10 दिसंबर 2018 को 55 अफ्रीकी संघ (एयू) देशों के दवा नियामक और स्वास्थ्य विशेषज्ञ रवांडा के किगाली में जमा हुए। इनका मकसद था कि कैसे एक क्रूर हत्यारे पर लगाम लगाया जाए। यह क्रूर हत्यारा है, इस महाद्वीप में फैली हुई नकली दवाइयां। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट “द ग्लोबल सर्विलांस एंड मॉनिटरिंग सिस्टम ऑफ सबस्टैंडर्ड एंड फाल्सीफाइड मेडिकल प्रोडक्ट्स” बताती है कि 2013 से 2017 के बीच, सब-सहारा अफ्रीका में दुनिया की आधी “नकली और कम गुणवत्ता वाली” दवाएं थी। यह रिपोर्ट बताती है कि इस क्षेत्र में सिर्फ नकली दवाइयों की वजह से हर साल मलेरिया से पीड़ित 1,600 लोगों की मौत हो जाती है। गलत उपचार के कारण आगे की देखभाल के लिए रोगियों और स्वास्थ्य प्रदाताओं को 38.5 मिलियन डॉलर का खर्च आता है।
अगस्त 2017 में, एयू सदस्य राष्ट्रों ने महाद्वीप के पहले ड्रग हार्मोनाइजेशन प्रोग्राम की स्थापना पर विचार किया, जिसके तहत अफ्रीका आने वाली दवा का परीक्षण आम नियामक दिशानिर्देशों का उपयोग करके किया जाएगा। मई 2018 में इस विचार को आकार दिया गया। सदस्य देशों के स्वास्थ्य मंत्रियों ने जिनेवा में मुलाकात की और जनवरी 2019 तक नोडल अफ्रीकन मेडिसिन एजेंसी (एएमए) की स्थापना के लिए एक संधि की। यह काम सदस्य देशों के चिकित्सा नियमों में सामंजस्य स्थापित करने के लिए एयू के न्यू पार्टनरशिप फॉर अफ्रीकाज डेवलपमेंट (एनईपीएडी) के तहत किया जाना है।
10 दिसंबर की बैठक में 80 प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिसमें एयू राष्ट्रों के प्रतिनिधि, डब्ल्यूएचओ और पूर्वी अफ्रीकी कम्युनिटी के विशेषज्ञ, छह पूर्वी अफ्रीकी देशों से बना एक अंतरसरकारी संगठन और एनईपीएडी शामिल था। रवांडा के स्वास्थ्य मंत्री डायने गशुम्बा कहते हैं, “राष्ट्रों द्वारा अनुमोदन मिलने से पहले यह बैठक इस बात पर चर्चा करने के लिए थी कि एएमए काम कैसे करेगा।” यह निर्णय लिया गया कि एनईपीएडी की क्षेत्रीय आर्थिक समितियों का उपयोग महाद्वीपीय पहल के समन्वय और मजबूती को सुनिश्चित करने के लिए किया जाएगा।
इस बैठक से यह भी पता चला कि कमजोर विधायी ढांचा, सुस्त दवा पंजीकरण प्रक्रिया, अनुमोदन के निर्णय में देरी, सीमित तकनीकी क्षमता समेत अन्य कारणों की वजह से इस महाद्वीप में नकली दवाओं का कारोबार फल-फूल रहा है।
पुरानी समस्या
रवांडा के फूड एंड ड्रग्स अथॉरिटी ने डॉक्टरों और फार्मासिस्टों को 7 दिसंबर, 2018 को एक चेतावनी जारी की थी। यह चेतावनी पोस्टपार्टम रक्तस्राव (प्रसव के बाद होने वाला रक्तस्राव)को रोकने के लिए उपयोग की जाने वाली नकली दवाओं की उपलब्धता के बारे में जारी की गई थी। इसमें कहा गया था कि जिन दो दवाओं, मिसोप्रोस्टोल (भारत स्थित बायो-जेनेरिक एंड रेमेडीज प्राइवेट लिमिटेड द्वारा निर्मित) और ऑक्सीटोसिन (चीन स्थित जियांग्शी शीरकंगताई फार्मास्युटिकल द्वारा निर्मित) का 2017 और 2018 के बीच आयात किया गया था। ये दवाएं थीं और उसे रोकना चाहिए। बयान में कहा गया है कि ये नकली दवाएं पहले ही देश भर के जिला सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों तक वितरित की जा चुकी हैं। रवांडा में ये दवाएं बेहद महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि पोस्टपार्टम रक्तस्राव देश के उच्च मातृ मृत्यु दर (2015 में 210 प्रति 100,000 लाइव बर्थ) के मुख्य कारणों में से एक है। रवांडा ने जुलाई 2018 में फूड एंड ड्रग्स अथॉरिटी की स्थापना की थी, ताकि नकली दवाओं और टीकों के बढ़ते बाजार की जांच की जा सके।
किगाली में बैठक में शामिल एक चिकित्सा पेशेवर अल्फान तेजामकेले कहते हैं कि यह समस्या सिएरा लियोन में भी गंभीर है, जो अपनी सभी दवाओं का आयात करता है और जिनमें से अधिकांश अवैध चैनलों से आते हैं। वह कहते हैं,“हमारे सीमावर्ती देशों लाइबेरिया और गिनी की नियामक प्रणाली अलग है। इसलिए हमारे कई लोग इन देशों की यात्रा करते हैं और अवैध रूप से दवाइयां लेने की कोशिश करते हैं।” मेडिकल प्रैक्टिशनर ओउला इब्राहिम ऑलिवियर टराओरे कहते हैं कि बुर्किना फासो में गैर-पंजीकृत दवाएं खुले तौर पर राजधानी औगा-डौगू की सड़कों पर बेची जाती हैं, वह भी तब जब देश में नकली दवा के खिलाफ नीतियां हैं। 2015 में प्लॉस वन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में बिकने वाले नौ फीसदी मेडिकल उत्पाद नकली हैं।
सकारात्मक अफ्रीका
महाद्वीप में नकली दवाओं के पनपने के पीछे मुख्य कारणों में से एक है दवा की अधिक कीमत। विशेषज्ञों का मानना है कि एएमए दवाओं की कीमतों में तुरंत कमी लाएगा क्योंकि देश में दवाओं का परीक्षण और पंजीकरण निरर्थक हो जाएगा। पूर्वी अफ्रीकी समुदाय के उप महासचिव क्रिस्टोफ बाजीवामो कहते हैं, “यह उच्च गुणवत्ता वाली दवाओं को सभी लोगों के लिए सस्ता बना देगा।”
साउथ अफ्रीका हेल्थ प्रोडक्ट्स रेगुलेशन अथॉरिटी की डिप्टी डायरेक्टर, मेडिकल डिवाइसेज, एंड्रिया जूलसिंगकेटर एएमए का एक और फायदा बताती हैं। वह कहती हैं कि अगर किसी देश में किसी दवा को लेकर कोई समस्या सामने आती है, तो तत्काल अन्य अफ्रीकी देशों को सूचित किया जा सकेगा और त्वरित कार्रवाई संभव हो सकेगी। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि 2017 की डब्लूएचओ रिपोर्ट कहती है कि जटिल आपूर्ति श्रृंखला नकली दवाओं का पता लगाना मुश्किल बना देता है।
यह रिपोर्ट बताती है, “जर्मनी में ली गई एक टैबलेट मिस्त्र में बनी हो सकती है, जिसके लिए भारत, ब्राजील और स्पेन से सामग्री आयातित की गई हो, जो चीन से आए फॉयल में पैक की गई हो, जो यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन और उत्तरी आयरलैंड के लिए डिजाइन किए गए एक बॉक्स में डाली गई हो और दुबई के रास्ते लिवरपूल भेजी गई हो।” वर्ल्ड कस्टम ऑर्गेनाइजेशन और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च अगेंस्ट काउंटरफिट मेडिसिन्स इन 16 अफ्रीकन कंट्रीज द्वारा सितंबर 2017 में किए गए एक अध्ययन से पता चला कि भारत और चीन 96 प्रतिशत से अधिक नकली दवा आयात के लिए जिम्मेदार हैं।
गशुम्बा कहते हैं कि एएमए के साथ इन देशों को आयात पर निर्भरता कम करने के लिए दवाओं का निर्माण शुरू करना चाहिए। यह आयात वर्तमान में 70 प्रतिशत है। केवल दक्षिण अफ्रीका और मोरक्को ऐसे अफ्रीकी देश हैं, जो बड़े पैमाने पर दवाओं का निर्माण करते हैं। दिसंबर 2017 में रवांडा ने मोरक्को की फर्म कूपर फार्मा को देश का पहला विनिर्माण संयंत्र बनाने की अनुमति दी। यह 2019 तक चालू हो जाना चाहिए।