उत्तराखंड में इस वर्ष मानसून सीजन में 15 जून से अब तक बारिश-बाढ़ के चलते 60 लोगों की मौत हो गई। 61 लोग घायल हुए। मानसून में आई आपदाओं में 84 बड़े जानवर और 312 छोटे जानवर मारे गए। सबसे अधिक 20 मौतें उत्तरकाशी जिले में हुईं। आपदा राहत के दौरान 21 अगस्त के चॉपर क्रैश होने पर दो पायलट समेत तीन लोगों की भी मौत हुई। इसी जिले में 270 जानवर आपदा की भेंट चढ़े। आपदा के चलते होने वाली मौत में चमोली दूसरे स्थान पर रहा। यहां 15 लोग बारिश-बाढ़ के शिकार हुए। राज्य का कोई भी जिला बारिश-बाढ़ के चलते उपजी मुसीबतों से अछूता नहीं रहा। चार लोग अब भी लापता हैं। इनमें तीन उत्तरकाशी और एक चमोली से है। इसके साथ ही 49 घर पूरी तरह तबाह हो गए। 151 घर बुरी तरह प्रभावित है। 257 घरों को आंशिक नुकसान पहुंचा। 39 गौशालाएं भी बाढ़-बारिश को नहीं झेल सकीं।
आपदा के दौरान राहत-बचाव कार्य के लिए एनडीआरएफ, वायुसेना और आर्मी, एसडीआरएफ, राज्य पुलिस और अन्य विभाग मदद के लिए आगे आए। राज्य आपदा प्रबंधन विभाग ने एक सितंबर को बारिश से उपजी आपदा से हुए नुकसान के ये आंकड़े जारी किए।
आपदा प्रबन्धन विभाग के प्रभारी सचिव एस. मुरूगेशन ने बताया कि आपदा प्रभावित क्षेत्रों में आवासीय घरों, सरकारी भवनों, सड़कों, पुलों को काफी ज्यादा नुकसान हुआ है। उन्होंने बताया कि लोक निर्माण विभाग में अब तक लगभग 15354.15 लाख, पेयजल में लगभग 2096.21 लाख, सिंचाई में लगभग 2248.54 लाख और ऊर्जा विभाग में लगभग 545.08 लाख का नुकसान हुआ है। इस वर्ष मानसून सीजन में सभी विभागों के तहत अब तक लगभग 22195.03 लाख रुपये के नुकसान का आंकलन किया गया है।
पिछले वर्ष 2018 में भी उत्तराखंड में भारी बारिश से 58 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। जबकि 9 लोग लापता हो गए थे। वर्ष 2017 में मानसून सीजन में 84 लोगों की मौत हुई थी और 27 लोग लापता हो गए। ये आंकड़े बताते हैं कि बारिश का मौसम पर्वतीय ज़िलों में किस तरह डरावना होता है।
हर वर्ष बाढ़-बारिश जैसी आपदाओं से जूझते उत्तराखंड में ये भी जरूरी है कि संवेदनशील क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को आपदा के हालात से निपटने के लिए जरूरी प्रशिक्षण दिया जाए। आपदा प्रबंधन सचिव अमित नेगी का कहना है कि सरकार की ओर से सामुदायिक स्वयंसेवकों को प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षित लोगों की जानकारी आपदा प्रबन्धन विभाग की वेबसाईट पर भी उपलब्ध है ताकि आपदा जैसी परिस्थितियों में प्रशिक्षित लोगों से सहायता के लिए तत्काल सम्पर्क किया जा सके।
उत्तरकाशी में बादल फटने के बाद देहरादून के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती किए गए लोगों का कहना था कि उन्हें कभी इस तरह का प्रशिक्षण नहीं दिया गया। इस आपदा में अपने मां-बाप, ताई-ताऊ और बड़ी बहन को खो चुके सक्षम कहते हैं कि न तो स्कूल में, न ही गांव में कभी आपदा के दौरान बचाव के तरीके बताए गए। ट्रॉमा सेंटर में भर्ती किसी घायल ने ये नहीं कहा कि उनके गांव में कभी इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए। हो सकता है कि राज्य सरकार ने कुछ लोगों को प्रशिक्षण दिये हों लेकिन आपदाओं को देखकर इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम स्कूल-पंचायतों के ज़रिये गांव-गांव तक पहुंचाने की जरूरत है।
आपदा से हुए नुकसान के निरीक्षण के लिए केंद्र सरकार की तरफ से सात सदस्यीय दल अगस्त के आखिरी हफ्ते में राज्य में आया। गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव संजीव कुमार जिन्दल के नेतृत्व में आये केन्द्रीय दल के सदस्यों ने उत्तरकाशी और चमोली में आपदा से हुए नुकसान का निरीक्षण किया। इसकी रिपोर्ट केंद्र सरकार को दी जाएगी।
दल के सदस्यों से मुलाकात के दौरान मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने पर्वतीय क्षेत्रों में दैवीय आपदा के मानकों में शिथिलता बरतने की मांग की। साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार सहायता राशि को बढ़ाने के लिए भी कहा। जिससे आपदा प्रभावित लोगों की बेहतर मदद की जा सके। मुख्यमंत्री ने आपदा से हुए नुकसान को देखते हुए सड़क, भवन जैसी आधारभूत सुविधाओं को दुरुस्त करने के लिए सहायता राशि बढ़ाने की मांग की।
इस मुलाकात में ये भी बताया गया कि राज्य में ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन और भूकंप की चेतावनी के लिए अर्ली वॉर्निंग सिस्टम लगाए जा रहे हैं। अगर पहाड़ी क्षेत्रों में मौसमी गतिविधियों की सूचना समय पर मिल जाए तो संभव है कि आपदा से होने वाले नुकसान को कुछ कम किया जा सके।