूर्ण है। यह नवीकरणीय प्रौद्योगिकियों के लिए भी आवश्यक है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन देशों में लंबे समय तक सूखे ने पानी की भारी कमी पैदा की, जिससे ईंधन आयात पर अपने कीमती संसाधनों का इस्तेमाल करना पड़ा। रिपोर्ट में युगांडा का उदाहरण दिया गया है। 2010-11 में, बेहद कम बारिश होने के कारण युगांडा के हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट लगभग ठप पड़ गए और 40 फीसदी बिजली की कमी हो गई। तब युगांडा ने दूसरे देशों से महंगा कोयला मंगा कर बिजली उत्पन्न की। पानी की कमी से विनिर्माण क्षेत्र, बिजली, खद्य आपूर्ति, मांग में कमी के कारण अर्थव्यवस्था पर भी बहुत बुरा असर पड़ा।