ओडिशा के केंद्रपाड़ा जिले में भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान है, यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा मैंग्रोव वन वाला इलाका है जो चक्रवात यास के चलते तबाह हो गया है। 26 मई, 2021 को पार्क के करीब धामरा बंदरगाह के उत्तर में तूफान टकराया था।
सैकड़ों पेड़, जिनमें ज्यादातर कैसुरीना, ताड़, नारियल और अन्य पेड़ तेज हवाओं से उखड़ गए और कई अन्य पेड़ गंभीर रूप से टूट गए हैं। कई मैंग्रोव पेड़ भी क्षतिग्रस्त हो गए हैं। पार्क के भीतर के गांव- सतभाया, कान्हूपुर, बरहापुर और अन्य समुद्र तटीय गांवों में बड़ी संख्या में मिट्टी के घर बह गए, खारे पानी के लिए बनाए गए तटबंध नष्ट हो गए और खारे पानी से कृषि भूमि जलमग्न हो गई है।
भितरकनिका मे कई तरह के जीव पाए जाते है, जिसमें 3,000 चित्तीदार हिरण, पक्षी प्रजातियां और अन्य प्रजातियां जैसे जंगली सूअर, सियार, लकड़बग्घा, जंगली बिल्ली, मछली पकड़ने वाली बिल्लियां, वाटर मॉनिटर लिज़र्ड, रीसस मकाक, आम लंगूर, लकड़बग्घा, ऊदबिलाव, जंगली बिल्ली, नेवले, लोमड़ी, तेंदुआ बिल्ली, साही, भारतीय सिवेट बिल्ली और खरगोश आदी शामिल हैं।
पार्क के संभागीय वन अधिकारी विकास रंजन दास ने कहा इस क्षेत्र को सितंबर 1998 में एक राष्ट्रीय उद्यान और अगस्त 2002 में यूनेस्को द्वारा रामसर साइट के रूप में नामित किया गया था।
दास ने बताया कि कई चित्तीदार हिरण और अन्य जानवर खुद को चक्रवात से बचाने के लिए घने मैंग्रोव जंगल में भाग गए थे। अब हम एक दीर्घकालिक योजना बानाने के बारे में सोच रहे हैं जो अभयारण्य के आसपास के क्षेत्रों को चक्रवात से बचाने में मदद करेगी। हमारे पास पहले से ही यहां पर वन कर्मचारी हैं और सफाई का काम अच्छी तरह से चल रहा है। कई क्षेत्रों में अभी तक नुकसान का आकलन करना बाकी है।
राष्ट्रीय उद्यान के आसपास 100,000 की आबादी वाले लगभग 45 गांव चक्रवात से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, पार्क के भीतर तलाचुआ गांव के हरिपदा मंडल (65) ने आरोप लगाया कि यह झींगा माफियाओं द्वारा इन क्षेत्रों में मैंग्रोव वनों की कटाई के कारण हुआ। मैंग्रोव वन समुद्र के किनारे बसे गांवों को तूफानों के सबसे बुरे प्रभाव से बचाते हैं।
यह पहली बार नहीं है जब भितरकनिका को चक्रवात का खामियाजा भुगतना पड़ा है। 2020 में अम्फान और 2019 में फानी ने भी राष्ट्रीय उद्यान के बड़े क्षेत्रों को नुकसान पहुंचाया था। तलशुआ गांव के रमेश मंडल ने कहा, हमारे गांवों में घने मैंग्रोव जंगल की मौजूदगी के कारण 1999 में आए सुपर साइक्लोन से यह क्षेत्र ज्यादा प्रभावित नहीं हुआ था।
ईश्वरपुर गांव के एक सेवानिवृत्त स्कूल शिक्षक प्रवत बेहरा (65) ने याद करते हुए कहा यह हमारे गांव में मैंग्रोव वन का सबसे बड़ा हिस्सा था। उन्होंने कहा कि झींगा माफिया वन अधिकारियों के साथ मिलकर मैंग्रोव पेड़ों को साफ कर रहे हैं। नतीजतन, हमारे घर गिर गए और चक्रवात यास के दौरान कई पेड़ उखड़ गए।