स्वास्थ्य

जीवन के अंतिम दिनों में रहने के लिए कौन सा देश है बेहतर, क्या है भारत की स्थिति

Lalit Maurya

कहते हैं जीवन और मृत्यु दो ऐसे सत्य हैं जिन्हें बदला नहीं जा सकता। यदि जीवन है तो मृत्यु जरुर होगी, पर मायने यह रखता है कि मृत्यु के उस समय में हम जीवन को कैसे जीते हैं। उस अंतिम समय में जो शारीरिक और मानसिक देखभाल दी जाती है वो बहुत जरुरी होती है। ऐसे में यह जानना महत्वपूर्ण है कि दुनिया के वो ऐसे कौन से देश हैं जो इस मामले में लोगों के लिए बेहतर काम कर रहे हैं।

इसी को ध्यान में रखते हुए ड्यूक विश्वविद्यालय द्वारा एक अध्ययन किया गया है, जिसमें देशों को जीवन के अंतिम समय में दी जा रही देखभाल के आधार पर ग्रेड किया गया है। इसमें जो निष्कर्ष सामने आए हैं वो चौंका देने वाले हैं। रिपोर्ट के मुताबिक स्टडी किए गए 81 देशों में से केवल छह देश ऐसे हैं जिन्हें ‘ए’ ग्रेड मिला है। यह अध्ययन जर्नल पेन एंड सिम्प्टम मैनेजमेंट में प्रकाशित हुआ है। 

इस मामले में यूनाइटेड किंगडम को लिस्ट में सबसे ऊपर रखा गया है। इसके बाद आयरलैंड, ताइवान, कॉस्ट रिका, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया को ए ग्रेड दी गई है। मतलब यह वो देश हैं जहां मरीज को उसके अंतिम समय में सबसे बेहतर शारीरिक और मानसिक देखभाल दी जाती है।

वहीं इस मामले में पैराग्वे को सबसे नीचे 81वें स्थान पर रखा गया है और उसे ‘एफ’ ग्रेड दी गई है। पैराग्वे के साथ ही 20 अन्य देशों को भी ‘एफ’ ग्रेड दी गई है, जिनमें बांग्लादेश, ब्राजील, सेनेगल, पुर्तगाल, दक्षिण अफ्रीका, अर्जेंटीना, नेपाल, सूडान मलेशिया, इथियोपिया और इराक जैसे देश शामिल हैं। वहीं 16 देशों को इस रिपोर्ट में 'डी' ग्रेड दी गई है, इन देशों में भारत, चीन, रूस, ग्रीस, इंडोनेशिया, चिली, जॉर्जिया, वियतनाम और मेक्सिको जैसे देश शामिल हैं। 

गौरतलब है कि 81 देशों की इस लिस्ट में भारत को ‘डी’ ग्रेड के साथ 59वें पायदान पर जगह दी गई है, जबकि अमेरिका 'सी' ग्रेड के साथ 43वें स्थान पर था। इस रैंकिंग से एक बात तो स्पष्ट है कि कमजोर और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में स्थिति ज्यादा खराब है और ऐसा होना स्वाभाविक भी है क्योंकि वहां स्वास्थ्य सुविधाओं का पहले ही आकाल है। 

इस बारे में इस शोध से जुड़े अन्य शोधकर्ता स्टीफन कॉनर का कहना है कि यह महज संयोग नहीं है कि सर्वे में अधिकांश बेहतर ग्रेड पाने वाले अधिकांश उच्च आय वाले देश हैं, जहां स्वास्थ्य पर कहीं ज्यादा खर्च किया जाता है। वहीं मध्यम और निम्न आय वाले देशों का प्रदर्शन बदतर है। ऐसे में इन देशों में स्वास्थ्य देखभाल पर कहीं ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है, जहां उच्च आय वाले देशों की तुलना में एक तिहाई से भी कम सुविधाएं उपलब्ध हैं। 

सिर्फ पैसा ही बेहतर अंत की गारंटी नहीं, समाज में जरुरी है संवेदना

हालांकि स्टीफन कॉनर और एरिक फिंकेलस्टीन दोनों ने अमेरिका का उदाहरण देते हुए कहा है कि हमेशा पैसा जीवन के अंतिम समय में बेहतर देखभाल देने की गारंटी नहीं देता है। गौरतलब है कि अमेरिका जोकि उच्च आय वाला देश है उसे इस सर्वे में 'सी' ग्रेड दिया गया है।

फिंकेलस्टीन का कहना है कि हम लोगों के लम्बे जीवन के प्रयास में तो भारी खर्च करते हैं, लेकिन जीवन के अंतिम समय में बेहतर तरीके से मरने के लिए पर्याप्त मदद नहीं करते हैं। देखा जाए तो जीवन की गुणवत्ता में सुधार कहीं ज्यादा मायने रखता है। साथ ही बेहतर सुविधाओं और इलाज के साथ-साथ बेहतर देखभाल भी मायने रखती है। 

इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता और ड्यूक ग्लोबल हेल्थ इंस्टीट्यूट से जुड़े प्रोफेसर एरिक फिंकेलस्टीन का इस बारे में कहना है कि समाज को इस आधार पर भी आंका जाना चाहिए कि वहां लोगों के अंतिम समय में कितनी बेहतर देखभाल की जाती है। उनके अनुसार विकसित और विकासशील दोनों तरह के देशों में स्थिति अच्छी नहीं है।

वहां लोग अपनी बचत का अधिकांश हिस्सा खर्च करने के बाद भी सम्मान और सहानुभूति के बिना, अपनी चुनी जगह और इलाज के आभावों के बीच मरने को मजबूर हैं, जहां उनमें से बहुत से यह भी नहीं जानते कि उनकी बीमारी क्या है। इन देशों में यह बहुत आम है। यह जो महामारी का दौर आया है उसमें हमने जो भयानक तस्वीरें देखी हैं वो ह्रदय विदीर्ण कर देने वाली हैं। जीवन के अंतिम क्षणों में लोग अपने प्रियजनों से दूर एकांत में मरने को मजबूर हो गए थे।

हालांकि इससे पहले भी दुनिया के अधिकांश हिस्सों में इस तरह की मौतों का होना आम है, क्योंकि बहुत से देशों में बीमारी और उम्र के एक पड़ाव में लोगों को ऐसे ही मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। जहां वो धीरे-धीरे बस अपनी मौत का इंतजार करते हैं। हमें समझना होगा कि मृत्यु रूपी इस सनातन सत्य को बदल तो नहीं सकते पर अंतिम दिनों को बेहतर तो बना सकते हैं। 

यह सही है कि देशों को इस दिशा में काम करने की जरुरत है। लोगों का बेहतर स्वास्थ्य हमारी प्राथमिकता होना चाहिए, जिसके लिए न केवल स्वास्थ्य सुविधाओं में  सुधार बल्कि साथ ही नीतियों में भी बदलाव की जरुरत है। हालांकि यह भी सही है कि जीवन के अंतिम समय में बेहतर अनुभव के लिए कदम उठाने के लिए नीतियों में बदलाव का इंतजार करने की जरुरत नहीं है।

यह बदलाव लोगों द्वारा भी लाया जा सकता है। इस बारे में परिवार और प्रियजनों से उम्र के इस पड़ाव में आने से पहले ही चर्चा करने की जरुरत है। इसके साथ ही जरुरी है संवेदना की जो समाज में धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है, क्योंकि हर व्यक्ति समाज और परिवार के ताने-बाने में बुना है ऐसे में यह समाज की भी जिम्मेवारी भी है कि वो जीवन के इन आखिरी पलों में एक दूसरे का साथ दें।