ओडिशा में लोहा खदानों से निकलते ट्रक; फोटो: अग्निमिरह बासु/सीएसई 
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, राज्यों को है खनिज अधिकारों पर टैक्स लगाने का अधिकार

Lalit Maurya

सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि राज्यों को खनिज वाली जमीन पर टैक्स लगाने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की संविधान पीठ ने 8:1 के बहुमत से यह फैसला सुनाया है। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्यों को खनिज अधिकारों पर कर लगाने का अधिकार है और केंद्रीय खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम 1957 (एमएमडीआर अधिनियम), इस शक्ति को सीमित नहीं करता है।

हालांकि, अदालत ने आदेश में यह भी स्पष्ट कर दिया है कि संसद के पास निकाले गए खनिजों पर प्रतिबंध, कर लगाने की शक्ति है। अपने और सात सहयोगियों की ओर से फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि रॉयल्टी कोई टैक्स नहीं है।

गौरतलब है कि इस फैसले से झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और असम जैसे राज्यों को फायदा होगा। यही वजह है कि इस फैसले को इन खनिज समृद्ध राज्यों की बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है। बता दें कि अपने इस ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही पिछले आदेश को रद्द कर दिया है।

इन नौ 9 जजों की बेंच की अध्यक्षता चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने की। इस बेंच में जस्टिस हृषिकेश रॉय, अभय ओका, बीवी नागरत्ना, जे बी पारदीवाला, मनोज मिश्रा, उज्ज्वल भुइयां, एस सी शर्मा और ए जी मसीह शामिल थे।

दरअसल राज्यों में जो खनिज निकाला जा रहा है, उसको लेकर यह सवाल बना हुआ था कि क्या राज्य उस पर कर लगा सकते हैं या नहीं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 1989 में दिए अपने एक फैसले में कहा था कि रॉयल्टी एक टैक्स है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने उस फैसले को पलटते हुए कहा है कि रॉयल्टी टैक्स नहीं है। साथ ही अदालत ने इंडिया सीमेंट्स के मामले में रॉयल्टी को कर मानने वाले फैसले को खारिज कर दिया है।

जस्टिस नागरत्ना ने फैसले पर जताई असहमति

सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक केंद्रीय खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम 1957 में राज्य की कर लगाने की शक्तियों को सीमित करने का कोई विशेष प्रावधान नहीं है। वहीं रॉयल्टी के विषय में अदालत का कहना है कि यह पट्टे से आती है और इसे आम तौर पर निकाले गए खनिजों की मात्रा के आधार पर तय किया जाता है।

इसकी बाध्यता पट्टा देने और लेने वाले के बीच एग्रीमेंट की शर्तों पर निर्भर करती है। ऐसे में कोर्ट के मुताबिक खनिजों पर दी जाने वाली रॉयल्टी कर नहीं है। इससे जहां राज्य सरकारों को फायदा होगा वहीं यह फैसला केंद्र सरकार और माइनिंग कंपनियों के लिए बड़ा झटका है, क्योंकि खनन कंपनियों को राज्य सरकारों को भी टैक्स देना होगा। वहीं दूसरी तरफ केंद्र सरकार खनिजों पर लगाए जाने वाले कर पर अपनी पकड़ खो देगी।

इस फैसले के साथ ही राज्य सरकारें अपने क्षेत्र में खनन करने वाली खनन कंपनियों से खनिजों पर कर वसूल सकेंगी। हालांकि अभी नौ-जजों की पीठ को इस मामले में विचार करना है कि क्या यह फैसला पिछले समय से लागू होगा या नहीं।

ऐसे में अगर यह फैसला पूर्वव्यापी होता है तो राज्यों को अच्छी खासी रकम बकाये के रूप में मिल सकती है। यही वजह है कि राज्य चाहते हैं कि यह फैसला पूर्वव्यापी रूप से लागू हो, जबकि केंद्र सरकार इसे भविष्य के लिए लागू करने पर जोर दे रही है।

वहीं जस्टिस बी वी नागरत्ना ने फैसले पर असहमति जताई है। जस्टिस नागरत्ना का मत था कि राज्यों को खनिज अधिकारों पर कर लगाने की इजाजत देने से आय अर्जन के लिए राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी। इससे बाजार का शोषण किया जा सकता है और खनिज विकास के संदर्भ में जो संघीय प्रणाली है, वो कमजोर पड़ सकती है।