चक्रवात फोनी के चलते जान-माल के बड़े नुकसान का अंदेशा है। उड़ीसा के पुरी, गंजम, केंद्रपाड़ा, जगतसिंहपुर, कटक, जयपुर, खुर्दा, भद्रक और बालासोर में लोगों से जगह खाली करायी जा सकती है। यहां रहने वाले लाखों लोग प्रभावित हो सकते हैं। राज्य के विशेष राहत कमिश्नर ने बताया कि वायु सेना की ओर से जगह खाली कराने को लेकर अनुमति मिल गयी है। वायु सेना ने इसके लिए दो हेलीकॉप्टर की मंजूरी दी है।
राहत कमिश्नर सेठी ने बताया कि सभी कर्मचारियों की छुट्टी रद्द कर दी गयी है। चक्रवात फोनी के मद्देनजर डॉक्टर, पैरामेडिकल कर्मचारियों को आगाह कर दिया गया है। जिलाधिकारियों को कहा गया है कि वे कर्मचारियों की छुट्टी न दें। जो छुट्टी पर हैं वे भी तत्काल अपनी ड्यूटी ज्वाइन करें। वहीं, उड़ीसा के पुलिस महानिदेशक आरपी शर्मा ने सभी पुलिसकर्मियों और अधिकारियों की छुट्टी रद्द कर दी है।
राहत और बचाव कार्य के लिए 12 वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों को प्रभावित होने वाले जिलों में राहत-बचाव कार्य के लिए नियुक्त किया गया है।
राहत-बचाव के लिए एक लाख से अधिक फूड पैकेट तैयार कर लिए गए हैं। यदि जरूरत पड़ी तो इन्हें हेलिकॉप्टर्स से वितरित कराया जाएगा। पुरी में सभी पर्यटकों को भी जगह खाली करने के निर्देश जारी कर दिए गए हैं। साथ ही होटलों को 2 से 5 मई तक कमरे बुक न करने के आदेश जारी किये गए हैं।
यात्रियों के सुरक्षा को देखते हुए पूर्वी तटीय रेलवे ने 2 मई से 81 ट्रेनें निरस्त की हैं। दो ट्रेनों का मार्ग परिवर्तित कर दिया गया है। शैक्षणिक संस्थाएं अगले आदेश तक बन्द रहेंगे। बीजू पटनायक यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी (बीपीयूटी) ने 164 कॉलेजों की 2 से 4 मई तक होने वाली परीक्षा की तिथि को बदलकर 25 मई, 27 और 28 मई कर दिया है। पारादीप पोर्ट ट्रस्ट अथॉरिटी ने बंदरगाहों पर जहाजों का संचालन भी रोक दिया है।
उड़ीसा के चक्रवात फोनी की ताकत और तीव्रता दोनों पूर्व चक्रवातों से ज़्यादा हो सकती है। आईआईटी दिल्ली में सेंटर फॉर एटमॉसफेरिक साइंस के पूर्व प्रोफेसर और आईआईटी भुवनेश्वर के विजिटिंग प्रोफेसर उमा चरण मोहंती ने उड़ीसा में पूर्व मानसून आये ऐसे ही चक्रवातों की याद दिलाई। उन्होंने बताया कि 27 मई 1823 को बालासोर जिले में चक्रवात ने करीब 10 किलोमीटर में तबाही मचाई थी। मई, 1834 और 27 अप्रैल, 1840 को उड़ीसा तट पर काफी गम्भीर चक्रवात आया था।
अप्रैल, 1850 में आये चक्रवात ने सैकड़ों लोगों की जीवनलीला समाप्त कर दी थी। यह चक्रवात अभी के केंद्रपाड़ा जिले से पश्चिम बंगाल के मिदनापुर तक आया था। 26 मई 1887 व 23 मय 1893 को भी गम्भीर चक्रवात आया था। इसमें पूरी, कटक, बालासोर जिला काफी प्रभावित हुआ।
13 मई, 1910 को गोपालपुर तट पर चक्रवात टकराया था। मई 1914, मई 1917, मई 1982, 23 मई 1989 ऐसी तिथियां हैं जब उड़ीसा में भयानक चक्रवात आये।
प्रोफेसर मोहंती ने बताया कि अक्टूबर, 1803 में जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने उड़ीसा में कदम रखा तो प्रशासन को गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ा। यह समस्याएं राजनीति से जुड़ी हुई नहीं थी बल्कि यह प्राकृतिक आपदाओं, खासतौर से चक्रवात से जुड़ी हुई थी। कम्पनी का प्रशासन प्रत्येक वर्ष चक्रवात झेल रहा था।
उड़ीसा के तटों पर आने वाले चक्रवात के इतिहास का अध्ययन के दौरान हमें 1875 से अबतक का आंकड़ा भारतीय मौसम विभाग से मिला। क्योंकि मौसम विभाग की स्थापना 1875 में ही हुई थी। हालांकि, इससे पहले यानी 1804 से 1875 तक के चक्रवात का इतिहास जुटाने के लिए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया के आंकड़े का इस्तेमाल किया गया है। मौसम विभाग ने 1960 से सेटेलाइट के जरिये रिमोट सेंसिंग तकनीक का इस्तेमाल करना शुरू किया तबसे न सिर्फ आंकड़ों की गुणवत्ता में सुधार हुआ बल्कि भौगोलिक क्षेत्र का दायरा भी बढ़ा है।
भारतीय मौसम विभाग, भुवनेश्वर के पूर्व निदेशक सरत साहू ने बताया कि पूर्व-मानसून चक्रवात फोनी जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान में वृद्धि का नतीजा है। समुद्र में 31 डिग्री सेल्सियस का तापमान चक्रवातीय तूफान फोनी का जनक है। चक्रवात के पथ को प्रभावित करने का कारण भी जलवायु परिवर्तन है।
केंद्रपाड़ा और जगतसिंहपुर जिले में तट किनारे बसे गांवों की आबादी की सुरक्षा को लेकर कवायद तेज है। केन्द्रपारा के सब कलेक्टर संजय मिश्रा ने बताया कि गांव से लोगों को बाहर निकालने के लिए अपील कर दी गई है। स्थानीय स्तर पर पंचायत संस्था और सरपंच से भी बात की जा रहा है। समुद्र किनारे बसे गांवों में राजनगर, महाकलपदा और राजकनिका ब्लॉक के लोगों को तैयार किया जा रहा है। 1971 में इन गांवों में भयानक तबाही मची थी। करीब 5 हजार लोग इसके आगोश में समा गए थे। वहीं 1999 में जगतसिंहपुर जिले के इरसामा में भयानक चक्रवात के कारण 10 हजार से अधिक लोग मारे गए थे।