आत्महत्या की रोकथाम को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए हर साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जाता है। यह दिन इस बात की याद दिलाता है कि आत्महत्या की रोकथाम करना स्वास्थ्य के लिए कितना जरूरी है और आत्महत्या से होने वाली मृत्यु दर को कम करने के लिए तत्काल कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस की स्थापना 2003 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के साथ मिलकर आत्महत्या रोकथाम के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ द्वारा की गई थी। आत्महत्याओं को रोका जा सकता है। आत्महत्या एक बड़ी सार्वजनिक समस्या है जिसके दूरगामी सामाजिक, भावनात्मक और आर्थिक परिणाम हैं। आत्महत्या एक गंभीर वैश्विक मुद्दा बना हुआ है, जो दुनिया भर में लोगों और समुदायों को प्रभावित कर रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, आत्महत्या के कारण दुनिया भर में हर साल 7,20,000 से अधिक मौतें होती हैं। दुनिया भर में होने वाली आत्महत्याओं में से लगभग 73 प्रतिशत कम और मध्यम आय वाले देशों (एलएमआईसी) में होती हैं।15 से 29 साल के लोगों में आत्महत्या मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा कारण है।
आत्मघाती व्यवहार परिवारों और समुदायों को बहुत गहराई से प्रभावित करता है और लाखों लोगों को प्रभावित करने वाली एक सार्वभौमिक चुनौती बनी हुई है।
साल 2024 से 2026 के लिए विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस की तीन साल की थीम "आत्महत्या की सोच को बदलना" है, जिसमें "बातचीत शुरू करना" कार्रवाई का आह्वान करना शामिल है। इस थीम का उद्देश्य आत्महत्या को रोकने के लिए कलंक को कम करने और खुली बातचीत को प्रोत्साहित करने के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
आत्महत्या संबंधी भावना को बदलने का मतलब है कि हम इस जटिल मुद्दे को कैसे देखते हैं, इसे बदलना और चुप्पी और कलंक की संस्कृति से खुलेपन, समझ और समर्थन की संस्कृति में बदलना है।
डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि कार्रवाई जिसमें सभी को आत्महत्या और आत्महत्या की रोकथाम के लिए बातचीत शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करना है। हर बातचीत, चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो, समाज में एक सहायक और अहम योगदान देती है। बातचीत को शुरू करके, हम बाधाओं को तोड़ सकते हैं, जागरूकता बढ़ा सकते हैं।
यह विषय नीति निर्माण में आत्महत्या की रोकथाम और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की जरूरत पर भी जोर देता है, तथा सरकार से कार्रवाई करने का आह्वान करता है। इसे बदलने के लिए ऐसी नीतियों की आवश्यकता है जिसमें मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना, देखभाल तक पहुंच बढ़ाना, तथा जरूरतमंदों को सहायता प्रदान करना शामिल है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में दुनिया भर से सबसे अधिक आत्महत्याएं होती हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 2022 में 1.71 लाख लोगों ने आत्महत्या की, जो 2021 की तुलना में 4.2 प्रतिशत की वृद्धि और 2018 की तुलना में 27 प्रतिशत की उछाल है। 2022 में प्रति एक लाख आबादी पर आत्महत्या की दर बढ़कर 12.4 हो गई है।
अध्ययनों से पता चलता है कि आत्महत्या से मरने वाले लगभग 50 से 90 प्रतिशत व्यक्ति अवसाद, चिंता और द्विध्रुवी विकार जैसी मानसिक बीमारियों से पीड़ित होते हैं।