भारत में अक्टूबर 2020 को पहली बार सामने आए कोरोनावायरस के वेरिएंट बी.1.617.1 को डब्लूएचओ ने नया लेबल 'कप्पा' दिया है जबकि दूसरे वैरिएंट बी.1.617.2 को डेल्टा नाम दिया है। यही नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अन्य वेरिएंट को भी अलग-अलग अक्षर पहचान के लिए दिए हैं। यह अक्षर ग्रीक वर्णमाला से लिए गए हैं।
यूके में मिले वैरिएंट बी.1.1.7 को अल्फा, दक्षिण अफ्रीका में मिले वैरिएंट बी.1.351 को 'बीटा' और ब्राजील में मिले पी.1 को गामा नाम दिया है। यह सभी वो वैरिएंट है जिन्हें वैरिएंट ऑफ कंसर्न (वीओसी) की श्रेणी में रखा गया है।
वहीं वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट (वीओआई) की श्रेणी में रखे अमेरिका में पहली बार मिले वैरिएंट बी.1.427/बी.1.429 को एप्सिलोन, ब्राज़ील में मिले पी.2 को जेटा, कई देशों में मिले वैरिएंट बी.1.525 को एटा, फ़िलीपीन्स में मिले पी.3 को थीटा, बी.1.526 को लोटा और भारत में मिले बी.1.617.1 को कप्पा नाम दिया है।
अन्य वायरसों की तरह कोविड-19 के लिए जिम्मेवार, कोरोनावायरस सार्स-कोव-2 में भी समय के साथ बदलाव दर्ज किया गया है। इन अधिकांश परिवर्तनों का इन वायरसों के गुणों पर थोड़ा बहुत प्रभाव जरूर पड़ता है। उदाहरण के लिए इन परिवर्तनों के बाद यह वायरस आसानी से फैल सकते हैं। यह फिर परिवर्तन रोग की गंभीरता को प्रभावित कर सकता है या वैक्सीन से बचाव में मददगार हो सकता है। या फिर उनमें अन्य तरह के बदलाव देखे जा सकते हैं।
जनवरी 2020 से ही डब्लूएचओ अपनी सहयोगी संस्थाओं, विशेषज्ञ नेटवर्क, राष्ट्रीय प्राधिकरणों, संस्थानों और शोधकर्ताओं के सहयोग से सार्स-कोव-2 के विकास पर निगरानी कर रहा है। 2020 के अंत से इस वायरस में बदलाव आने लगा और इसके नए वैरिएंट भी सामने आने लगे थे जिन्होंने स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा पैदा कर दिया था। इसी को ध्यान में रखते हुए और इनके जोखिम को देखते हुए इन नए वैरिएंट को वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट (वीओआई) और वैरिएंट ऑफ कंसर्न (वीओसी) दो भागों में बांट दिया था। इन नए वैरिएंट को पहचान के लिए जीआइएसएआइडी (ग्लोबल इनीशिएटिव आन शेयरिंग आल इनफ्लुएंजा डाटा), नेक्स्टस्ट्रेन और पैंगो द्वारा नाम दिए गए थे।
क्यों दिए गए इन वैरिएंट को नए नाम
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इन वैरिएंट को ग्रीक वर्णमाला के आधार पर नए नाम दे दिए हैं। जिसके आधार पर इन्हें नए नाम दिए गए हैं। यह फैसला ऐसे समय में लिया गया है जब भारत सहित कई देशों ने इन नामों को देश से जोड़े जाने पर आपत्ति जाहिर की थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि यह नाम इन वैरिएंट की पहचान को अधिक आसान और व्यावहारिक बनाएंगें। इन नामों को व्यापक परामर्श और कई संभावित नामकरण प्रणालियों की समीक्षा के बाद चुना गया है।
हालांकि इसके साथ ही डब्लूएचओ ने इस बात को भी स्पष्ट कर दिया है कि यह इन वैरिएंट के मौजूदा नामों को प्रतिस्थापित नहीं करते हैं, जो महत्वपूर्ण वैज्ञानिक जानकारी देते हैं। वो नाम पहले की तरह ही अनुसन्धान के लिए इस्तेमाल किए जाते रहेंगें।
डब्लूएचओ के अनुसार हालांकि इनके वैज्ञानिक नामों के अपने फायदे हैं, पर इन नामों को बोलना और याद रखना बहुत मुश्किल हो सकता है। साथ ही उनकी गलत रिपोर्टिंग का भी खतरा बना रहता है। इस वजह से लोग अक्सर उन वैरिएंट को उन जगहों के आधार पर बुलाते थे, जहां यह पहली बार सामने आए थे, जोकि गलत और भेदभावपूर्ण है। ऐसे में इससे बचने और इन्हें आसानी से आम लोगों की भी समझ में आने के लिए डब्लूएचओ ने इन नए नामों को अपनाने की सिफारिश की है।