स्वास्थ्य

जानिए भारत के कोविड वैक्सीन खरीदने और कीमतों की नीति से एक्सपर्ट क्यों है नाखुश?

Banjot Kaur, Shagun

वैक्सीन की कीमत तय करने से जुड़ी चिंताओं के बीच, भारत ने 28 अप्रैल से 18 साल से ज्यादा उम्र के के सभी व्यक्तियों के टीकाकरण के लिए रजिस्ट्रेशन शुरू कर दिया। इसी दिन सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई), दो वैक्सीन निर्माताओं में से एक, ने घोषणा की कि वह राज्य सरकारों के लिए वैक्सीन का दाम 100 रुपये (प्रति खुराक) कम कर देगा।

यह घोषणा सुप्रीम कोर्ट की ओर से केंद्र सरकार से वैक्सीन के अलग-अलग दाम तय करने पर जवाब तलब किए जाने के एक दिन बाद की गई।

हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि वैक्सीन की कीमत को लेकर यह बदलाव शायद ही राज्य सरकारों का भय दूर कर पाए, जिन्हें एसआईआई की कोविशील्ड वैक्सीन 300 रुपये प्रति खुराक और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन 600 रुपये प्रति खुराक की दर से खरीदनी पड़ेगी। दोनों निर्माताओं ने इन वैक्सीन को केंद्र सरकार को 150 रुपये प्रति खुराक के हिसाब से उपलब्ध कराया है। उन्होंने चेताया है कि इसमें राज्यों के बीच ‘वैक्सीन वार’ छिड़ने, जमाखोरी, भ्रष्टाचार और कालाबाजारी होने जैसे जोखिम मौजूद हैं।

केंद्र ने कोविड-19 वैक्सीन निर्माताओं को अपना 50 फीसदी स्टॉक सीधे राज्यों और खुले बाजार में बेचने की छूट दी थी, अब इस कदम का स्वास्थ्य विशेषज्ञ और अर्थशास्त्री दोनों ही आलोचना कर रहे हैं।

अब तक, 20 से ज्यादा राज्यों ने घोषणा की है कि वे अपने राज्य की संपूर्ण आबादी या विशेष आयु वर्ग को मुफ्त में वैक्सीन लगाएंगे। इनमें केरल, दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा, ओडिशा, झारखंड और कर्नाटक जैसे राज्य शामिल हैं।

ऑक्सफैम की लीड, असमानता, स्वास्थ्य और शिक्षा कार्यक्रमों से जुड़ी अंजेला तनेजा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि राज्य सरकारें, जिन्हें वैक्सीन खरीदने के बारे में पहले से कोई अनुभव नहीं है, अपने स्वास्थ्य बजट का औसतन 27 फीसदी हिस्सा वैक्सीन पर खर्च कर देंगी। यह आंकड़ा ऑक्सफैम की आगामी रिपोर्ट के लिए किए गए आकलन पर आधारित है।

उन्होंने कहा, “चूंकि राज्य स्वास्थ्य बजट 2021 का कम से कम 27 फीसदी हिस्सा सिर्फ टीकाकरण पर खर्च हो जाएगा, ऐसे में मेडिकल ऑक्सीजन, वेंटिलेटर, अस्पतालों, दवाओं की खरीद कैसे हो पाएगी?”

विभिन्न विशेषज्ञों के आकलन बताते हैं कि संपूर्ण आबादी के टीकाकरण के लिए केंद्र सरकार पर 50,000-70,000 करोड़ रुपये के बीच खर्च का बोझ आएगा। केंद्र सरकार ने 2021-22 के बजट में कोविड-19 टीकाकरण के लिए 35,000 करोड़ रुपये आवंटित किए थे।

इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च (इंड-रा) का आकलन बताता है कि संपूर्ण आबादी के टीकाकरण पर 67,190 करोड़ रुपये की लागत आ सकती है, जिनमें से केंद्र सरकार पर 20,870 करोड़ रुपये और सभी राज्य सरकारों पर 46,320 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का महज 0.36 फीसदी है, जो महामारी की कुल आर्थिक कीमत को देखते हुए बहुत छोटी राशि है। यह गणना वैक्सीन की खुराक के पांच फीसदी नुकसान के साथ 400 रुपये प्रति खुराक की अनुमानित कीमत पर आधारित थी.

इसी तरह, ओपी जिंदल स्कूल ऑफ पब्लिक एंड गवर्नमेंट पॉलिसी की हेल्थ इकोनॉमिस्ट (स्वास्थ्य अर्थशास्त्री) इंद्रनिल मुखोपाध्याय ने कहा कि 130 करोड़ भारतीयों (500 रुपये प्रति व्यक्ति) के लिए वैक्सीन खरीदने पर सरकार का मोटा-मोटी 56,000 करोड़ रुपये खर्च होगा।

उन्होंने कहा, “लेकिन केंद्र सरकार अगर बड़े पैमाने पर वैक्सीन की खरीद कर रही है, तो इसकी लागत में कमी आएगी। इसलिए 35,000 करोड़ रुपये (बजट) भी पर्याप्त होगा। अगर कोई कमी पड़ती है, तो पीएम केयर्स फंड का उपयोग किया जा सकता है।”

वास्तव में, यह पहला मौका है, जब राज्य सरकारों को किसी भी टीकाकरण के लिए अपने स्तर पर खरीदारी करने के लिए कहा गया है। राज्यों के पास टीकाकरण के लिए खरीदारी करने का पहले का कोई अनुभव नहीं है, क्योंकि एक साल से कम आयु के बच्चों के सार्वभौमिक टीकाकरण के तहत प्रतिरक्षण हमेशा ही केंद्रीकृत गतिविधि रही है। राज्यों के पास केवल कार्यक्रम को लागू करने की जिम्मेदारी होती थी। खरीदारी में निपुणता की कमी के चलते उन्हें वैक्सीन कीमत के बारे में आपूर्तिकर्ताओं से मोल-भाव करने में मदद नहीं मिल पाएगी।

इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल एथिक्स के संपादक अमर जेसानी कहते हैं कि पहले जब भी भारत सरकार के पास राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के लिए कोई कमी पड़ी है, उसने यूनिसेफ से मदद मांगी है।

उन्होंने कहा, “वैक्सीन के मामले में, केंद्र सरकार हमेशा ही सबसे बड़ी खरीदार होती है। एक महामारी के दौरान आप राज्यों को वैक्सीन खरीदने के लिए कैसे कह सकते हैं? यह बेतुका है, खास तौर पर जब दूसरी सभी वैक्सीन राष्ट्रीय कार्यक्रम का हिस्सा हैं।”

इस तथ्य से इनकार नहीं है कि संपूर्ण भारतीय आबादी का टीकाकरण एक खर्चीला काम है और महामारी के बीच में राज्यों को खुले बाजार से वैक्सीन खरीदने के लिए कहने की जगह केंद्र सरकार को इसे एक स्पष्ट रणनीति और आकलन के माध्यम से हल करना चाहिए।

पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव, केशव देसिराजू ने कहा, “यह याद रखने लायक है कि टीकाकरण खर्चीला काम है। 50,000 करोड़ रुपये एक बड़ी राशि होती है, लेकिन ऐसा नहीं है कि सरकार उतना पैसा दूसरी योजनाओं पर खर्च नहीं करती है। इसके अलावा, अब यह तो एक महामारी है।”

देसिराजू की टिप्पणी की प्रतिध्वनि केंद्रीय बजट 2021-22 में भी देखी जा सकती है। केंद्र सरकार ने सड़क निर्माण, राजमार्ग प्राधिकरण, यूरिया सब्सिडी, पीएम-किसान सम्मान निधि, पेयजल मिशन और मनरेगा जैसी चुनिंदा योजनाओं के लिए 50,000 करोड़ रुपये से लेकर 73,000 करोड़ रुपये के बीच बजट आवंटित किया है।

सुझाव के तौर पर उन्होंने कहा कि सरकार को सभी के लिए टीकाकरण शुरू करने की जगह पर, इसे चरणबद्ध तरीके से लागू करना चाहिए, जनसमूहों को वैज्ञानिक आधार पर प्राथमिकता देनी चाहिए, जिन्हें जनकल्याण के तौर पर वैक्सीन लगे।

(वैक्सीन की कीमत में अंतर करने के) फैसले को ‘आपराधिक’ बताते हुए देसिराजू ने कहा कि इससे राज्यों के बीच कीमत को लेकर टकराव (प्राइस वॉर) होगा। उन्होंने कहा, “यह जमाखोरी, भ्रष्टाचार और वैक्सीन के लिए उपद्रव को भी जन्म दे सकता है।”

मुखोपाध्याय का कहना है कि बड़ी अर्थव्यवस्था वाले राज्य आगे रहेंगे।

इस तरीके से, बहुत से लोग (टीकाकरण से) छूट जाएंगे, क्योंकि एक बड़ी आबादी वैक्सीन नहीं खरीद पाएगी, जबकि वैज्ञानिकों का कहना है कि केवल वैक्सीन ही जनसंख्या के स्तर पर प्रतिरक्षा या तथाकथित झुंड प्रतिरक्षा (हर्ड इम्युनिटी) लाने में मदद कर सकती है।

एक हालिया लेख में, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के प्रोफेसर आर रामाकुमार ने उल्लेख किया है कि आधिकारिक सर्वेक्षणों के अनुसार, 2012-13 में भारत में एक कृषक परिवार की औसत मासिक आय 6,426 रुपये थी। इस राशि को अगर एक बेंचमार्क (पैमाना) मान लें, तो परिवार को अपनी मासिक आय का लगभग 50 फीसदी हिस्सा वैक्सीन के लिए खर्च करना पड़ेगा। नतीजतन, दसियों हजार परिवार टीकाकरण से वंचित हो सकते हैं।

मुखोपाध्याय का कहना है कि अगर वैक्सीन का भुगतान करने की बाध्यता रही तो यह 10 फीसदी दूसरे परिवारों को गरीबी रेखा से नीचे धकेल देगा।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इस हालात से निपटने का एक बेहतर तरीका अन्य योजनाओं की तरह केंद्र और राज्यों के बीच लागत का बंटवारा हो सकता है, जिसमें पैसे का बड़ा हिस्सा केंद्र सरकार के बजट से आता है।

निजी बाजार में वैक्सीन

केंद्र के नए दिशानिर्देशों के अनुसार, 45 वर्ष या इससे अधिक आयु के लोगों को सरकारी संस्थानों में निशुल्क वैक्सीन लगती रहेगी, जैसा पहले तय किया गया था। हालांकि, दूसरे समूहों के लिए, सरकारी केंद्रों पर टीकाकरण सिर्फ तभी निशुल्क होगा, जब संबंधित राज्य सरकार ऐसा कोई फैसला करती हैं। निजी क्षेत्र की सुविधाओं में, सभी को वैक्सीन के लिए कंपनियों की ओर से तय कीमत चुकानी पड़ेगी।

लगभग 84.1 करोड़ आबादी 18-45 वर्ष आयु वर्ग में आती है।

तनेजा ने कहा, “(वैक्सीन के लिए बाजार को खोलने का) फैसला कोरोना मामलों और मौतों में आए उछाल की त्वरित प्रतिक्रिया जैसा लगता है। पहले सरकार ने टीकाकरण को नियंत्रण मुक्त करने का ऐलान किया, फिर तीन से चार दिन बाद उसने वैक्सीन निर्माताओं से अपनी दरें घटाने के लिए कहा।”

भारत के अलावा; बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान, थाईलैंड और लेबनान ने भी ऐसा ही किया है। इन सभी देशों में, भारत के मुकाबले निजी बाजार में वैक्सीन की कीमत बहुत ज्यादा है।

निजी वैक्सीन का वैश्विक परिदृश्य 

देश

वैक्सीन आपूर्ति कर्ता

वैक्सीन

लागत प्रति खुराक

बांग्लादेश

सीरम इंस्टीट्यूट (इंडिया)

कोविशील्ड

13.27 डॉलर

थाइलैंड

साइनोवैक (चीन)

कोरोनावैक

32.52 डॉलर

नेपाल

भारत बायोटेक (भारत)

कोवैक्सीन

35 डॉलर

लेबनान

गामालेया इंस्टीट्यूट (रूस)

स्पूतनिक-V

19 डॉलर

पाकिस्तान

गामालेया इंस्टीट्यूट (रूस)

स्पूतनिक-V

27.15 डॉलर

स्रोत: कोविड-19 के लिए यूनिसेफ डैशबोर्ड

सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक ने भारत में क्रमशः 7.95 डॉलर और 8.06 डॉलर पर प्रति खुराक की दर से वैक्सीन बेचने का फैसला किया है। हालांकि, इन देशों से भारत सिर्फ इस मामले में अलग है कि इनमें से कोई भी देश वैक्सीन का उत्पादन नहीं करता है।

वास्तव में, भारत एकमात्र ऐसा देश है जो कोविड-19 टीके का उत्पादन करता है, इसके बावजूद,  नागरिकों के लिए निजी बाजार को खोलकर उन पर वैक्सीन के लिए भुगतान करने का बोझ डाल दिया गया है। किसी अन्य वैक्सीन उत्पादक देश ने ऐसा नहीं किया है।

वैक्सीन से जुड़े अपने हालिया साप्ताहिक संदेश में ड्यूक यूनिवर्सिटी ने कहा है कि वैक्सीन के लिए बाजार को खोलना भारत जैसी अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक ‘सकारात्मक रुझान’ हो सकता है, जहां की एक बड़ी आबादी वैक्सीन के लिए भुगतान कर सकती है। हालांकि, यह भी चेतावनी दी है कि यह ‘दो-ट्रैक वैक्सीन रोलआउट’ कही जाने वाली स्थिति को बढ़ावा दे सकता है।

यूनिवर्सिटी ने आगे कहा, “अमीरों को गरीबों की तुलना में पहले वैक्सीन लग जाएगी और उनकी दूसरी वैक्सीन तक भी पहुंच हो सकती है। यह एक वाणिज्यिक उत्पाद के रूप में वैक्सीन की कीमत बढ़ा सकता है, निर्माताओं को उच्च-भुगतान वाले निजी क्षेत्र के खरीदारों को प्राथमिकता देने के लिए उकसा सकता है और धोखाधड़ी के साथ-साथ कालाबाजारी जैसी स्थितियों को भी बढ़ा सकता है।”

भारत के किसी भी वैक्सीन निर्माता ने अपनी उत्पादन लागत को सार्वजनिक नहीं किया है। कुछ समय पहले एसआईआई के सीईओ अदार पूनावाला ने एक टीवी चैनल को बताया था कि केंद्र सरकार को 150 रुपये प्रति खुराक की दर से वैक्सीन बेचकर भी कंपनी लाभ कमा रही है, भले ही यह बहुत बड़ा लाभ (सुपर प्रॉफिट) नहीं है।