आपदा

बिहार: 2019 के बाढ़ पीड़ितों को अब तक नहीं मिला मुआवजा

Rahul Kumar Gaurav

मानसून सीजन 2021 में बिहार में 33 फीसदी फसल बर्बाद हो गई। बिहार सरकार ने किसानों को लगभग 650 करोड़ रुपए का मुआवजा देने का ऐलान किया है, लेकिन किसानों को मुआवजा मिलता कितना है, यह जानने के लिए आइए चलते हैं बिहार के सुपोल जिले के कुछ गांवों में-

"मेरे पास पूर्वज की दी हुए सात एकड़ जमीन थी। जिसमें से दो एकड़ जमीन 2010 में बेच दी थी। बाकी बची 5 एकड़ जमीन पर ठीकठाक खेती हो जाती थी और पारिवारिक जरूरतें आसानी से पूरी कर लेते थे, लेकिन 2019 में आई बाढ़ में पूरी पांच एकड़ जमीन नदी के कटाव की भेंट चढ़ गई। सरकार की ओर से कहा गया था कि इसका मुआवजा मिलेगा, लेकिन दो साल बीत गए, अब तक मुआवजा नहीं मिला। ऐसे में परिवार चलाने के लिए कुछ तो करना होगा, इसलिए मजदूरी करने कभी पंजाब चल जाता हूं तो कभी दिल्ली।" यह कहते-कहते लखन रुआंसे हो उठते हैं।

लखन मंडल बिहार के सुपौल जिले के परसामाधो गांव में रहते हैं। वह अब धान काटने के लिए पंजाब जा रहे हैं। उनकी ही तरह इसी गांव की 55 वर्षीय चंद्रिका देवी का घर 2020 में आई बाढ़ में बह गया था। वह भी मुआवजे के लिए चक्कर लगा रही हैं।

सुपौल जिला नौआबाखर पंचायत के मुखिया रामप्रसाद साह डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि, "2019 में ही 62 परिवार का घर कोसी में कट गया था। किसी भी पीड़ित को सहायता राशि मुहैया नहीं कराया गया है। इस वर्ष भी 17 निजी आवास के साथ स्कूल का भवन भी कोसी नदी में कट गया। सरकारी अफसर प्रत्येक व्यक्ति को 4100 रुपए घर बनाने के लिए और और 6000 रुपए महीना जीवन यापन के लिए देने का वायदा करके गए हैं। 2019 के पीड़ित परिवार अभी तक अंचल कार्यालय का चक्कर काट रहे हैं। पता नहीं 2021 के पीड़ित को कब मुआवजा मिलेगा?"

"इस वर्ष आई बाढ़ की वजह से सिसौना गांव के वार्ड 11 और 12 के 170 घर नदी में समा चुकी है। लोग सड़क से टोल प्लाजा तक ऊंचे स्थान पर शरण लिए हुए हैं। कटाव पीड़ितों का नाम सरकार लेकर गई है। डोर टू डोर सर्वेक्षण किया जा रहा है। लेकिन अभी तक सरकार के द्वारा पीने योग्य पानी की व्यवस्था भी नहीं की गई है।" गांव के मुखिया विजय चौधरी ने बताया।

सीओ संध्या कुमारी बताती है कि, "वर्ष 2019 और 2020 दोनों वर्ष की सूची अनुमंडल कार्यालय को पूर्व में ही भेज दिया गया था। लेकिन त्रुटि के चलते सभी सूची वापस कर दी गई हैं। सुधारकर पुनः अनुमंडल कार्यालय को भेजकर लोगों के बैंक खाते में राशि भेज दी जाएगी। इसके बाद इस वर्ष के पीड़ितों को भी मुआवजा जल्द ही मिल जाएगी"

"22 हजार की जनसंख्या वाले नौआबाखर पंचायत में  8 हजार पुरूष होंगे। जिसमें 30-35% गांव में खेती पर निर्भर है। जिसके पास जमीन ठीक-ठाक है। बाकी लोग दिल्ली और पंजाब में रहकर अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं।"गांव के 70 साल के बुजुर्ग कपल मंडल डाउन टू अर्थ को बताते है।

"गांव में 3000 किसान है, जो खेती पर निर्भर है। खेती लायक जमीन की बात करें तो लगभग 7 हजार बीघा जमीन है जिसमें मुख्य रूप से धान, गेहूं और जूट की खेती होती है। इस वर्ष बाढ की वजह से धान की फसल नहीं हो सकी। अमूमन गांव में बाढ़ की वजह से एक साल छोड़कर दूसरे साल धान की खेती नहीं हो पाती है। इस साल भी धान की खेती नहीं हो पाई। इसलिए ज्यादा संख्या में किसान कमाने के लिए दिल्ली और पंजाब की ओर रुख कर रहे हैं।" आगे कपल मंडल बताते है।

उसी गांव के श्याम देव मंडल(66 वर्ष) बताते हैं कि,  "कोरोना के वक्त लगभग 5000 लोग वापस गांव आए थें लेकिन अभी कोई भी नहीं है। सब के सब वापस फिर दिल्ली चले गए और बचे-खुचे धान कटनी के वक्त पंजाब जाएंगे।तटबंध के भीतर वाले गांव में बाढ़ की वजह से नीचे वाली जमीन पर खेती संभव नहीं हो पाती है और लगभग प्रत्येक एक साल छोड़कर दूसरे साल बरसात के मौसम में ऊपर वाली जमीन पर भी पानी आ ही जाता है। वर्ष के अधिकांश समय सुपौल के मरौना पंचायत में कोसी तटबंध के बगल से खेतों में तीन से चार फीट तक बहता रहता है। सीपेज का पानी खेतों में जमा रहने के कारण हजारों एकड़ जमीन बंजर बनी है।"

सुपौल जिला के किशनपुर प्रखंड के बौराहा गांव के 180, सिसौना गांव के 170, नौआबाखर के 10 परसा माधो के 21 घर अब तक कोसी में कट चुके हैं। 2021 के बाढ़ से सिर्फ किसनपुर प्रखंड में 62 हजार की आबादी प्रभावित हुई है। पूरे सुपौल का आंकड़ा देखा जाए तो लगभग 1 लाख 20 हजार और बिहार के मुख्य बाढ़ प्रभावित 10 जिले में लगभग 6.36 लाख से अधिक लोगों को बाढ़ से हानि हुई है।