स्वास्थ्य

वर्ल्ड हेल्थ असेंबली: मूल निवासियों के स्वास्थ्य को सशक्त करने के लिए ऐतिहासिक संकल्प को मंजूरी

90 देशों में करीब 47.6 करोड़ मूल निवासी हैं, जो गरीबी और स्वास्थ्य सेवाओं से दूर हाशिए पर जीने को मजबूर हैं

Lalit Maurya

वर्ल्ड हेल्थ असेंबली ने अपने 76वें सत्र में मूल निवासियों के स्वास्थ्य को सशक्त करने के लिए ऐतिहासिक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इस प्रस्ताव के तहत मूल निवासियों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए एक वैश्विक कार्य योजना को तैयार करने और उसे 2026 में वर्ल्ड हेल्थ असेंबली के 79वें सत्र में प्रस्तुत करने का आह्वान किया है।

असेंबली ने कहा है कि इस वैश्विक कार्य योजना को मूल निवासियों के परामर्श और सहमति से विकसित किया जाए। गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य सभा का 76वां सत्र 21 से 30 मई के बीच जिनेवा में संपन्न हुआ है। संकल्प में इस बात पर जोर दिया गया है कि वैश्विक योजना में प्रजनन, मातृ और किशोर स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। साथ ही शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना जरूरी है।

असेंबली ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से मूल निवासियों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए सदस्य देशों के अनुरोध पर सहायता देने का भी आह्वान किया है। इसके अलावा, सभा में आदिवासियों के स्वास्थ्य सुधार से जुड़ी कार्य योजना को विश्व स्वास्थ्य संगठन के चौदहवें सामान्य कार्यक्रम के विकास में शामिल करने की बात कही गई है।

गौरतलब है कि प्रस्ताव के इस ड्राफ्ट को ऑस्ट्रेलिया, बोलीविया, ब्राजील, कनाडा, कोलंबिया, क्यूबा, ​​इक्वाडोर, यूरोपियन यूनियन और उसके सदस्य देशों के साथ  ग्वाटेमाला, मैक्सिको, न्यूजीलैंड, पनामा, पैराग्वे, पेरू, अमेरिका और वानुअतु द्वारा प्रस्तावित किया गया था।

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया के 90 देशों में करीब 47.6 करोड़ मूल निवासी हैं। जो वैश्विक आबादी का पांच फीसदी से भी कम हिस्सा हैं। लेकिन दुनिया के 15 फीसदी सबसे गरीब लोगों का तबका मूल निवासियों का ही है। यह मूल निवासी दुनिया की 7,000 भाषाएं बोलते हैं। साथ ही 5,000 अलग-अलग संस्कृतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

स्वास्थ्य सुविधाओं से दूर हाशिए पर जीने को मजबूर हैं मूल निवासी

देखा जाए तो यह मूल निवासी विविध समूहों और समुदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वहीं यदि इनके स्वास्थ्य को देखें तो इनकी जीवन प्रत्याशा अन्य सामान्य लोगों की तुलना में काफी कम है। यह लोग पहले ही मधुमेह, कुपोषण बढ़ती मातृ एवं शिशु मृत्यु दर के साथ कई अन्य बीमारियों और स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का सामना करने को मजबूर हैं।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक इन मूल निवासियों की जीवन प्रत्याशा अन्य लोगों की तुलना में औसतन 20 वर्ष तक कम है। इसके अलावा इनके बीच खराब स्वास्थ्य, विकलांगता और जीवन की गुणवत्ता में कमी का अनुभव करने की कहीं ज्यादा आशंका है।

हाशिए पर रह रहे यह मूल निवासी आज भी बुनियादी ढांचे से दूर हैं। इनकी स्थिति कितनी खराब है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अक्सर यह लोग अपनी अपनी जमीन और आसपास के प्राकृतिक संसाधनों पर भी अपने अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं।

यह मूल निवासी स्वास्थ्य सेवाओं से दूर हैं। ऊपर से सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण से जुड़ी घटनाएं हर समय इनका इम्तिहान लेती हैं। यह लोग आज भी गरीबी, आवास, हिंसा, जातिवाद, अशिक्षा और सांस्कृतिक बाधाओं जैसे अन्य मुद्दों से जूझ रहे हैं। इसके अलावा प्रदूषण, आर्थिक अवसरों का आभाव, सामाजिक सुरक्षा, साफ पानी स्वच्छता, जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाएं और आपात स्थितियां इनपर दबाव डाल रहीं हैं, जिनसे निपटने के लिए सही योजनाओं और समर्थन की दरकार है।

इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए इस प्रस्ताव में, स्वास्थ्य सभा ने सदस्य राज्यों से अन्य कार्यों के अलावा, मूल निवासियों की स्वतंत्र और पूर्व सहमति से उनके स्वास्थ्य की स्थिति के बारे में जानकारी में वृद्धि करने का आग्रह किया है।

इसका उद्देश्य वर्तमान में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुंच को बेहतर करना और विशिष्ट आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उसमें मौजूद गैप की पहचान करना और उनके उपयोग में जो बाधाएं हैं, उन कमियों के कारणों की पहचान करना और उन्हें दूर करने के लिए सुझाव देना है।

साथ ही सभा ने देशों से मूल निवासियों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजनाओं, रणनीतियों या उपायों में विकास की बात कही है। इसके अलावा स्वदेशी लोगों के पारंपरिक ज्ञान और प्रथाओं को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के रूप में इनकी भर्ती, प्रशिक्षण और इसके लिए उन्हें प्रोत्साहित करने की बात भी ड्राफ्ट में कही है।

लैंगिक असमानता को कम करने के साथ-साथ सभा ने देशों से स्थानीय भाषाओं में प्रदान की जाने वाली गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी समान पहुंच सुनिश्चित करने पर जोर दिया है। इसके लिए सामाजिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक बाधाओं को दूर करते हुए सार्वजनिक स्वास्थ्य तक पहुंच सुनिश्चित करने को बल दिया है। साथ ही स्वास्थ्य से जुड़ी स्थानीय प्रथाओं को मान्यता देते हुए, प्रजनन, मातृ और किशोर स्वास्थ्य पर विशेष जोर देने की बात कही है।