लम्बे समय तक कोयला खनन से होने वाले प्रदूषण के संपर्क में रहने से स्थानीय आबादी में बड़े पैमाने पर सांस और त्वचा संबंधी बीमारियां देखी गई; फोटो: सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई)  
खनन

पर्यावरण के लिए कोयले से दूरी जरूरी, लेकिन भारत में इसपर निर्भर समुदायों पर भी ध्यान देना जरूरी

नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया ने अपनी नई रिपोर्ट में कोयला खनन क्षेत्रों से जुड़े समुदायों की सामजिक-आर्थिक और स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताओं को उजागर किया है

Lalit Maurya

भारत में जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण पर बढ़ते दबाव को कम करने के लिए कोयले से दूरी महत्वपूर्ण है। लेकिन साथ ही इस पर निर्भर उन समुदायों के बारे में भी सोचना जरूरी है, जो लम्बे समय से कोयला खनन और उससे सम्बंधित अन्य गतिविधियों से जुड़े हैं।

इस बारे में नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया (एनएफआई) द्वारा जारी नई रिपोर्ट "एट द क्रॉसरोड्स: मार्जिनलाइज्ड कम्युनिटीज एंड द जस्ट ट्रांजिशन डिलेमा" से पता चला है कि कोयले का इस्तेमाल खत्म करने की कवायद ने इस पर निर्भर आबादी के लिए गंभीर चुनौतियां पैदा कर दी हैं। गौरतलब है कि यह वो लोग है जो पहले ही हाशिए पर जीवन गुजारने को मजबूर हैं। 

एनएफआई द्वारा जारी यह रिपोर्ट छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा के 1,209 परिवारों पर आधारित है। इनमें से ज्यादातर परिवार न केवल सामाजिक आर्थिक रूप से पिछड़े हैं, बल्कि साथ ही शिक्षा तक भी पहुंच सीमित है।

रिपोर्ट में एनएफआई ने कोयले का इस्तेमाल खत्म करने की कवायद से इन लोगों पर पड़ने वाले प्रभावों को उजागर किया है। साथ ही उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर भी प्रकाश डाला है। रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से बहुत से लोग ऐसे हैं जो साक्षर नहीं हैं या फिर उन्होंने केवल प्राथमिक शिक्षा ही हासिल की है। बता दें कि यह रिपोर्ट कोल ट्रांजीशन के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों पर एनएफआई द्वारा 2021 में किए अध्ययन की अगली कड़ी है।

इन समुदायों के स्वास्थ्य पर पड़ते प्रभावों पर चिंता व्यक्त करते हुए रिपोर्ट में लिखा है कि लम्बे समय तक कोयला खनन से होने वाले प्रदूषण के संपर्क में रहने से स्थानीय आबादी में बड़े पैमाने पर सांस और त्वचा संबंधी बीमारियां देखी गई। अध्ययन के दौरान की गई चर्चाओं में शामिल कम से कम 75 फीसदी लोगों ने क्रोनिक ब्रोंकाइटिस, अस्थमा और त्वचा से जुड़ी विभिन्न समस्याओं से अवगत कराया है।

रिपोर्ट के मुताबिक यह समुदाय अपने जीवनयापन के लिए काफी हद तक कोयले पर निर्भर हैं, ऐसे में इसका इस्तेमाल चरणबद्ध तरीके से खत्म करने से इस पर निर्भर क्षेत्रों में रोजगार छिन सकते हैं जो आर्थिक चुनौतियां पैदा कर सकता है। इसका असर न केवल कोयला खनिकों और उससे जुड़े श्रमिकों पर पड़ेगा। साथ ही यह स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी व्यापक रूप से प्रभावित करेगा।

हाशिए पर रह रहे समुदाय होंगे विशेष रूप से प्रभावित

रिपोर्ट में इस तथ्य को भी उजागर किया गया है वंचित समुदाय की संसाधनों और अवसरों तक पहुंच में उल्लेखनीय कमी आई है, जिससे सामाजिक रूप से पिछड़े हाशिए पर रह रहे समुदाय विशेष रूप से प्रभावित हुए हैं।

अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता और एनएफआई की रिसर्च एसोसिएट पूजा गुप्ता का इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहना है कि, "अध्ययन में शामिल विभिन्न जिलों में लोगों की आय में अंतर है और उनकी मजदूरी नियमित नहीं है।" उनके मुताबिक पूरी तरह से कोयले पर निर्भर धनबाद और कोरिया में लोगों की आय अंगुल जैसे ज्यादा विविधता वाले औद्योगिक जिलों की तुलना में कम है।

सर्वेक्षण के दौरान यह पाया गया कि वहां रहने वाले लोगों की कल्याण सम्बन्धी बुनियादी योजनाओं तक पहुंच बेहद सीमित है। इसकी वजह से यह समुदाय कहीं ज्यादा असुरक्षित हो जाते हैं। उनका यह भी कहना है कि स्पष्ट योजना के बिना, बंद होने वाले उद्योगों में काम करने वाले श्रमिक एकाएक से बेरोजगार हो सकते हैं। इसकी वजह से उन्हें पर्याप्त सहयोग या रोजगार के वैकल्पिक अवसर भी उपलब्ध नहीं होंगे। ऐसे हालात में प्रभावित समुदायों की दिक्कतें बढ़ सकती हैं।

एनएफआई ने रिपोर्ट में न्यायपूर्ण तरीके से कोल ट्रांजीशन के लक्ष्य को हासिल करने से जुड़ी कई चुनौतियों की भी पहचान की है। इसके मुताबिक बेहद कम पढ़े लिखे श्रमिकों को अपना कौशल बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण की जरूरत है। साथ ही क्षेत्र में जीविका के वैकल्पिक साधनों की कमी को भी उजागर किया है। ऐसे में एनएफआई ने समुदायों को ध्यान में रखते हुए विशेष नीतियों, मजबूत संस्थागत तंत्र और सरकारी विभागों के बीच समन्वित प्रयासों की अहमियत को रेखांकित किया है।

रिपोर्ट में इन समुदायों के हितों की रक्षा के लिए एक संभावित रूपरेखा भी प्रस्तुत की गई है। इसके तहत ऐसे नए आर्थिक अवसर पैदा करना शामिल हैं जो कोयले पर आधारित न हों। साथ ही कोयला खनन की वजह से स्वास्थ्य पर पड़ते दुष्प्रभावों को सीमित करने के लिए पर्यावरण की सेहत को बेहतर बनाने पर जोर दिया है।

एनएफआई रिपोर्ट यह सुनिश्चित करने पर जोर देती है कि कोल ट्रांजिशन से जुड़ी नीतियां समावेशी और हाशिए पर जीवन व्यतीत करने वाले समुदायों की जरूरतों को ध्यान में रखने वाली हों।

एनएफआई के कार्यकारी निदेशक बिराज पटनायक ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए कहा है कि, "इन कोयला निर्भर क्षेत्रों में शिक्षा और आजीविका के अवसरों तक पहुंच में जाति-आधारित असमानता मौजूद है।" ऐसे में हाशिए के समुदायों पर कोल ट्रांजिशन के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों से निपटने के लिए समुदाय को ध्यान में रखते हुए विशिष्ट नीतियों और मजबूत संस्थागत तंत्र की तत्काल आवश्यकता है।