आपदा

बेंगलुरु पर मंडराता बाढ़ का खतरा, बचाव के लिए 658 किमी क्षेत्र में और करनी होगी पानी निकासी की व्यवस्था

शहर में बढ़ता कंक्रीट, आबादी और जलवायु परिवर्तन बाढ़ के खतरे को बढ़ा रहे हैं। जहां 2002 में शहर की महज 37.4 फीसदी जमीन पर निर्माण किया गया था, वो निर्मित क्षेत्र 2020 में बढ़ कर 93.3 फीसदी हो गया है

Lalit Maurya

इंटरनेशनल प्रॉपर्टी कंसल्टेंसी फर्म नाइट फ्रैंक ने अपनी रिपोर्ट “बेंगलुरु अर्बन फ्लड” में दावा किया है कि बेंगलुरु को बार-बार आने वाली बाढ़ से बचाने के लिए शहर में बरसाती पानी के निकासी की व्यवस्था को दुरुस्त किए जाने की जरूरत है। इसके लिए बेंगलुरु में और 658 किलोमीटर में नए प्राथमिक और माध्यमिक बरसाती नालों के निर्माण की जरूरत है।

रिपोर्ट के मुताबिक इन नालों को बनाने पर करीब 2,800 करोड़ रुपए (33.9 करोड़ डॉलर) का खर्च आएगा। इसका करीब 80 फीसदी हिस्सा नए नालों के निर्माण पर खर्च होगा, जबकि शेष मौजूदा व्यवस्था को दुरुस्त और पुनर्जीवित करने के लिए जरूरी है।

देखा जाए तो बेंगलुरु देश दुनिया में अपने आईटी हब के लिए जान जाता है। जहां 3,500 से अधिक आईटी कंपनियों और स्टार्टअप्स हैं। यही वजह है कि इस शहर को भारत की ‘सिलिकॉन वैली’ भी कहा जाता है। लेकिन जिस तरह से शहर में जल भराव और बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है वो इस आईटी हब में काम और जीवन को बाधित कर सकता है।

गौरतलब है कि ऐसा ही कुछ सितंबर 2022 में बेंगलुरु में आई बाढ़ में देखें को मिला था, जिसकी वजह से शहर के कई हिस्से जलमग्न हो गए थे। जो दर्शाता है कि बेंगलुरु में जल निकासी की व्यवस्था सही नहीं है और उसे दुरूस्त किए जाने की जरूरत है। शहर में न केवल पुराने नालों की मरम्मत और रखरखाव पर ध्यान देने की आवश्यकता है। साथ ही नए नालों के निर्माण की भी जरूरत है। साथ ही इससे निपटने के लिए प्राकृतिक समाधानों की मदद भी ली जा सकती है।

रिपोर्ट में भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (सीएजी) के 2021 के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया है कि बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) की सीमा में जल निकासी के लिए कुल 633 नाले हैं, जिनकी कुल लम्बाई 842 किलोमीटर है। लेकिन भारी बारिश, तेजी से होता शहरीकरण और बढ़ती आबादी के चलते शहर की जलनिकासी प्रणाली भारी दबाव में है।

अनुमान है कि जिस तरह से रियल एस्टेट में तेजी से विकास हो रहा है उसकी वजह से भारी बारिश की स्थिति से निपटने के लिए जो नालियों हैं उनको नुकसान पहुंचा है। ऐसे में भारी बारिश की स्थिति में जल भराव और बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है।

 बढ़ती आबादी, कंक्रीट और जलवायु परिवर्तन से बढ़ रहा है खतरा

रिपोर्ट का अनुमान है कि 2031 तक इस शहर की आबादी बढ़ कर 1.8 करोड़ हो जाएगी। जो 2022 में करीब 1.23 करोड़ थी। इसी तरह 1995 के मुकाबले 2011 में इस शहर का कुल क्षेत्रफल भी तीन गुणा से ज्यादा बढ़ कर 741 वर्ग किलोमीटर हो गया है।

शहर में जिस तरह से कंक्रीट बढ़ रहा है उसके चलते हरियाली कम हो गई है। वो भी बाढ़ के खतरे को बढ़ा रहा है। गौरतलब है कि जहां 2002 में शहर की महज 37.4 फीसदी जमीन पर किसी न किसी रूप में निर्माण किया गया था, वो निर्मित क्षेत्र 2020 में बढ़ कर 93.3 फीसदी हो गया है।

झीलों, जल स्रोतों के चारों और होता निर्माण, घटती हरियाली और नालियों पर बढ़ता दबाव इन सबने शहर में पानी को सोखने और उसकी निकासी की क्षमता को सीमित कर दिया है। इसका खामियाजा शहर को जलभराव और बाढ़ के रुप में चुकाना पड़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार जलवायु में आते बदलावों के कारण, थोड़े समय में ही भारी बारिश हो रही है जिसकी तीव्रता बढ़ गई है। ऊपर से सीमित बुनियादी ढांचे के बीच शहर में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है।

रिपोर्ट में मुंबई का उदाहरण देते हुए, स्थानीय अधिकारियों से बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में जल-जमाव को कम करने और बारिश के पानी के मुक्त प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए एक मास्टर प्लान तैयार करने का आग्रह किया है।

एक डॉलर = 82.45 भारतीय रूपए