भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने 11 से 17 मई के लिए जारी ऐरिडिटी एनोमली (शुष्कता विसंगति) आउटलुक इंडेक्स में जानकारी दी है कि भारत में कम से कम 78 फीसदी जिले सूखे जैसी स्थिति का सामना कर रहे थे।
इस इंडेक्स के मुताबिक देश के 691 में से केवल 116 जिले ऐसे थे जहां स्थिति शुष्क नहीं हैं जबकि 539 में स्थिति कहीं कम तो कहीं ज्यादा खराब है। यह सभी जिले सूखे जैसी परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं वहीं 36 जिलों के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।
इस बारे में आईएमडी ने 16 मई 2023 को भविष्यवाणी की थी कि देश में दक्षिण-पश्चिमी अपने निर्धारित समय से तीन दिनों की देरी के बाद चार जून तक केरल पहुंचेगा। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सामान्य तौर पर इसकी शुरुआत एक जून से होती है। वहीं आईएमडी ने इसमें चार दिनों की त्रुटि हो सकने की भी आशंका जताई है। ऐसे में मानसून की शुरआत आठ जून तक भी हो सकती है, उससे इंकार नहीं किया जा सकता।
यह पूर्वानुमान ऐसे समय में जारी किया गया है जब भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में अल नीनो के बनने का खतरा मंडरा रहा है। जो मानसून की शुरूआत और इस दौरान बारिश के वितरण पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह 'शुष्कता विसंगति सूचकांक' पानी के तनाव को दर्शाता है, जो बढ़ते पौधे और फसलें उपलब्ध नमी के कारण महसूस करते हैं। जो बारिश और मिट्टी में नमी के कारण होता है। विसंगति का मतलब यह होता है कि जो परिणाम सामने हैं वो सामान्य से ज्यादा या कम हैं। ऐसे में यदि पानी की आपूर्ति में इस विसंगति को देखें तो इसका मतलब है कि लम्बी अवधि में बनते जलवायु पैटर्न के कारण पानी की कमी की आशंका है।
आईएमडी देश के विभिन्न कृषि और जलवायु क्षेत्रों के लिए इस सूचकांक के सामान्य मूल्यों की गणना करता है। देखा जाए तो हर हफ्ते देश के विभिन्न स्थानों पर वास्तविक शुष्कता की गणना सप्ताह में होने वाली कुल बारिश और मिट्टी में पहले से मौजूद नमी के आधार पर की जाती है। ऐसे में सप्ताह के लिए वास्तविक शुष्कता और सामान्य शुष्कता के बीच का अंतर विसंगति के रूप में सामने आता है।
ओडिशा, पश्चिम बंगाल में कहीं ज्यादा खराब है स्थिति
यदि इस विसंगति में नकारात्मक या शून्य वैल्यू सामने आती है तो इसका मतलब है कि वहां उस स्थान पर शुष्क या सूखे की स्थिति सामान्य परिस्थितियों से कम है। जबकि एक सकारात्मक मान इस बात को दर्शाता है कि उस स्थान ने औसत से अधिक शुष्क या सूखे की स्थिति को अनुभव किया है। ऐसे में इस शुष्क या सूखे की स्थिति को तीन भागों हल्का, मध्यम और गंभीर शुष्क स्थितियों के रुप में वर्गीकृत किया जाता है।
यदि इस सप्ताह के लिए जारी इंडेक्स पर गौर करें तो जहां उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, असम और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में, करीब-करीब सभी जिले हलकी या मध्यम शुष्क परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं। वहीं देश के करीब 46 जिलों को 'गंभीर' सूखे या शुष्क परिस्थितयों का सामना करना पड़ा है। इनमें से ज्यादातर जिले ओडिशा और पश्चिम बंगाल में हैं।
यह इंडेक्स कृषि सम्बन्धी सूखे की निगरानी करता है। यह एक ऐसी स्थिति होती है जब बारिश और मिट्टी में मौजूद नमी फसलों के तैयार होने तक उनके स्वस्थ विकास को मदद करने के लिए पर्याप्त नहीं होती है। इसकी वजह से फसलों पर दबाव का सामना करना पड़ता है।
यह विश्लेषण पौधों में धीमी वृद्धि और इस प्रकार से खराब पैदावार की ओर संकेत करता है। देखा जाए तो यह परोक्ष रूप से, इस बात की योजना बनाने में भी मदद कर सकता है कि कब सिंचाई की जरूरत है। इसकी मदद से यह तय किया जा सकता है कि फसलों को कब किस मात्रा में सिंचाई की सबसे ज्यादा जरूरत होगी।
कुल मिलकर देखें तो इससे गर्मियों में पैदा की जाने वाली फसलों को नुकसान हो सकता है जो भारतीय उपमहाद्वीप में रबी यानी सर्दियों और खरीफ (मानसून) में लगाई जाने वाली फसलों के बीच पैदा की जाती हैं। दलहन और तिलहन के साथ पोषक अनाज की कई फसलों की बुवाई फरवरी के अंतिम या मार्च के पहले सप्ताह में की जाती है। वहीं इन फसलों की कटाई खरीफ से पहले मई-जून तक कर ली जाती है।
इस बीच, अमेरिका के नेशनल ओसेनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) ने अनुमान जताया है कि इस साल मई-जून-जुलाई के बीच अल नीनो बनने की सम्भावना 80 फीसदी है जो जून-जुलाई-अगस्त में बढ़कर 90 फीसदी तक पहुंच जाएगी।