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1985 से 2020 के बीच भारत में 70 प्रतिशत बाढ़ के लिए वायुमंडलीय जलवाष्प जिम्मेवार, जानें कैसे?

भारत में 1951 से 2020 तक 596 प्रमुख वायुमंडलीय नदियों से संबंधित घटनाएं हुई, इनमें से 95 प्रतिशत से अधिक वायुमंडलीय नदियों के कारण गर्मियों के मॉनसून के मौसम के दौरान हुई

Dayanidhi

एक नए अध्ययन के मुताबिक, देश में 1985 से 2020 के बीच गर्मियों में मॉनसून के मौसम में आई विनाशकारी बाढ़ के लिए सीधे तौर पर वायुमंडलीय नदियां जिम्मेवार थी। अध्ययन में कहा गया है कि जल वाष्प की एक धारा जमीन पर बहने वाली नदी की तरह आकाश में भी बहती है।

वायुमंडलीय नदियां क्या हैं?

वायुमंडलीय नदियां या एटमोस्फियरिक रिवर, एआर - नमी के संकुचित क्षेत्र हैं जो वायुमंडल में केंद्रित हैं। उनमें जलवाष्प की भारी मात्रा होती है, यही कारण है कि वे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ संबंधी कई समस्याएं पैदा कर सकते हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि 2013 में उत्तराखंड और 2018 में केरल में बाढ़ जैसी खतरनाक मौसम की घटनाएं, जिसमें इस बात का दावा किया गया कि वायुमंडलीय नदियों के कारण कई जाने चली गई।

यह अध्ययन गांधीनगर ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), श्रीनगर के राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान और वाशिंगटन विश्वविद्यालय के जलवायु वैज्ञानिकों द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है। अध्ययन में कहा गया है कि एक गर्म जलवायु वायुमंडलीय नदियों की नमी को धारण करने की क्षमता को बढ़ा रही है, भविष्य में इसके और अधिक विनाशकारी बाढ़ को बढ़ाने की आशंका है।

अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि, हमने ग्रीष्मकालीन मॉनसून के दौरान लैंडफॉलिंग वायुमंडलीय नदियों का पता लगाया, जिसका जल संसाधनों और भारत में भयंकर बाढ़ के खतरों से जुड़ी है क्योंकि वे कुछ घंटों या दिनों के भीतर भारी मात्रा में बारिश कर सकते हैं।

अध्ययनकर्ताओं ने भारतीय मौसम विज्ञान विभाग से अवक्षेपित अवक्षेपण के साथ-साथ यूरोपीय रीनलिसिस संस्करण से उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले वायुमंडलीय क्षेत्रों का उपयोग किया। साथ ही अमेरिका के कोलोराडो विश्वविद्यालय के डार्टमाउथ फ्लड ऑब्जर्वेटरी से एक ऐतिहासिक बाढ़ डेटाबेस का गठन वायुमंडलीय नदियों के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए किया। भारत में बाढ़ पर ग्रीष्मकालीन मॉनसून के मौसम के दौरान, भारत में इस संबंध में अपनी तरह का पहला बड़ा अध्ययन है।

गांधीनगर में आईआईटी के प्रोफेसर और प्रमुख अध्ययनकर्ता शांति स्वरूप महतो ने बताया कि, भारत में 1951 से 2020 तक 596 प्रमुख वायुमंडलीय नदियों से संबंधित घटनाएं हुई। इनमें से 95 प्रतिशत से अधिक घटनाएं वायुमंडलीय नदियों के कारण गर्मियों के मॉनसून के मौसम के दौरान, यानी जून से सितंबर के बीच हुए।

उन्होंने कहा कि शीर्ष वायुमंडलीय नदियों से संबंधित घटनाओं में से एक-तिहाई घटनाएं, 54 फीसदी हाल के तीन दशकों में हुई हैं, यानी 1991 से  2020 के बीच हुई। ये खतरनाक वायुमंडलीय नदियों और दुनिया भर में बढ़ते तापमान के बीच सीधा संबंध को उजागर करता है।

अध्ययन में कहा गया है, वायुमंडलीय नदियों की आवृत्ति और गंभीरता हाल के दशकों में भारत में बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। हाल के दशकों में हर दिन बारिश की चरम सीमा में वृद्धि हुई है और जलवायु के गर्म होने के कारण इसके और बढ़ने की आशंका है।

1985 से 2020 के बीच सबसे अधिक मृत्यु दर वाली 10 बाढ़ों में से सात वायुमंडलीय नदियों के कारण हुई। इन बाढ़ों से 9,000 से अधिक लोगों की मौतें हुई और कई अरब डॉलर का नुकसान और विस्थापन हुआ सो अलग।

इसमें कहा गया है, कुल मिलाकर, गर्मी के मॉनसून के मौसम में भारत की 70 प्रतिशत प्रमुख बाढ़ की घटनाएं 1985 से 2020 की अवधि के दौरान वायुमंडलीय नदियों से सीधे जुड़ी थीं।

अध्ययन के मुताबिक, 2013 में उत्तराखंड में आई बाढ़ ने 6000 लोगों की जान ले ली, 2007 में भारत सहित दक्षिण पूर्व एशिया में आई बाढ़ में 2000 लोगों की जान गई, 1988 में पंजाब में आई बाढ़, 2018 में केरल में आई बाढ़, जिसमें 400 लोगों की जान चली गई, 2006 में भारत में आई बाढ़ गुजरात, असम में 1993 की बाढ़ और 2004 की बाढ़, जिसने पूर्वी भारत और बांग्लादेश में भारी नुकसान पहुंचाया, ये सभी घटनाएं खतरनाक वायुमंडलीय नदियों के कारण हुई थी।

मोहतो ने कहा,वायुमंडलीय नदियों संकरे हैं और अधिक नमी ले जाते हैं। इन वायुमंडलीय नदियों के बारिश का स्तर पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट क्षेत्रों में अधिक है, जिससे अत्यधिक बारिश की घटनाएं होती हैं।

अध्ययन में यह भी माना गया है कि हर दिन अत्यधिक बारिश तब होती है जब किसी विशेष दिन की बारिश एक मिमी से अधिक हो जाती है।

अध्ययन से पता चला है कि, दक्षिण एशियाई मॉनसून प्रणाली को गर्म जलवायु के तहत अधिक नमी ले जाने का अनुमान है और इससे वायुमंडलीय नदियों की आवृत्ति में वृद्धि हो सकती है जो भारत में लैंडफॉल बना रही है।

दक्षिण-मध्य हिंद महासागर के ऊपर गर्म समुद्र की सतह का तापमान वायुमंडलीय नदियों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वापर प्रेशर डेफिसिट (विपिडी) में वृद्धि के कारण हाल के दशकों में हिंद महासागर से वाष्पीकरण में काफी वृद्धि हुई है। विपिडी - तरल को वाष्प में बदलने के लिए आवश्यक दबाव का माप है। अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु के गर्म होने के कारण वायुमंडलीय नदियों और बाढ़ की आवृत्ति हाल ही में बढ़ी है।

अध्ययन से पता चलता है कि हिंद महासागर के तेजी से गर्म होने से वाष्पीकरण में काफी वृद्धि हो सकती है, जिससे अधिक गंभीर वायुमंडलीय नदियों का विकास हो सकता है।

अध्ययन में कहा गया है कि, बाढ़ का अर्थव्यवस्था और समाज पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है और बाढ़ के खतरों को कम करने के लिए प्रेक्षित और अनुमानित भविष्य की जलवायु में वायुमंडलीय नदियों की भूमिका को समझना महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, वायुमंडलीय नदियों  को भारत में मौजूदा बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणाली का एक अभिन्न अंग होना चाहिए, जो अनुकूलन और शमन में मदद कर सकता है। यह अध्ययन कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट जर्नल के नवीनतम अंक में प्रकाशित हुआ है।