खनन

शहर पर खर्च हो रहा है डीएमएफ का पैसा

Chinmayi Shalya, Raju Sajwan, Rajeev Ranjan

खनन से प्रभावित लोगों के लिए बनाए गए कोष से धनबाद जिले में फ्लाईओवर बन रहे हैं, टाउन हाल का नवीनीकरण हो रहा है और शहर में एलईडी स्ट्रीट लाइट लग रही हैं। हाल ही में डिस्ट्रिक्ट मिनिरल फाउंडेशन (डीएमएफ) के 307 करोड़ रुपए के फंड में से 86 फीसदी पैसा शहर के बुनियादी ढांचे (इंफ्रास्ट्रक्चर) पर खर्च किया जा रहा है, जिसका खनन प्रभावित लोगों की जरूरतों से कोई लेना देना नहीं है। राज्य के खनन विभाग से उपलब्ध जानकारी के अनुसार, इसमें फ्लाईओवर के लिए 256 करोड़ रुपए, एलईडी स्ट्रीट लाइटिंग के लिए 4 करोड़ रुपए और टाउन हॉल के नवीनीकरण पर 5 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। भारत के खनन प्रभावित जिलों में खनन गतिविधियों की वजह से प्रभावित लोगों को लाभान्वित करने के लिए खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2015 के तहत डीएमएफ की स्थापना की गई है। 

खनन कंपनियां रॉयल्टी के आधार पर एक तय दर के मुताबिक, जिलों के डीएमएफ ट्रस्ट में फंड जमा करती हैं। अधिनियम में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि धन का उपयोग खनन से संबंधित कार्यों से प्रभावित व्यक्तियों और क्षेत्रों के हित और लाभ के लिए किया जाना है। धनबाद झारखंड के सबसे बड़े कोयला खनन वाले जिलों में से एक है। राज्य द्वारा उत्पादित कुल कोयले का लगभग 32 प्रतिशत हिस्सा धनबाद से उत्पन्न होता है। यही वजह है कि इस जिले में डीएमएफ सबसे अधिक लगभग 860 करोड़ रुपए में डीएमएफ में जमा हुए हैं।

धनबाद नगरपालिका जिसमें झरिया भी शामिल हैं के निवासी राज्य सरकार के कामकाज से असंतुष्ट हैं। धनबाद नगरपालिका क्षेत्र में वार्ड संख्या 7 से वार्ड पार्षद नंदूलाल सेनगुप्ता का कहना है कि, “मेरा क्षेत्र स्वास्थ्य, जल संकट और प्रदूषण की गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। इस वार्ड से डीएमएफ में काफी राशि जमा होती है, लेकिन मेरे क्षेत्र में आज तक डीएमएफ के तहत कोई परियोजना शुरू नहीं की गई। सेनगुप्ता का दावा है कि उनका क्षेत्र खनन की वजह से100 फीसदी प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित है।

नई दिल्ली स्थित नॉन-प्रॉफिट सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने धनबाद जिले के डीएमएफ फंड के तहत खर्च ब्यौरे का आकलन किया तो पाया कि पिछले तीन वर्षों में धनबाद में खनन प्रभावित के लिए बॉटम अप प्लानिंग नहीं की गई है। वास्तव में, यह केवल धनबाद नहीं, बल्कि झारखंड के अधिकांश खनन जिलों की सच्चाई है। झारखंड डीएमएफ नियमों के बावजूद यह हो रहा है, जहां यह स्पष्ट लिखा है कि खनन प्रभावित लोगों को शामिल करके प्लानिंग की जानी चाहिए और जब डीएमएफ का पैसा खर्च होता है तो इन लोगों की सहमति ली जानी चाहिए। 

सीएसई की इनवायरमेंटल गवर्नेंस यूनिट की कार्यक्रम प्रबंधक श्रेष्ठा बनर्जी के मुताबिक, सबसे बुरी बात यह है कि डीएमएफ का पैसा उन लोगों पर खर्च नहीं होता, जो खनन की वजह से सीधे तौर पर प्रभावित हैं और उन्हें उस पैसे या मदद की तत्काल सख्त जरूरत है। सीएसई के अध्ययन से पता चला है कि 2016 और 2018 के बीच जिले में डीएमएफ के माध्यम से लगभग 935 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए, लेकिन इसमें सबसे अधिक प्रभावित झरिया क्षेत्र को शामिल नहीं किया गया, जो धनबाद नगरपालिका के अंतर्गत आता है। यह राशि सिर्फ ग्रामीण पेयजल योजनाओं, जो कि पहले से ही राज्य सरकार के पास पहले से ही लंबित थी, और शौचालयों के निर्माण के लिए स्वीकृत की गई थी।

यह 2016 में राज्य सरकार के निर्देश के मुताबिक किया गया था। श्रेष्ठा बनर्जी ने कहा, यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब भी झरिया के साथ उपेक्षित व्यवहार किया जा रहा है। क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण समस्या इनकम सिक्योरिटी की है। यहां तक कि महिलाएं और बच्चे अजीविका कमाने के लिए कोयला खदानों में खतरनाकपरिस्थितियों में काम करते हैं। क्योंकि इसके लिए अलावा उनके लिए कहीं और आजीविका का कोई अवसर नहीं है और ना ही वे वहां से कहीं और जाने का जोखिम उठा सकते हैं। लेकिन उनके लिए आजीविका का इंतजाम करने की बजायशहर में 250 करोड़ रुपये का फ्लाईओवर बनाया जा रहा है। 

कोयला खनन क्षेत्रों में खतरनाक प्रदूषण के साथ-साथ चारों ओर खतरनाक स्थिति में काम करने से लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा है। जिले में अस्थमा और तपेदिक (टीबी) जैसी पुरानी बीमारियों का प्रकोप है। इसकी बड़ी वजह जन स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में कमी है, जो और ज्यादा चरमरा रही है। सीएसई अध्ययन से पता चला है कि डॉक्टरों की 60 प्रतिशत कमी और नर्सों और स्वास्थ्य सेवा तकनीशियनों की 70 प्रतिशत से अधिक कमी है। शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की लगभग दोगना जरूरत है। लेकिन इस स्थिति को सुधारने के लिए डीएमएफ का पैसा खर्च नहीं किया जा रहा है।

वार्ड सदस्यों की यह भी शिकायत है कि जिला प्रशासन उनके प्रस्तावों पर ध्यान नहीं दे रहा है। “हमने अपनी बोर्ड बैठकों में डीएमएफ से संबंधित प्रस्ताव रखे थे, लेकिन इन प्रस्तावों को कभी मंजूरी नहीं मिली। वार्ड संख्या 10 से वार्ड पार्षद देवाशीष पासवान कहते हैं कि प्रशासन का ध्यान राज्य सरकार की प्राथमिकता वाले मुद्दों पर है। यदि धनबाद जिला, डीएमएफ को प्रभावी ढंग से लागू करना चाहता है तो उसे खनन से प्रभावित लोगों की जरूरतों का आकलन करना होगा और उन्हें सुलझाना होगा। राज्य सरकार को भी इस दिशा में जिलों को निर्देश देने होंगे। ऐसे समय में जब लोग गरीबी, नौकरियों की कमी और बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की कमी का सामना कर रहे हैं तो डीएमएफ की धनराशि को बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर खर्च नहीं किया जाना चाहिए।