अवैध खनन का कारोबार; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक 
खनन

असम की कलदिया नदी में रेत खनन का अवैध धंधा, जांच के लिए समिति गठित

Susan Chacko, Lalit Maurya

कलदिया नदी अवैध रेत खनन मामले पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 27 सितंबर, 2024 को संज्ञान लिया। मामला असम के बजाली का है। कोर्ट द्वारा दिए निर्देशानुसार असम राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वरिष्ठ वैज्ञानिक और बजाली के जिला आयुक्त की एक समिति क्षेत्र का इस क्षेत्र का निरीक्षण करेगी।

इसके साथ ही यह समिति शिकायतकर्ता द्वारा लगाए आरोपों की जांच करने के बाद सामने आए तथ्यों पर अपनी रिपोर्ट कोर्ट के सामने प्रस्तुत करेगी।

आवेदक का आरोप है कि कलदिया नदी में अवैध रेत खनन हो रहा है, जोकि चाईबारी पुल से 200 मीटर से भी कम दूरी पर है। शिकायत है कि खनन के लिए जेसीबी मशीनों का भी उपयोग किया जा रहा था, जोकि 2016 के रेत खनन दिशा-निर्देशों और रेत खनन प्रवर्तन और निगरानी दिशा-निर्देशों, 2020 का भी घोर उल्लंघन है।

शिकायत में यह भी कहा गया है कि नदी से रेत ले जाने वाले डंपरों ने गांव की दो पुलियाओं को भी नुकसान पहुंचाया है। आवेदकों का यह भी कहना है कि चाईबारी क्षेत्र के लिए कोई जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट नहीं है, लेकिन खनन अब भी जारी है।

गिरिडीह में भू-माफियाओं ने श्मशान पर किया अवैध कब्जा, नदी का भी मोड़ा रुख

26 सितंबर, 2024 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने तीन सदस्यीय समिति को उन दावों की जांच करने का आदेश दिया है, जिनमें कहा गया था कि झारखंड के गिरिडीह में भू-माफिया जमीन पर कब्जा कर उसे कृषि भूमि में बदल रहे हैं।

अदालत ने समिति से मौके पर जाकर तथ्यों की जांच करने के साथ रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है। यदि आरोप सही पाए जाते हैं, तो समिति से नियमों का उल्लंघन करने वालों की पहचान करने को कहा है, साथ ही उनके पते भी अदालत ने साझा करने को कहा है।

अदालत ने इन सभी को पक्षकार बनाने को भी कहा है, साथ ही उन्हें सुनवाई का अवसर देने का भी निर्देश दिया है।

एनजीटी ने झारखंड के पर्यावरण एवं वन विभाग के प्रधान सचिव, गिरिडीह के जिला मजिस्ट्रेट, गिरिडीह के प्रभागीय वनाधिकारी और झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नोटिस भी नोटिस भेजने का निर्देश दिया है।

आवेदन में दावा किया गया है कि ग्राम पंचायत पांडेडीह में जमुआ ब्लॉक के जमडीहा वन विभाग की जमीन से होकर बहने वाली नदी का रुख मोड़ दिया गया है। नदी के पास की जमीन, जो गांव के श्मशान घाट की है, उस पर भू-माफियाओं ने कब्जा कर लिया है और उसे खेती की जमीन में तब्दील कर दिया है। इस श्मशान घाट का इस्तेमाल करीब 10-12 गांवों के लोग करते थे।

देश भर में प्रदूषण को कम करने के लिए क्या कुछ की गई है कार्रवाई, एनजीटी ने मांगी रिपोर्ट

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पूर्वी बेंच ने पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय (एमओआरटीएच) से कोलकाता और देश भर में वाहन प्रदूषण को कम करने के लिए की गई कार्रवाई पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है।

26 सितंबर, 2024 को दिए इस आदेश में अदालत ने सभी पक्षों से चार सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। इस मामले में अगली सुनवाई 18 नवंबर, 2024 को होगी।

इस मामले में सुभाष दत्ता ने अपने आवेदन में कहा है कि 17 जून 2010 को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार को वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन की जांच के लिए तीन रिमोट सेंसिंग डिवाइस खरीदने का निर्देश दिया था।

राज्य सरकार ने अदालत को जानकारी दी है कि इनमें से एक डिवाइस पहले ही इस्तेमाल में है और इसका इस्तेमाल चार जिलों में अलग-अलग दिनों पर उत्सर्जन की जांच के लिए किया जा रहा है।

इस बारे में आठ दिसंबर, 2023 को द टेलीग्राफ में छपी एक खबर में बताया गया कि पश्चिम बंगाल राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने परिवहन विभाग को एक रिमोट सेंसिंग डिवाइस दिया था। बाद में दो और डिवाइस दिए गए। आवेदक ने यह भी कहा है कि छह अप्रैल, 2024 को टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ये डिवाइस अब काम नहीं कर रहे हैं।

आवेदक ने यह भी कहा है कि जब अप्रैल 2020 में भारत स्टेज VI नामक नियमों को लागू किया गया, तो हवा को साफ रखने के लिए कारों से होने वाले प्रदूषण की जांच के लिए बेहतर तरीकों की जरूरत थी। उनका कहना है कि कि प्रदूषण की जांच के लिए पुरानी प्रणाली, जिसे प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र कहा जाता है, वो भारत स्टेज VI मानदंडों के लिए प्रभावी नहीं है।

उन्होंने आवेदन में मांग की है कि पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य पुलिस को ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया, नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी या इंटरनेशनल सेंटर फॉर ऑटोमोटिव टेक्नोलॉजी जैसे संगठनों द्वारा प्रमाणित रिमोट सेंसिंग डिवाइस का उपयोग करने का निर्देश दिया जाए। ये डिवाइस चलती गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण की निगरानी और नियंत्रण में मदद करेंगे।

आवेदक ने केंद्रीय मोटर वाहन नियमों में भी बदलाव की मांग की है, ताकि चलती गाड़ियों का परीक्षण आरएसडी मशीनों से किया जा सके।

आवेदक ने सुझाव दिया कि सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को उत्सर्जन की निगरानी में इन उपकरणों के उपयोग के लिए "ऑटोमोटिव इंडस्ट्री स्टैंडर्ड 170" नामक मानक दिशा-निर्देश बनाने चाहिए। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि देश भर में वाहन प्रदूषण का प्रभावी ढंग से प्रबंधन किया जा रहा है।