2011 में, वैश्विक जनसंख्या सात अरब के आंकड़े तक पहुंच गई, 2021 में यह लगभग 7.9 अरब थी और 2030 में इसके लगभग 8.5 अरब, 2050 में 9.7 अरब और 2100 में 10.9 अरब तक बढ़ने का पूर्वानुमान है। फोटो साभार: संयुक्त राष्ट्र
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विश्व जनसंख्या दिवस: साल 2100 तक 10.9 अरब होगी दुनिया की आबादी

Dayanidhi

हर साल 11 जुलाई को मनाया जाने वाला विश्व जनसंख्या दिवस का उद्देश्य दुनिया भर में जनसंख्या संबंधी मुद्दों और समाज पर उनके प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थापित यह महत्वपूर्ण दिन प्रजनन स्वास्थ्य, परिवार नियोजन, लैंगिक समानता और सतत विकास जैसी जनसंख्या संबंधी चिंताओं से निपटने के महत्व पर प्रकाश डालता है।

बढ़ती जनसंख्या से आने वाली चुनौतियों और अवसरों को पहचानकर, विश्व जनसंख्या दिवस सरकारों, संगठनों और लोगों को चर्चाओं में शामिल होने और कार्रवाई करने के लिए एक मंच प्रदान करता है। इस आयोजन के माध्यम से, संयुक्त राष्ट्र सभी देशों के लिए एक स्थायी भविष्य सुनिश्चित करने के लिए समझ, सहयोग और नए-नए समाधानों को बढ़ावा देता है।

भारत की जनसंख्या दुनिया भर के देशों की तुलना में सबसे अधिक है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, भारत की आबादी 142.57 करोड़ है, जिसमें सबसे ज्यादा जनसंख्या हिंदुओं की है और उसके बाद मुसलमानों की है।

विश्व जनसंख्या दिवस की स्थापना संयुक्त राष्ट्र द्वारा की गई थी और इसे पहली बार 1989 में मनाया गया था। यह विचार 11 जुलाई 1987 को विश्व की जनसंख्या के पांच अरब तक पहुंचने से प्रेरित था, जिससे विश्व बैंक के वरिष्ठ जन-सांख्यिकीविद् डॉ. के.सी. जकारिया ने इस अवसर को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाने का सुझाव दिया था।

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, दुनिया की आबादी को एक अरब तक बढ़ने में सैकड़ों हजार साल लग गए, फिर मात्र 200 साल या उससे कुछ अधिक समय में यह सात गुना बढ़ गई। 2011 में, वैश्विक जनसंख्या सात अरब के आंकड़े तक पहुंच गई, 2021 में यह लगभग 7.9 अरब थी और 2030 में इसके लगभग 8.5 अरब, 2050 में 9.7 अरब और 2100 में 10.9 अरब तक बढ़ने का पूर्वानुमान है।

यह वृद्धि मुख्य रूप से प्रजनन आयु तक जीवित रहने वाले लोगों की बढ़ती संख्या के कारण हुई है और इसके साथ ही प्रजनन दर में बड़े बदलाव, बढ़ते शहरीकरण और तेज प्रवास भी हुए हैं। इन प्रवृत्तियों का आने वाली पीढ़ियों पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।

संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि हाल के दिनों में प्रजनन दर और जीवन प्रत्याशा में भारी बदलाव देखने को मिले हैं। 1970 के दशक की शुरुआत में, महिलाओं के औसतन 4.5 बच्चे थे, 2015 तक, दुनिया भर में कुल प्रजनन दर प्रति महिला 2.5 बच्चों से कम हो गई थी। इस बीच, औसत वैश्विक जीवन काल 1990 के दशक की शुरुआत में 64.6 वर्ष से बढ़कर 2019 में 72.6 वर्ष हो गया है।

इसके अलावा दुनिया भर में शहरीकरण का स्तर बहुत अधिक है तथा प्रवासन भी तेजी से बढ़ रहा है। 2007 पहला साल था, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी क्षेत्रों में अधिक लोग दर्ज किए गए थे तथा 2050 तक विश्व की लगभग 66 प्रतिशत जनसंख्या के शहरों में रहने का पूर्वानुमान है।

इन बढ़ते रुझानों के दूरगामी प्रभाव हैं। वे आर्थिक विकास, रोजगार, आय के वितरण, गरीबी और सामाजिक सुरक्षा पर असर डालते हैं। वे स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, आवास, स्वच्छता, पानी, भोजन और ऊर्जा तक सभी की पहुंच सुनिश्चित करने के प्रयासों को भी प्रभावित करते हैं। लोगों की जरूरतों को अधिक स्थायी रूप से हल करने के लिए, नीति निर्माताओं को यह समझना चाहिए कि धरती पर कितने लोग रह रहे हैं, वे कहां हैं, उनकी उम्र कितनी है और उनके बाद कितने लोग आएंगे।

विश्व जनसंख्या दिवस 2024 की थीम

"किसी को पीछे न छोड़ें, सभी की गिनती करें" विश्व जनसंख्या दिवस 2024 की थीम है। वेबसाइट के हवाले से संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि "इस वर्ष की थीम मुद्दों को समझने, उनका समाधान करने और प्रगति को आगे बढ़ाने के लिए आंकड़ों के संग्रह में निवेश के महत्व पर प्रकाश डालता है। वित्तीय निवेश भी महत्वपूर्ण है। मैं देशों से आग्रह करता हूं कि वे इस साल भविष्य के शिखर सम्मेलन का लाभ उठाएं ताकि सतत विकास के लिए सस्ती पूंजी को सभी के लिए खोला जा सके।"

क्या आप जानते हैं?

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) के मुताबिक, दुनिया भर में 40 प्रतिशत से अधिक महिलाएं यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य तथा प्रजनन अधिकारों पर निर्णय नहीं ले पाती हैं। कम और मध्यम आय वाले देशों में मात्र चार में से एक महिला ही अपनी वांछित प्रजनन क्षमता हासिल कर पाती है।

गर्भावस्था या प्रसव के कारण हर दो मिनट में एक महिला की मृत्यु हो जाती है, जबकि संघर्ष की स्थिति में, मृत्यु की संख्या दोगुनी हो जाती है। लगभग एक तिहाई महिलाओं ने अपने साथी द्वारा हिंसा, गैर-साथी द्वारा यौन हिंसा या दोनों का अनुभव किया है।

केवल छह देशों में संसद में 50 प्रतिशत या उससे अधिक महिलाएं हैं। दुनिया भर में 80 करोड़ लोग जो पढ़ नहीं सकते उनमें से दो तिहाई से अधिक महिलाएं हैं।