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बादल फटने से सात महीनों में 26 बार हिमालयी राज्यों में मची तबाही, जलवायु परिवर्तन के साफ संकेत

2013 में विनाशकारी बादल फटने की घटना के बाद 5000 लोगों की जान चली गई थी। इसे देखेते हुए डॉप्टर वेदर रडार जैसी चेतावनी प्रणाली को मजबूत करने की बात उठी थी, जिसे अभी तक नहीं लगाया गया।

Vivek Mishra

हिमालय क्षेत्र में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड ऐसे राज्य बन गए हैं, जहां कभी भी और किसी भी वक्त बादल फट सकता है। इस वर्ष लगातार अचानक होने वाली ऐसी घटनाओं के चलते व्यापक स्तर पर जान-माल की क्षति हुई है, जिसका आकलन जारी है। बादल फटने की घटना अमूमन जुलाई और अगस्त में ज्यादा देखी जाती है लेकिन इस बार मई महीने में काफी तबाही मची है। वैज्ञानिक इन घटनाओं के पीछे जलवायु परिवर्तन के स्पष्ट संकेत देख रहे हैं।  

डाउन टू अर्थ ने विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स और स्थानीय लोगों की पुष्टि के आधार पर पाया कि जनवरी 2021से लेकर 29 जुलाई,  2021 तक हिमालयी राज्यों में कुल 26 बार बादल फटने की घटनाएं घट चुकी हैं। इनमें से कुछ घटनाओं की पुष्टि स्थानीय प्राधिकरण के जरिए की गई है। हालांकि भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) की ओर से बादल फटने के मामलों की एक भी स्पष्ट पुष्टि नहीं की गई है।
 
 
बादल फटने की घटना को बेहद कठिन मापदंडों पर मापा जाता है। शायद इसीलिए आईएमडी के मुताबिक 1970-2016 के बीच कुल 30 क्लाउड बर्स्ट की घटनाएं दर्ज हुई हैं।  इनमें 17 उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में दर्ज की गई हैं।

आईएमडी की परिभाषा के मुताबिक जब तक एक घंटे में 100 मिलीमीटर वर्षा नहीं होती तब तक वह क्लाउड बर्स्ट नहीं माना जाएगा। वहीं, कुछ वैज्ञानिक ऐसे भी हैं जो इन घटनाओं को मिनी क्लाउडबर्स्ट की श्रेणी में रखते हैं। 

18 जुलाई, 2021 को महाराष्ट्र के मंत्री आदित्य ठाकरे ने मुंबई में हुई भारी वर्षा को मिनी क्लाउडबर्स्ट की संज्ञा ही दी थी। 

पुणे स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी के वैज्ञानिक एनआर देशपांडे और सहयोगियों ने अपने शोधपत्र में मिनी क्लाउड बर्स्ट को परिभाषित करते हुए बताया है कि यदि लगातार दो घंटे 50 मिलीमीटर या उससे अधिक वर्षा हो तो उसे मिनी क्लाउड बर्स्ट (एमसीबी) की श्रेणी में रखा जाए।  

इस शोधपत्र में यह भी निष्कर्ष निकाला गया कि जून महीने के दौरान पश्चिमी घाट में, जुलाई और अगस्त के दौरान मध्य भारत और हिमालय की ऊंची चोटी वाली घाटियों में एमसीबी अधिक हुआ है। साथ ही हिमालय क्षेत्र और पश्चिमी तट पर ज्यादातर घटनाएं काफी सुबह महसूस की गईं। वहीं, गर्मी मानसून की वर्षा रिकॉर्ड करने वाले 126 स्टेशनों (1969-2015) के वर्षा आंकडों के आधार पर बताया कि न सिर्फ क्लाउड बर्स्ट बल्कि मिनी क्लाउड बर्स्ट घटनाओं में काफी बढ़ोत्तरी हो रही है। संभव है कि आगे अध्ययनों से हाल-फिलहाल हुई घटनाओं के बारे में स्पष्ट जानकारी मिले। 

बहरहाल वैज्ञानिकों के मुताबिक क्लाउड बर्स्ट एक बेहद ही स्थानीय घटना है। बहुत कम समय में अतिवृष्टि (एक्सट्रीम रेनफॉल) और ~10 एम/एस रफ्तार से  ~4 – 6  एमएम आकार वाली बूंदें  क्लाउड बर्स्ट की पहचान हैं। 

क्या जलवायु परिवर्तन है वजह?

श्रीनगर एनआईटी के डॉक्टर मुनीर अहमद डाउन टू अर्थ से बताते हैं कि बादलों के फटने के पीछे एक प्राकृतिक व्यवस्था काम करती है। हिंद महासागर से आने वाली नमी हिमालयी राज्यों पर पहुंचती है। जितना ज्यादा नमी महासागरों से हिमालय पर आएगी उतना ज्यादा ्बादल फटने की घटनाएं हो सकती हैं। हिमालय क्षेत्र में तापमान का बढ़ना या घटना और उसका क्लाउड बर्स्ट से रिश्ता एक शोध का विषय है। हालांकि प्राथमिक तौर पर यह कहा जा सकता है कि महासागर शायद गर्म हो रहे हैं जिसकी वजह से नमी वाली हवाएं हिमालय पहुंच रही है और जो क्लाउड बर्स्ट का कारण बन रही हैं।

महासागरों के गर्म होने के पीछे जलवायु परिवर्तन का स्पष्ट संकेत है। ऐसे में जल्दी-जल्दी बादल फटने की घटनाएं इसी का परिणाम हो सकती हैं। 

कैसे होता है क्लाउड बर्स्ट 

क्लाउडबर्स्ट तब होता है जब नमी से चलने वाली हवा एक पहाड़ी इलाके तक जाती है, जिससे बादलों के एक ऊर्ध्वाधर स्तंभ का निर्माण होता है जिसे क्यूमुलोनिम्बस के बादलों के रूप में जाना जाता है। इस तरह के बादल आमतौर पर बारिश, गड़गड़ाहट और बिजली गिरने का कारण बनते हैं। बादलों की इस ऊपर की ओर गति को 'ऑरोग्राफिक लिफ्ट' के रूप में भी जाना जाता है। इन अस्थिर बादलों के कारण एक छोटे से क्षेत्र में भारी बारिश होती है और पहाड़ियों के बीच मौजूद दरारों और घाटियों में बंद हो जाते हैं।

बादल फटने के लिए आवश्यक ऊर्जा वायु की उर्ध्व गति से आती है। क्लाउडबर्स्ट ज्यादातर समुद्र तल से 1,000-2,500 मीटर की ऊंचाई पर होते हैं। नमी आमतौर पर पूर्व से बहने वाली निम्न स्तर की हवाओं से जुड़े गंगा के मैदानों पर एक कम दबाव प्रणाली (आमतौर पर समुद्र में चक्रवाती तूफान से जुड़ी) द्वारा प्रदान की जाती है।

क्यों नहीं होता है अलर्ट

2013 में विनाशकारी बादल फटने की घटना के बाद 5000 लोगों की जान चली गई थी। इसे देखेते हुए डॉप्टर वेदर रडार जैसी चेतावनी प्रणाली को मजबूत करने की बात उठी थी, जिसे अभी तक प्रमुख क्षेत्रों में नहीं लगाया जा सका है। 

जनवरी 2021 में आईएमडी और राज्य सरकार ने कुमाऊं के मुक्तेश्वर में एक डॉपलर मौसम रडार स्थापित किया, जो कई वर्षों से पाइपलाइन में था। इसकी स्थापना का कारण क्लाउडबर्स्ट और अन्य चरम वर्षा की घटनाओं की भविष्यवाणी करना है। 

संयुक्त राज्य अमेरिका में मैरीलैंड विश्वविद्यालय के जलवायु वैज्ञानिक रघु मुर्तुगुडे ने 12 मई, 2021 को डाउन टू अर्थ को बताया था कि डॉपलर वेदर रडार संभावित बादल फटने के वास्तविक समय की ट्रैकिंग के लिए आदर्श हैं। खासकर यदि उनके पास एक नेटवर्क है जो उन्हें हवाओं और नमी को ट्रैक करने की अनुमति देता है। 

हालांकि गढ़वाल क्षेत्र में यह डॉप्लर सिस्टम अभी तक नहीं लग पाए हैं। और वर्तमान रडार उन जगहों से 200-400 किमी दूर है जहां हाल ही में बादल फटने की घटनाएं हुई हैं। इसलिए उन्हें भविष्यवाणी करने में ज्यादा मदद नहीं मिली।