गुजरात स्टेट एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज के मुताबिक, चक्रवात बिपरजॉय सौराष्ट्र और कच्छ को प्रभावित करने के लिए तैयार है, यह वो क्षेत्र हैं जो पहले ही चक्रवातों के प्रति अत्यंत संवेदनशील हैं। गौरतलब है कि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने भविष्यवाणी की है कि अत्यंत गंभीर श्रेणी का चक्रवाती तूफान 'बिपरजॉय' सौराष्ट्र और कच्छ से होकर गुजरेगा जो आगे जाकर गुजरात में जखाऊ के पास मांडवी (गुजरात) और कराची (पाकिस्तान) के बीच से होते हुए पाकिस्तान के तट को पार करेगा। इसके 15 जून 2023 को शाम 4 से 8 बजे के बीच टकराने की आशंका है।
बता दें कि भारत में सबसे लम्बी तटरेखा गुजरात की है जो करीब 1,663 किलोमीटर लम्बी है। साथ ही जलवायु की अपनी अद्वितीय परिस्थितियों की वजह से इसपर विशेष रूप से चक्रवातों का खतरा कहीं ज्यादा है।
2011 में की गई जनगणना के अनुसार गुजरात की 40 तटीय तालुकों में करीब 99 लाख लोग बसे हैं। वहीं गुजरात के लिए जारी क्लाइमेट एक्शन प्लान के मुताबिक कच्छ क्षेत्र में जनसंख्या का घनत्व कम है। यही वजह है कि सरकारी सेवाओं का इन क्षेत्रों तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है।
एक्शन प्लान के अनुसार पिछले 100 वर्षों में 120 से ज्यादा चक्रवात गुजरात से गुजरे हैं। विशेष तौर पर सौराष्ट्र 2014 में आए चक्रवाती तूफान नीलोफर, और 2019 में आए तूफान वायु और महा और इनके बाद 2020 में आए निसर्ग से विशेष रूप से प्रभावित हुआ था।
गुजरात ने जून में कहीं अधिक चक्रवात देखे हैं। 1965 से 2022 के बीच, जून के महीने में अरब सागर के ऊपर करीब 13 चक्रवात आए हैं। आईएमडी के अनुसार, इनमें से दो ने गुजरात के तट को पार किया था, जबकि एक ने महाराष्ट्र, एक पाकिस्तानी तट, और तीन ओमान-यमन के तटों से होकर गुजरे थे जबकि छह चक्रवात समुद्र के ऊपर ही कमजोर होकर खत्म हो गए थे।
बता दें की गुजरात के तट को पार करने वाले दो चक्रवातों में से एक ने 1996 में गंभीर चक्रवाती तूफान का रूप ले लिया था, जबकि दूसरा 1998 में एक अत्यंत गंभीर चक्रवाती तूफान के रूप में टकराया था।
जलवायु में आते बदलावों से बढ़ रहा है चक्रवातों का खतरा
वैज्ञानिकों की मानें तो वैश्विक तापमान में होती वृद्धि के चलते समुद्र की सतह का तापमान बढ़ रहा है, नतीजन अरब सागर में पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा चक्रवात आ सकते हैं। साथ ही इनकी तीव्रता और लम्बे समय तक टिकने का अंदेशा है।
शोधकर्ताओं ने पिछले चार दशकों के दौरान अरब सागर में आने वाले चक्रवातों की कुल अवधि में 80 फीसदी की वृद्धि दर्ज की है। इसी तरह अरब सागर में आए चक्रवातों की संख्या में भी 52 फीसदी की वृद्धि हुई है। वहीं यदि बहुत गंभीर श्रेणी के चक्रवातों की बात करें तो उनमें भी 150 फीसदी की वृद्धि हुई है।
इस बारे में जेजू नेशनल यूनिवर्सिटी में पोस्ट-डॉक्टरेट शोधकर्ता विनीत कुमार ने ट्विटर पर जानकारी साझा करते हुए लिखा है कि, "चक्रवात बिपरजॉय 192 घंटों तक सक्रिय रहने के कारण अब अरब सागर के इतिहास में सबसे लंबे समय तक रहने वाला चक्रवात बन गया है, जो जून 1998 में आए चक्रवात के रिकॉर्ड को तोड़ चुका है।"
वहीं रीडिंग विश्वविद्यालय से जुड़े जलवायु वैज्ञानिक अक्षय देवरस का कहना है कि 15 जून की दोपहर के बाद भारत-पाकिस्तान की सीमा पर टकराने के बाद चक्रवात बिपरजॉय 16 और 17 जून को उत्तरी गुजरात और दक्षिणी राजस्थान में भारी बारिश की वजह बनेगा।" उनके अनुसार वहां कुछ क्षेत्रों में केवल दो दिनों में ही इतनी बारिश होगी जितनी पूरे जून में नहीं हुई है।
यदि विश्व बैंक की मानें तो, गुजरात के 26 में से 19 जिले 2050 तक जलवायु परिवर्तन के लिए हॉटस्पॉट बन सकते हैं, क्योंकि वहां तापमान में दो से ढाई डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने की आशंका है।
वहीं गुजरात इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात में निरंतर चलने वाली हवाएं आमतौर पर अधिकतम 64 से 90 समुद्री मील तक पहुंचती हैं, जो पश्चिमी तट पर सबसे अधिक है। इतना ही नहीं राज्य के करीब 1,700 गांवों को चक्रवाती हवाओं के प्रति संवेदनशील के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
बता दें कि चक्रवात अपने साथ भारी बारिश भी लाते हैं, जिससे बुनियादी ढांचे और सम्पति को नुकसान होता है। इससे परिवहन नेटवर्क में बाधा आ जाती है, जल प्रदूषण और जीवन के लिए खतरा जैसे प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं।
चूंकि उत्तर-पश्चिमी गुजरात एक अत्यंत शुष्क क्षेत्र है, ऐसे में वहां बुनियादी ढांचे का प्रबंधक करने वालों को अनुकूलन से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही चक्रवात तूफानी लहरों के जोखिम को भी बढ़ा देते हैं, जिससे फसलों और जीविका को व्यापक नुकसान होता है।
इतना ही नहीं इसकी वजह से हवाई अड्डों को गंभीर नुकसान उठाना पड़ता है। पानी, सीवेज और गैस पाइपलाइन के नेटवर्क को नुकसान होता है। बिजली, टेलीफोन और अन्य संचार व्यवस्था गड़बड़ा जाती है। इसका खामियाजा रेलवे ओवरहेड लाइनों को भी होता है साथ ही बड़ी संख्या में पेड़ भी इसकी भेंट चढ़ जाते हैं। संचार सेवाओं में आई रुकावट के चलते आपातकालीन स्वास्थ्य सहायता में भी देरी होती है।
गौरतलब है कि ऐसा ही कुछ 2019 में आए चक्रवात वायु के दौरान देखने को मिला था, जिसकी वजह से राज्य में छारा, पिपावाव, स्वान एनर्जी की फ्लोटिंग एलएनजी इकाइयों, रिलायंस सिक्का जेटी, सलाया, ओखा, पोरबंदर और दीन दयाल पोर्ट (कांडला में) पर कार्गो का आना जाना बंद कर दिया गया था।
यह चक्रवात, वितरण नेटवर्क को भी प्रभावित कर सकते हैं जिससे केमिकल या गैस रिसाव भी हो सकते हैं। इसकी वजह से किसी क्षेत्र में पूरी आबादी प्रभावित हो सकती है। यह तूफान पीने के पानी को भी दूषित कर देते हैं। यह राज्य की अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान पहुंचाते हैं। इनकी वजह से कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, निर्माण, बिजली, बंदरगाहों और हवाई अड्डों पर भी असर पड़ता है।
कब तक कमजोर पड़ेगा चक्रवाती तूफान 'बिपरजॉय'
स्टेट एक्शन प्लान के मुताबिक मैंग्रोव, समुद्र तट पर चक्रवातों के प्रभाव को कम कर सकते हैं। भारतीय वन सर्वेक्षण के अनुसार, मैंग्रोव ने 2017 में गुजरात के 1,140 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर किया हुआ था।
ऐसा नहीं है कि गुजरात को केवल चक्रवातों से खतरा है। अतीत में अपनी भू-जलवायु और भूवैज्ञानिक विशेषताओं के कारण गुजरात अन्य प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं जैसे सूखा, बाढ़, सूनामी, लू और बिजली गिरने जैसी आपदाओं से भी जूझता रहा है।
14 जून, 2023 को, आईएमडी ने कहा था कि चक्रवात बिपरजॉय के कारण कच्छ, देवभूमि द्वारका, पोरबंदर, जामनगर, राजकोट, जूनागढ़ और गिर-सोमनाथ में 65 से 75 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चल यहीं हैं जो 85 किमी प्रति घंटे तक जा सकती हैं। वहीं 15 जून 2023 को, कच्छ, देवभूमि द्वारका, पोरबंदर, जामनगर, राजकोट, जूनागढ़ और मोरबी में हवा की गति बढ़कर 125 से 135 किलोमीटर प्रति घंटा तक पहुंच गई थी, जो 145 किलोमीटर प्रति घंटा तक जा सकती है।
हालांकि चक्रवात बिपरजॉय के टकराने के बाद कमजोर पड़ने की उम्मीद है। लेकिन कच्छ, देवभूमि द्वारका, जामनगर और मोरबी के निचले इलाकों में ज्वार आने की आशंका है। वहीं 16 जून 2023 की सुबह तक इसके मध्यम से तेज चक्रवाती तूफान में बदल जाने की आशंका है। इसके बाद यह यह उत्तर पूर्व की ओर बढ़ेगा और राजस्थान में प्रवेश करेगा, जैसा कि आईएमडी ने भविष्यवाणी की थी। वहीं 17 जून की सुबह तक इसके कमजोर पड़ने की उम्मीद है।