आपदा

मैंग्रोभ के जंगल और भाटा ने कस दी थी बुलबुल तूफान की नकेल!

Umesh Kumar Ray

एक पखवाड़ा पहले पश्चिम बंगाल के सुंदरवन में तांडव मचाने वाले बुलबुल तूफान से जो नुकसान हुआ है, वो और भी बढ़ सकता था, लेकिन मैंग्रोभ वन व भाटा के कारण तबाही कम हुई।

हालांकि, वर्ष 2009 में सुंदरवन में आए आइला तूफान के मुकाबले इस बार नुकसान ज्यादा ही हुआ है, लेकिन जानकारों का कहना है कि बुलबुल तूफान जितना प्रभावशाली था, अगर उस वक्त ज्वार आया रहता और मैंग्रोभ वन नहीं होता, तो कल्पनातीत नुकसान हो सकता था।

गौरतलब है कि वर्ष 2009 में सुंदरवन में 120 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से आइला तूफान आया  था। तूफान के कारण 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी और करीब 1 लाख लोग बुरी तरह प्रभावित हुए थे। वहीं, ढाई हफ्ते पहले जो बुलबुल तूफान सुंदरवन में आया था, उसकी रफ्तार आइला के मुकाबले 10 किलोमीटर ज्यादा थी। बुलबुल तूफान 130 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से आया था और इसका असर पांच से छह घंटों तक था।

सुंदरवन के मौसनी द्वीप पर सालों से रहने वाले 75 वर्षीय जलालुद्दीन शेख को याद नहीं है कि आखिरी बार कब इतना प्रचंड तूफान आया था। वह कहते हैं, “आइला तूफान तो इसके आगे कुछ भी नहीं था। मुझे जबसे याद है, तब से अब बुलबुल जैसा तूफान मैंने नहीं देखा है।”

बुलबुल तूफान का लैंडफाल सागरद्वीप के पास 9 नवंबर की शाम को हुआ था। जलालुद्दीन शेख ने कहा, “शाम से तूफान का कहर जो शुरू हुआ, तो 5-6 घंटे तक इसका प्रभाव रहा। एक बार जोर की आंधी आती थी और फिर छह-सात मिनट की नीरवता छा जाती थी। इसके बाद फिर कुछ मिनट के लिए उसी रफ्तार से दोबारा आंधी आती और फिर कुछ मिनटों के लिए सन्नाटा छा जाता। पांच-छह घंटे तक ऐसा ही चलता रहा।”

जादवपुर विश्वविद्यालय के समुद्रविज्ञान विभाग से जुड़े प्रो. तुहीन घोष कहते हैं, “आइला के मुकाबले यह तूफान ज्यादा मारक था, लेकिन संयोग से उस वक्त भाटा आया हुआ था, इसलिए जो भी नुकसान हुआ, वो तूफान की रफ्तार की तुलना में कम हुआ।”

दरअसल, सुंदरवन में ज्वार और भाटा काफी कुछ तय करता है। ज्वार के वक्त पानी ज्यादा रहता है, जबकि  भाटा के वक्त समुद्र का जलस्तर सामान्य से 7-8 फीट कम रहता है। आइला के वक्त ज्वार आया हुआ था, जिससे जलस्तर काफी बढ़ा हुआ है। चूंकि तूफान की रफ्तार तेज थी, तो समुद्र में बड़ी लहरें उठती थीं और बांधों को तोड़ देती थीं। बुलबुल तूफान के वक्त भाटा के कारण जलस्तर सामान्य से 7-8 फीट नीचे था, लिहाजा तटबंध नहीं टूटे।  

भाटा के साथ-साथ मैनग्रो वन भी तूफान के प्रभाव को कम करने में मददगार साबित हुआ। नेचर एनवायरमेंट एंड वाइल्डलाइफ सोसाइटी (न्यूज) की ज्वाइंट सेक्रेटरी व प्रोग्राम डायरेक्टर अजंता डे ने कहा, “सागरद्वीप के पास लैंडफाल करने के बाद तूफान कुमीरमारी, हिगलगंज, गोसाबा के ऊपर से होते हुए बांग्लादेश की तरफ गया। इन इलाकों में पर्याप्त मैनग्रो जंगल हैं।”

जानकारों का कहना है कि मैनग्रो वन न केवल तूफान का असर कम कर सकता है बल्कि जमीन के कटाव को भी रोकता है। साथ ही ये प्राकृतिक तौर पर मिट्टी को अपने इर्द-गिर्द जमा भी करता है।

प्रो. तुहीन घोष बताते हैं, “मैनग्रो वन की खासियत ये है कि ये उसी जगह पनपता है, जहां ज्वार व भाटा आता हो। ऐसा शायद इसलिए भी होता है क्योंकि मैनग्रो की जड़ों में मिट्टी को बांध रखने की अद्भुत क्षमता होती है। ये ज्वार के वक्त पानी के साथ आनेवाली मिट्टी को रोक लेती है जिससे भू-स्खलन नहीं होता है, उल्टे भूखंड का दायरा बढ़ने लगता है।”

हाल के कुछ वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का जलस्तर बढ़ने से सुंदरवन के कई द्वीपों में कटाव तेजी से हो रहा है जिससे इनका अस्तित्व खतरे में है। कटाव बढ़ने के पीछे एक अहम वजह ये भी है कि सुंदरवन में मैनग्रो वन का कटाव खूब हुआ है।

अजंता डे कहती है, “प्रकृति ने द्वीपों को सुरक्षित रखने के लिए मैनग्रो वन की शक्ल में प्राकृतिक समाधान दिया है। अतः प्राकृतिक तरीकों से ही द्वीपों को बचाया जा सकता है, इसलिए मैनग्रो वन का दायरा बढ़ाना ही होगा। अगर हम मैनग्रो वन नहीं लगाएंगे, तो एकदिन पूरा दक्षिण बंगाल पानी में समा जाएगा।”