स्जोग्रेन सिंड्रोम का वर्णन करने वाले पहले व्यक्ति जान मिकुलिक्ज-राडेकी है फोटो साभार: आईस्टॉक
स्वास्थ्य

विश्व स्जोग्रेन दिवस : क्या होती है यह बीमारी, जानें इसके लक्षण और सब कुछ

स्जोग्रेन सिंड्रोम एक प्रतिरक्षा प्रणाली विकार है। इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति का मुंह बार-बार सूखने लगता है, मुंह से लार और आंखों का पानी सूख जाता है।

Dayanidhi

विश्व स्जोग्रेन दिवस हर साल 23 जुलाई को मनाया जाता है। इस दिन, स्जोग्रेन फाउंडेशन और अन्य संगठन इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाने, लोगों को इसके लक्षणों को बेहतर ढंग से समझने और इसका इलाज करने में मदद करने के लिए एक साथ आते हैं।

क्या है स्जोग्रेन सिंड्रोम?

दुनिया में कई तरह के बीमारियां हैं जिनको लेकर हम सब में जानकारी का अभाव है। ऐसी ही एक बीमारी का नाम स्जोग्रेन सिंड्रोम है, यह एक प्रतिरक्षा प्रणाली विकार है। इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति का मुंह बार-बार सूखने लगता है, मुंह से लार और आंखों का पानी सूख जाता है। इस बीमारी का आज तक कोई इलाज नहीं है, इस पर केवल काबू पाया जा सकता है।

स्जोग्रेन सिंड्रोम के कारण लार और आंसू बनाने वाली कोशिकाओं के साथ-साथ शरीर के अन्य भागों, जैसे कि थायरॉयड, गुर्दे, यकृत, फेफड़े और तंत्रिकाओं पर भी यह हमला करता है। अन्य लक्षणों में जोड़ों का दर्द, त्वचा पर चकत्ते, योनि का सूखापन, लगातार सूखी खांसी, लार ग्रंथियों में सूजन, दांतों का खराब होना, अत्यधिक प्यास और कई तरह की लंबे समय तक थकान होना शामिल हैं।

विश्व स्जोग्रेन दिवस का उद्देश्य इसके बार में जानकारी बढ़ाने, इलाज खोजने और इस बीमारी से ग्रसित लोगों के लिए सहायता में सुधार करने के लिए है।

स्जोग्रेन सिंड्रोम का वर्णन करने वाले पहले व्यक्ति जान मिकुलिक्ज-राडेकी है। 1892 में, उन्होंने एक 42 वर्षीय व्यक्ति का वर्णन किया, जिसके पैरोटिड और लैक्रिमल ग्रंथियों में वृद्धि हुई थी, जो गोल-कोशिका घुसपैठ और एसिनर शोष से जुड़ी थी। लेकिन इन मानदंडों के कारण अक्सर बीमारी को मिकुलिक्ज सिंड्रोम समझ लिया जाता था। फिर भी, इस शब्द का उपयोग अभी भी कभी-कभी लार-ग्रंथि बायोप्सी पर लिम्फोसाईटिक घुसपैठ की उपस्थिति का वर्णन करने के लिए किया जाता है।

साल 1929 में डॉ. हेनरिक स्जोग्रेन की मुलाकात एक ऐसे मरीज से हुई जिसने आंखों के सूखने, मुंह सूखने और जोड़ों के दर्द की शिकायत की थी। जबकि इनमें से कई लक्षण पहले से ही अच्छी तरह से ज्ञात थे, उन्हें यह सब अजीब लगा और उन्होंने जांच करने का फैसला किया।

1933 में, उन्होंने 19 महिलाओं का वर्णन करते हुए अपनी डॉक्टरेट थीसिस प्रकाशित की, जिनमें से अधिकांश रजोनिवृत्ति के बाद की थीं और गठिया से पीड़ित थीं, जो सिंड्रोम के जांच और रोग संबंधी लक्षण दिखाती थीं। उनकी थीसिस को पहले अच्छी तरह से स्वीकार नहीं किया गया था, क्योंकि बोर्ड ऑफ एग्जामिनर्स ने कुछ नैदानिक पहलुओं की आलोचना की थी।

व्यापक शोध और आंकड़ों के संग्रह के बाद, स्जोग्रेन ने 1951 में एक अहम शोधपत्र प्रकाशित किया, जिसमें सूखी आंखों वाले 80 रोगियों का वर्णन किया गया था, जिनमें से 50 को गठिया भी था। उन्होंने इस बीमारी को 'केराटोकोनजंक्टिवाइटिस सिका' कहा और इसे साहित्य में स्जोग्रेन सिंड्रोम कहा जाने लगा।

आज कल, 'केराटोकोनजंक्टिवाइटिस सिका' का उपयोग सूखी आंखों के लिए एक वैज्ञानिक शब्द के रूप में किया जाता है। स्जोग्रेन फाउंडेशन की स्थापना 1983 में एलन हैरिस ने की थी। वह स्जोग्रेन सिंड्रोम से पीड़ित एक रोगी थी, जो अपने लक्षणों की पहचान करने में लगने वाले समय और जानकारी की कमी से निराश थी।

क्योंकि स्जोग्रेन सिंड्रोम नमी बनाने वाली ग्रंथियों पर हमला करता है, इस बीमारी के कई लक्षण व्यक्ति के सूखेपन से संबंधित होते हैं। सूखी आंखें, सूखी त्वचा मुंह का बार-बार सुखना और योनि का सूखापन सभी स्जोग्रेन सिंड्रोम का हिस्सा हो सकते हैं। बेशक जो व्यक्ति इन या अन्य लक्षणों से गुजर रहा हो, उसे इन लक्षणों के बारे में बात करने के लिए एक चिकित्सक से अवश्य मिलना चाहिए, चाहे इसका निदान करना हो या उपचार हासिल करना हो।