स्वास्थ्य

सेहत के लिए खतरनाक हैं शुगर फ्री गोलियां, डब्ल्यूएचओ ने किया आगाह

Lalit Maurya

बढ़ते वजन और मोटापे को नियंत्रित रखने के साथ गैर संचारी रोगों के जोखिम को कम करने  के लिए चीनी के स्थान पर उसके कृत्रिम या प्राकृतिक विकल्पों के सेवन को बेहतर समझा जाता रहा है, लेकिन क्या सच में ऐसा होता है। इस बारे में 15 मई 2023 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने नए दिशानिर्देश जारी करते हुए आगाह किया है कि मिठास के इन कृत्रिम और प्राकृतिक विकल्पों के सेवन से बचना चाहिए।

गौरतलब है कि अक्सर चीनी या मीठे के अत्यधिक सेवन को बढ़ते वजन, मोटापे के साथ हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर जैसी बीमारियों को जोड़कर देखा जाता रहा है। यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों पर गौर करें तो यह गैर-संचारी बीमारियां दुनिया भर में होने वाली 74 फीसदी मौतों की वजह हैं, जो हर साल करीब 4.1 करोड़ लोगों की जिंदगियां लील रही हैं।

इन गैर-संचारी बीमारियों से होने वाली 77 फीसदी मौतें निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं। जिनमें ह्रदय सम्बन्धी रोग सबसे ज्यादा लोगों की जान ले रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक हर साल 1.8 करोड़ लोगों की मौत ह्रदय सम्बन्धी रोगों से हो रही है। वहीं यदि भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो यह गैर संक्रामक बीमारियां देश में हर मिनट 12 लोगों की जान ले रही हैं। जो देश में होने वाली करीब 66 फीसदी मौतों की वजह हैं।

यही वजह है कि संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य संगठन लम्बे समय से चीनी और मीठे के सेवन में कमी लाने की सिफारिशें करता रहा है। हालांकि इसके विकल्प के रूप में लोग गैर-शक्कर युक्त मिठास को इसके विकल्प के रूप में देखने लगे हैं, लेकिन यह सही नहीं है। देखा जाए तो यह गैर-शक्कर युक्त मिठास केमिकल्स और प्राकृतिक तत्वों के निचोड़ से बनाई जाती है। इसमें शून्य या बहुत कम कैलोरी होती है।

अक्सर इस कृत्रिम मिठास का उपयोग डिब्बा-बन्द खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों में किया जाता है और दर्शाया जाता है कि यह पदार्थ स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित हैं। ग्राहक भी इन्हें बेहतर समझकर अपने खाने पीने की चीजों जैसे चाय, कॉफी आदि में चीनी के स्थान पर उपयोग करते हैं। 

स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित नहीं आर्टिफिशियल स्वीटनर और गैर-शक्कर युक्त मिठास

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक इन गैर-शक्कर युक्त मिठास में मुख्यतः ऐस्पार्टेम, इस्सेल्फेम पोटेशियम, एडवेंटेम, साइक्लामेट्स, नियोटेम, सैक्रीन, सुक्रालोज, स्टेविया और उसके अन्य रूपों के अलावा अन्य उत्पाद शामिल हैं। इनमें कैलोरी के बिना ही मीठे का स्वाद लिया जा सकता है। यही वजह है कि अक्सर इनके बारे में वजन कम करने या मोटापे में कमी लाने जैसे तर्क दिए जाते हैं।

हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने सिफारिश की है कि कृत्रिम मिठास शरीर के बढ़ते वजन और मोटापे को नियंत्रित करने के साथ वजन सम्बन्धी बीमारियों को नियंत्रित करने में मदद नहीं करती है। डब्ल्यूएचओ की यह सिफारिशें उपलब्ध साक्ष्यों की समीक्षा पर आधारित है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन नए दिशा-निर्देशों में स्पष्ट कर दिया है कि गैर-शक्कर युक्त मिठास का इस्तेमाल करने से बड़ों और बच्चों के शरीर में चर्बी कम करने में दीर्घकालिक लाभ नहीं हुआ था।

वहीं डब्ल्यूएचओ के मुताबिक समीक्षा के नतीजे दर्शाते हैं कि गैर-शक्कर युक्त मिठास के लम्बे समय तक सेवन से अनचाहे असर पैदा होने की आशंका बढ़ जाती है। पता चला है कि इनकी वजह से टाइप टू मधुमेह, हृदय तथा रक्तवाहिकाओं संबंधी रोगों के साथ अन्य बीमारियां हो सकती हैं जो समय से पहले मृत्यु की वजह बन सकती हैं।

इस बारे में डब्ल्यूएचओ में पोषण एवं खाद्य सुरक्षा के निदेशक फ़्रांसेस्का ब्रांका का कहना है कि, "चीनी की जगह,  कृत्रिम मिठास का सेवन करने से लम्बे समय में वजन कम करने में कोई मदद नहीं मिलती है।" ऐसे में उनका सुझाव है कि लोगों को चीनी का उपयोग कम करने के लिए अन्य रास्ते तलाशने होंगें। इसके लिए मिठास के प्राकृतिक स्रोतों जैसे फलों और बिना मिठास वाले भोजन और पेय पदार्थों का इस्तेमाल करना होगा।

स्वास्थ्य संगठन से जुड़े विशेषज्ञों के मुताबिक आहार में गैर-शक्कर युक्त मिठास की कोई आवश्यकता नहीं है, इसमें कोई पोषण नहीं होता। यही वजह है कि लोगों को अपने आहार में मिठास के लिए इनका कम सेवन करना चाहिए। यह बेहतर स्वास्थ्य के लिए जरूरी है और इसकी शुरुआत बचपन से ही की जानी चाहिए।

डब्ल्यूएचओ के यह दिशानिर्देश उन लोगों को छोड़कर जो पहले ही मधुमेह से पीड़ित हैं, हर किसी पर लागू होते है। साथ ही यह निजी देखभाल और स्वच्छता से जुड़े उत्पादों जैसे टूथपेस्ट, त्वचा क्रीम, दवाएं, कम कैलोरी वाली शुगर और शुगर युक्त एल्कोहल के लिए नहीं हैं क्योंकि इन उत्पादों में कैलोरी होती है और ऐसे में इन्हें गैर-शक्कर युक्त मिठास नहीं माना जा सकता।

इस बारे में जर्नल नेचर मेडिसिन में भी प्रकाशित एक अध्ययन ने भी पुष्टि की है कि आमतौर पर इस्तेमानल होने वाले कृत्रिम स्वीटनर से दिल के दौरे के साथ स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। इस बारे में क्लीवलैंड क्लिनिक द्वारा की गई रिसर्च एरिथ्रिटोल नाम के आर्टिफिशियल स्वीटनर को लेकर आगाह किया है।