स्वास्थ्य

सालाना 12.5 लाख बच्चे टीबी के बन रहे शिकार, डब्ल्यूएचओ ने लॉन्च किया नया रोडमैप

2022 में दो लाख बच्चे इस जानलेवा बीमारी की भेंट चढ़ गए थे। जो टीबी से होने वाली कुल वैश्विक मौतों का करीब 16 फीसदी है

Lalit Maurya

तपेदिक यानी टीबी एक ऐसी जानलेवा बीमारी है जो बड़े-छोटे में भेद नहीं करती। केवल बड़े ही नहीं छोटे-छोटे बच्चे भी इसका शिकार बन रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक 2022 में 14 वर्ष या उससे कम उम्र के 12.5 लाख बच्चे ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) से पीड़ित थे। इनमें से करीब आधों की उम्र पांच साल या उससे कम थी।

यदि वैश्विक आंकड़ों पर गौर करें तो 2022 में वैश्विक स्तर पर टीबी के जितने भी मामले सामने आए थे उनमें से 12 फीसदी मरीजों की आयु 14 वर्ष या उससे कम थी। इतना ही नहीं साल 2022 में दो लाख बच्चे इस जानलेवा बीमारी की भेंट चढ़ गए थे। जो टीबी से होने वाली कुल वैश्विक मौतों का करीब 16 फीसदी है। वैश्विक स्तर पर देखें तो 2022 में करीब 13 लाख लोगों की टीबी के चलते मृत्यु हो गई थी।

इसी तरह टीबी का शिकार हुए जो बच्चे एचआईवी से पीड़ित नहीं थे उनमें दर्ज 76 फीसदी मौतें पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में दर्ज की गई थी। इतना ही नहीं टीबी से मरने वाले करीब-करीब सभी बच्चों को इलाज नहीं मिल सका था। टीबी एक ऐसी बीमारी है जिसमें अगर इलाज न किया जाए तो ऐसे 50 फीसदी से ज्यादा संक्रमितों की मृत्यु हो जाती है। ऐसे में डब्ल्यूएचओ ने इन बच्चों में टीबी की रोकथाम और इलाज के लिए नया पंचवर्षीय रोडमैप लॉन्च किया है।

इस रोडमैप में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में तपेदिक की रोकथाम, उपचार और देखभाल को बढ़ावा देने के लिए दस प्रमुख कार्यों के साथ एक महत्वाकांक्षी पंचवर्षीय योजना का खाका तैयार किया गया है।

अभी भी स्वास्थ्य देखभाल से वंचित हैं टीबी से पीड़ित लाखों बच्चे

इस बारे में डब्ल्यूएचओ के वैश्विक टीबी कार्यक्रम की निदेशक डॉक्टर टेरेजा कासेवा का कहना है कि, "यह कतई भी स्वीकार्य नहीं है कि दुनिया में हजारों बच्चों को अभी भी टीबी की रोकथाम, उपचार और देखभाल तक पहुंच हासिल नहीं है।" उनके मुताबिक यह नया रोडमैप अगले पांच वर्षों में आवश्यक कार्रवाइयों की नींव रखता है, जो टीबी पर 2023 की संयुक्त राष्ट्र उच्च-स्तरीय बैठक में विश्व नेताओं द्वारा की गई प्रतिबद्धताओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य बच्चों की देखभाल और उनके अधिकारों की रक्षा करना है।

टीबी जोकि एक संक्रामक बीमारी है उसे यक्ष्मा, तपेदिक, क्षयरोग, एमटीबी जैसे कई नामों से जाना जाता है। यह बीमारी आमतौर पर फेफड़ों को निशाना बनाती है, लेकिन शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकती है। यह एक प्रकार के बैक्टीरिया के कारण होती है, जो संक्रमित लोगों के खांसने, छींकने या थूकने पर हवा के माध्यम से फैलता है।

यदि समय पर इलाज मिले तो यह ऐसी बीमारी है जिसकी रोकथाम और इलाज संभव है। डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि वैश्विक आबादी का करीब एक चौथाई हिस्सा टीबी के इस बैक्टीरिया से संक्रमित है। हालांकि इससे संक्रमित करीब पांच से दस फीसदी लोगों में ही इसके लक्षण सामने आते हैं और उनमें ये बीमारी विकसित होती है।

गौरतलब है कि यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो 2022 में टीबी के 1.06 करोड़ मामले सामने आए थे, जिनमें से 27 फीसदी अकेले भारत में दर्ज किए गए थे। भारत भी इस बीमारी को जड़ से मिटाने के लिए प्रयास कर रहा है। इसके लिए 2025 का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया भर से इस बीमारी को खत्म करने के लिए 2030 का लक्ष्य तय किया है।

देश में इसकी रोकथाम के लिए कई कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं, जिसमें इलाज से लेकर स्वास्थ्य और पोषण के लिए सरकारी मदद देना शामिल है। इसमें रोगियों के लिए निक्षय पोषण योजना (एनपीवाई), उपचार को प्रोत्साहन देना, आदिवासी क्षेत्रों में टीबी रोगियों के इलाज के लिए आने-जाने में सहयोग करना, एनपीवाई के तहत सीधे बैंक खाते में धनराशि ट्रांसफर (डीबीटी) करना जैसी योजनाएं शामिल हैं।