प्रतीकात्मक तस्वीर: सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) 
खनन

अवैध कोयला खदान में दम घुटने से तीन मजदूरों की मौत, अदालत ने सीपीसीबी से मांगा जवाब

Susan Chacko, Lalit Maurya

सुंदरनगर में अवैध कोयला खदानों में काम करने वाले मजदूरों की मौत के मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 16 जुलाई 2024 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से जवाब मांगा है।

इस मामले में अदालत ने सीपीसीबी के अलावा गुजरात राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, सुंदरनगर के जिला मजिस्ट्रेट से भी एनजीटी की पश्चिमी बेंच के समक्ष जवाब दाखिल करने को कहा है। अवैध खनन का यह मामला गुजरात के सुंदरनगर का है।

यह आवेदन 15 जुलाई, 2024 को द हिंदू में छपी के खबर के आधार पर अदालत ने स्वतः संज्ञान लेते हुए दर्ज किया है। खबर में गुजरात की अवैध कोयला खदान में दम घुटने से तीन मजदूरों की मौत के मामले को उठाया था।

खबर के मुताबिक यह साल में चौथी घटना है। पिछले एक साल में जिले भर में अवैध खदानों में काम करते हुए 10 मजदूरों की मौत हो चुकी है। इस कोयले का उपयोग राज्य और दूसरी जगहों पर कारखानों को ईंधन देने के लिए किया जाता है। खबर के मुताबिक खदान में जहरीली गैस की वजह से मरने वाले श्रमिकों को आवश्यक सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं कराए गए थे।

खबर में आगे जानकारी दी है कि सुरेंद्रनगर में बड़े पैमाने पर अवैध कोयला खनन के कारण लगातार मौतें हो रही हैं। इतना ही नहीं यह अवैध खदानें गरीब श्रमिकों के लिए मौत का जाल बन गई हैं। इन्हें खदानों में 80 से 100 फीट गहरे गड्ढों में काम करने के लिए हर दिन 500 से 700 रुपए दिए जाते हैं। उन्हें खदान में अवैध जिलेटिन स्टिक का उपयोग कर गहरे गड्ढों में काम करना पड़ता है। हालांकि इस दौरान श्रमिकों को सुरक्षा के लिए हेलमेट, दस्ताने जैसी कोई भी जरूरी चीजें नहीं दी जाती।

खबर में यह भी भी दावा किया गया है कि पिछले छह महीनों के दौरान इस क्षेत्र में अवैध खदानों में करीब 20 मजदूरों की मौत हो चुकी है। इसके बावजूद अधिकारियों द्वारा इन गतिविधि को रोकने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

हैदराबाद में कचरे को पूरी तरह प्रोसेस करने के लिए काफी नहीं है अपशिष्ट प्रबंधन परियोजना: सीपीसीबी

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने 15 जुलाई, 2024 को दाखिल अपनी रिपोर्ट में कहा है कि हैदराबाद एकीकृत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन परियोजना शहर में पैदा हो रहे कचरे को पूरी तरह प्रोसेस करने के लिए काफी नहीं है। यह परियोजना जवाहरनगर में स्थापित की गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक हैदराबाद में हर दिन करीब 8,100 टन कचरा पैदा हो रहा है, हालांकि यह सुविधा करीब 43.7 फीसदी कचरे को ही प्रोसेस कर सकती है, जबकि बाकी 56.3 फीसदी यानी 4,560 टन कचरा हर दिन आधा प्रोसेस कचरे के रूप में जमा हो रहा है।

इस कचरे को इस परियोजना परिसर में ही मौजूद स्थानों पर डंप किया जा रहा है, जिसमें कैप्ड सेल के बीच और कैप्ड सेल के ऊपर की जगहें भी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त वहां लीचेट भी पैदा हो रहा है।

निरीक्षण के दौरान एकत्र किए गए सभी नमूनों के विश्लेषण से पता चला है कि डंपसाइट के अंदर और आसपास का भूजल दूषित हो चुका है। तेलंगाना राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भूजल में केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (सीओडी) और टीडीएस के बढ़ते स्तर को देखा गया है, जो भूजल में लीचेट प्रदूषण को दर्शाता है।

डंप साइट पर लीचेट प्रबंधन के लिए व्यापक दिशानिर्देश तैयार करने के लिए सीपीसीबी ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) से तीन महीने का समय देने का अनुरोध किया है।