स्वास्थ्य

विश्व मलेरिया दिवस 2024: लाखों जिंदगियां लील रही है मलेरिया की बीमारी, क्या है बचाव के उपाय?

भारत में 2015 की तुलना में 2022 में मलेरिया के मामलों में 85 फीसदी की गिरावट आई और 83 फीसदी मौतें कम हुई

Dayanidhi

हर साल, दुनिया मलेरिया के खिलाफ निवारक उपायों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए 25 अप्रैल को विश्व मलेरिया दिवस मनाती है और यह सुनिश्चित करने के लिए कि हम इस बीमारी के शिकार न हों।

मलेरिया, एक ऐसी बीमारी जिसने सदियों से इंसानों को परेशान किया है। यह बीमारी दुनिया भर के सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा बनी हुई है, जिसका एक बड़ा बोझ भारत पर है। जहां ठोस प्रयासों के बावजूद, प्रभावी रोकथाम और उपचार में बाधाएं बनी हुई हैं, जिससे संक्रमण का चक्र जारी है। मलेरिया से वास्तव में निपटने के लिए, हमें इन बाधाओं को व्यापक रूप से निपटना होगा।

विश्व मलेरिया दिवस लोगों से इस बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए एकजुट होने का आग्रह करता है। यह अंतरराष्ट्रीय भागीदारों, फाउंडेशनों और कंपनियों के लिए एक मंच है जो इस बीमारी को खत्म करने और बेहतर स्वास्थ्य सेवा संरचना हासिल करने में अपने प्रयासों को दर्शाता है।

क्लिनिकल एपिडेमियोलॉजी एंड ग्लोबल हेल्थ जर्नल में 2024 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भारत दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में वैश्विक मलेरिया के बोझ का 79 फीसदी वहन करता है और उन्मूलन की दिशा में अपने प्रयासों में भारी चुनौतियों का सामना कर रहा है।

विश्व मलेरिया रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत की प्रगति उल्लेखनीय रही है। 2015 की तुलना में 2022 में मलेरिया के मामलों में 85 फीसदी की गिरावट और 83 फीसदी मौतें कम हुई। आंकड़े बताते है कि 2022 में 126 जिलों में ‘शून्य मलेरिया’ की जानकारी दी गई है।

वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा 2023 में प्रकाशित विश्व मलेरिया रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 में, भारत में डब्ल्यूएचओ दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में मलेरिया के 66 फीसदी मामले सामने आए।

कैसे होती है मलेरिया की बीमारी?

मलेरिया एक जानलेवा बीमारी है जो कुछ प्रकार के मच्छरों द्वारा मनुष्यों में फैलती है। यह ज्यादातर उष्णकटिबंधीय देशों में पाई जाती है। इसे रोका जा सकता है और इसका इलाज किया जा सकता है। यह संक्रमण एक परजीवी के कारण होता है और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता है।

लक्षण हल्के या जानलेवा हो सकते हैं। हल्के लक्षण बुखार, ठंड लगना और सिरदर्द हैं। गंभीर लक्षणों में थकान, भ्रम, दौरे और सांस लेने में कठिनाई शामिल हैं।

शिशुओं, पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं, यात्रियों और एचआईवी या एड्स से पीड़ित लोगों को गंभीर संक्रमण का अधिक खतरा होता है।

मलेरिया ज्यादातर संक्रमित मादा एनोफ़ेलीज़ मच्छरों के काटने से लोगों में फैलता है। रक्त संचार और दूषित सुइयों से भी मलेरिया फैल सकता है। शुरुआती लक्षण हल्के हो सकते हैं, कई ज्वर संबंधी बीमारियों के समान और मलेरिया के रूप में पहचानना मुश्किल हो सकता है। अगर इलाज न किया जाए, तो पी. फाल्सीपेरम मलेरिया 24 घंटे के भीतर गंभीर बीमारी और मौत का रूप ले सकता है।

प्लास्मोडियम परजीवी की पांच प्रजातियां हैं जो मनुष्यों में मलेरिया का कारण बनती हैं और इनमें से दो प्रजातियां - पी. फाल्सीपेरम और पी. विवैक्स - सबसे बड़े खतरे हैं। पी. फाल्सीपेरम सबसे घातक मलेरिया परजीवी है और अफ्रीकी महाद्वीप पर सबसे अधिक प्रचलित है। पी. विवैक्स उप-सहारा अफ्रीका के बाहर अधिकांश देशों में प्रमुख मलेरिया परजीवी है। अन्य मलेरिया की प्रजातियां जो मनुष्यों को संक्रमित कर सकती हैं वे हैं पी. मलेरिया, पी. ओवेल और पी. नोलेसी है।

विश्व मलेरिया दिवस का इतिहास

अफ्रीकी सरकारें 2001 से अफ्रीका का मलेरिया दिवस मनाती आ रही हैं, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा प्रायोजित विश्व स्वास्थ्य सभा के 60वें सत्र में बदलकर विश्व मलेरिया दिवस कर दिया गया। उन्होंने फैसला किया कि दुनिया को मलेरिया और मच्छरों के काटने से बचाव के उपायों के बारे में अधिक जागरूक और सतर्क रहने की आवश्यकता है। तब से, हर साल विश्व मलेरिया दिवस मनाया जाता है।

क्या है विश्व मलेरिया दिवस 2024 की थीम?

इस वर्ष विश्व मलेरिया दिवस 2024 थीम है "अधिक न्यायसंगत दुनिया के लिए मलेरिया के खिलाफ लड़ाई में तेजी लाना" है।

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, दुनिया भर में साल 2022 में, 85 देशों में मलेरिया के लगभग 24.9 करोड़ मामले और 60,8,000 मौतें हुई।

डब्ल्यूएचओ अफ्रीकी क्षेत्र वैश्विक मलेरिया के बोझ का अनुपातहीन रूप से सबसे बड़ा हिस्सा वहन करता है।

2022 में, इस क्षेत्र में मलेरिया के 94 फीसदी मामले, (23.3 करोड़ मामले) और मलेरिया से होने वाली 95 फीसदी मौतें (5,80,000) हुई थीं।

इस क्षेत्र में मलेरिया से होने वाली सभी मौतों में से लगभग 80 फीसदी मौतें पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की होती हैं।