दुनिया की सबसे घातक संक्रामक बीमारी, क्षय रोग, तपेदिक या ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) दुनिया भर में चिंता का विषय बनी हुई है, जिसकी वजह से गंभीर स्वास्थ्य, सामाजिक और आर्थिक परिणाम सामने आते हैं। टीबी के तुरंत उन्मूलन के लिए, हर साल 24 मार्च को विश्व तपेदिक दिवस मनाया जाता है। यह दिन बैक्टीरिया के संक्रमण के खिलाफ चल रही लड़ाई के महत्व की याद दिलाता है, जो मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है।
कैसे होती है और कैसे फैलती है टीबी की बीमारी
क्षय रोग (टीबी) बैक्टीरिया के कारण होने वाला एक संक्रामक रोग है जो अक्सर फेफड़ों को प्रभावित करता है। टीबी से पीड़ित व्यक्ति के खांसने, छींकने या थूकने से यह हवा के माध्यम से फैलता है। क्षय रोग को रोका जा सकता है और इसका इलाज किया जा सकता है।
डब्ल्यूएचओ के अनुमान के मुताबिक, दुनिया की आबादी का लगभग एक चौथाई हिस्सा टीबी बैक्टीरिया से संक्रमित है। टीबी से संक्रमित लगभग 5 से 10 फीसदी लोगों में लक्षण दिखाई देने के बात उनमें टीबी रोग हो जाता है।
जो लोग संक्रमित हैं लेकिन बीमारी से मुक्त हैं, वे इसे फैला नहीं कर सकते हैं। टीबी रोग का आमतौर पर एंटीबायोटिक दवाओं से इलाज किया जाता है और बिना इलाज के यह जानलेवा हो सकता है।
टीबी के लक्षण
टीबी संक्रमण वाले लोग अपने आपको बीमार महसूस नहीं करते हैं और संक्रामक नहीं होते हैं। टीबी से संक्रमित होने वाले लोगों में से केवल एक छोटे से हिस्से में ही टीबी रोग और लक्षण दिखाई देते हैं। शिशुओं और बच्चों में इसका कहता अधिक होता है।
टीबी रोग तब होता है जब बैक्टीरिया शरीर में आपने आप को गुणा करते हैं और विभिन्न अंगों को प्रभावित करते हैं। टीबी के लक्षण कई महीनों तक हल्के हो सकते हैं, इसलिए बिना जाने ही दूसरों में टीबी फैलाना आसान है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, हर साल एक करोड़ लोग तपेदिक (टीबी) के कारण बीमार पड़ते हैं। टीबी का इलाज संभव है और इसे रोका जा सकने के बावजूद, हर साल 15 लाख लोग तपेदिक के कारण मर जाते हैं, जिससे यह दुनिया का सबसे बड़ा संक्रामक हत्यारा बन गया है।
डब्ल्यूएचओ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2023 में तपेदिक (टीबी) से कुल 12.5 लाख लोगों की मृत्यु हुई (जिसमें एचआईवी से पीड़ित 161 000 लोग शामिल हैं)। टीबी एचआईवी से पीड़ित लोगों का प्रमुख हत्यारा भी थी और रोगाणुरोधी प्रतिरोध से संबंधित मौतों का एक प्रमुख कारण भी रही है।
साल 2023 में, दुनिया भर में टीबी से लगभग 1.08 करोड़ करोड़ लोग बीमार पड़े, जिनमें 60 लाख पुरुष, 36 लाख महिलाएं और 13 लाख बच्चे शामिल हैं। टीबी सभी देशों और आयु समूहों में मौजूद है।
मल्टीड्रग-रेजिस्टेंट टीबी (एमडीआर-टीबी) एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए खतरा बना हुआ है। 2023 में ड्रग रेसिस्टेंट टीबी से पीड़ित पांच में से केवल दो लोगों को ही उपचार मिल पाया। टीबी से निपटने के वैश्विक प्रयासों ने वर्ष 2000 से अब तक अनुमानित 7.9 करोड़ लोगों की जान बचाई गई है।
विश्व क्षय रोग दिवस 2025 की थीम
विश्व क्षय रोग दिवस 2025 की थीम है "हां! हम टीबी को समाप्त कर सकते हैं: प्रतिबद्ध हों, निवेश करें, परिणाम दें" है। यह थीम टीबी की रोकथाम, निदान, उपचार और देखभाल के लिए अहम हस्तक्षेपों की निरंतर प्रतिबद्धता, वित्तीय निवेश और प्रभावी वितरण के महत्व पर जोर देती है।
विश्व टीबी दिवस का इतिहास
विश्व टीबी दिवस का इतिहास सदियों पुराना है। रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र (सीडीसी) के अनुसार, "तपेदिक" शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले 1834 में जोहान शॉनलेन ने किया था, हालांकि माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस के कारण होने वाली यह बीमारी लाखों सालों से मौजूद है।
पूरे इतिहास में, टीबी को विभिन्न नामों से जाना जाता रहा है। यूनानियों ने इसे फ्थिसिस, इब्रानियों ने इसे शैचेफेथ और रोमनों ने टैब्स कहा। 1700 और 1800 के दशक में, इसे आमतौर पर "श्वेत प्लेग" या "उपचार" के रूप में संदर्भित किया जाता था क्योंकि यह लोगों को पीला और दुर्बल बना देता था।
24 मार्च, 1882 को एक बड़ी सफलता मिली, जब डॉ. रॉबर्ट कोच ने माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस की खोज की, जो इस बीमारी के लिए जिम्मेदार जीवाणु है। एक सदी से भी अधिक समय बाद, इस खोज के सम्मान में उसी दिन विश्व टीबी रोग दिवस की स्थापना की गई।
भारत में टीबी उन्मूलन कार्यक्रम
भारत के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 100 दिवसीय अभियान राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) की घोषणा की, जो 2017-2025 के टीबी उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (एनएसपी) के साथ जुडी हुई है। एनएसपी टीबी के मामलों को कम करने, निदान और उपचार की क्षमताओं को बढ़ाने और बीमारी के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों से निपटने पर आधारित है।
इस महत्वाकांक्षी पहल 2018 के टीबी उन्मूलन शिखर सम्मेलन में 2025 तक टीबी मुक्त भारत हासिल करने का संकल्प लिया गया।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मुताबिक, भारत में टीबी के मामलों को कम करने के लिए एनटीईपी के तहत भारी प्रगति हुई है। टीबी के मामलों की दर 2015 में 237 प्रति 1,00,000 से 2023 में 195 प्रति 1,00,000 तक 17.7 फीसदी घटकर 195 हो गई है। इसी तरह, टीबी से संबंधित मौतों में 21.4 फीसदी की कमी आई है, जो 2015 में प्रति लाख जनसंख्या पर 28 से घटकर 2023 में प्रति लाख जनसंख्या पर 22 हो गई है।
टीबी के मामलों में कमी के बावजूद लक्ष्य हासिल करना कठिन
भारत में दुनिया भर में टीबी के 30 फीसदी मामले और मल्टीड्रग-प्रतिरोधी मामलों के 62 फीसदी मामले हैं। 2015 से टीबी के मामलों में 17.7 फीसदी की कमी के बावजूद, 2025 का लक्ष्य हासिल करना चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। विशेषज्ञ टीबी नियंत्रण को और मजबूत करने के लिए निजी क्षेत्र को एक साथ लाने, जरूरी प्रयोगशाला मान्यता और सामुदायिक जागरूकता पर जोर देने की बात कहते हैं।