भारतीय शोधकर्ताओं ने एक ऐसी पद्धति खोजी है, जो मधुमेह से ग्रस्त होने से पूर्व उसकी चेतावनी देने में उपयोगी हो सकती है। शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में पता लगाया है कि मधुमेह होने से पूर्व ग्लूकोज की प्रचुर मात्रा प्रोटीन सीरम एलब्युमिन की इकाइयों से जुड़ जाती है। इस जैविक स्थिति का उपयोग मधुमेह से पहले की स्थिति का पता लगाने के लिए बायोमार्कर के रूप में किया जा सकता है।
आमतौर पर मधुमेह की वर्तमान स्थिति का पता लगाने के लिए खाली पेट ग्लूकोज खिलाकर रक्त में शर्करा की सहिष्णुता का परीक्षण किया जाता है। हालांकि, कई मामलों में यह विधि कारगर साबित नहीं होपाती। अध्ययन में प्रोटीन सीरम एल्ब्यूमिन के साथ प्रचुर मात्रा में ग्कूकोसंबद्ध पेप्टाइड पाया गया है, जो मधुमेह से ग्रस्त होने से पूर्व की स्थिति का सही रूप से निदान करने में सहायक हो सकता है।
प्रोटीन की अत्यंत छोटी इकाई को पेप्टाइड कहते हैं। जबकि, एल्ब्यूमिन रक्त प्लाज्मा में पाया जाने वाला एक प्रोटीन है, जो स्टेरॉयड, फैटी एसिड व थायरॉयड हार्मोनों को बांधे रखता है और उनके वाहक के रूप में कार्य करता है।
शोधकर्ताओं ने पुणे के एक मधुमेह चिकित्सालय के मरीजों के रक्त के नमूनों का जांच करके ग्लूकोसंबद्ध हीमोग्लोबिन, खाली पेट रक्त शर्करा के स्तर और लिपिड प्रोफाइल का परीक्षण किया है। इन परीक्षणों के परिणामों के आधार पर रक्त के नमूनों को मधुमेह पूर्व और सामान्य स्थिति में विभाजित किया गया है। इसके बाद इन नमूनों से प्रोटीन को पृथक किया गया है और फिर द्रव्यमान स्पेक्ट्रोमिट्री विश्लेषण के जरिये प्रोटीन की विशेषताओं का आकलन किया गया है।
वैज्ञानिकों ने पाया कि रक्त में सीरम एल्ब्यूमिन प्रोटीन के 14 पेप्टाइडों के साथ ग्लूकोज जुड़ सकता है। लेकिन, मधुमेह पूर्व की स्थिति में ग्लूकोज से जुड़े तीन विशिष्ट पेप्टाइडों (के36, के438 एवं के549) को प्रचुर मात्रा में पाया गया है। शोधकर्ताओं का मानना है कि इस मापदंड का उपयोग सामान्य व्यक्तियों में मधुमेह से पूर्व की स्थिति का आकलन करने के लिए किया जा सकता है। सीएसआईआर-राष्ट्रीय रसायन प्रयोगशाला (एनसीएल) के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इस पद्धति से संबंधित अध्ययन शोध पत्रिका जर्नल ऑफ प्रोटियोमिक्स में प्रकाशित किया गया है।
शोध टीम के प्रमुख डॉ महेश कुलकर्णी के अनुसार “मधुमेह पूर्व की स्थिति से पूरी तरह मधुमेह में परिवर्तित होने की वार्षिक दर 5 से 10 प्रतिशत है। अगर सही समय पर मधुमेह की पूर्व स्थिति की पहचान हो जाए तो जीवनशैली में बदलाव करके मधुमेह के खतरे से ग्रस्त आबादी को सामान्य जीवन जीने को मिल सकता है।”
पारंपरिक रूप से इन पेप्टाइडों का निर्धारण मास स्पेक्ट्रोमिट्री तकनीक से किया जाता है जो प्रायः सामान्य प्रयोगशालाओं में उपलब्ध नहीं होती है। इसीलिए, शोधकर्ता इन पेप्टाइडों के प्रतिकूल एक विशिष्ट मोनोक्लोनल एंटीबॉडी विकसित करने और उपयोगकर्ताओं के अनुकूल प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित करने पर भी विचार कर रहे हैं।
भारत में करीब सात करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित हैं और इसके मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में समय रहते इस बीमारी से प्रभावित होने की चेतावनी मिल जाए तो उपयुक्त जीवनशैली अपनाकर इसके दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है। शरीर में जब मधुमेह से ग्रस्त होने से पूर्व की स्थिति प्री-डायबिटिक स्थिति कहलाती है। प्री-डायबिटिक स्थिति के शुरुआती निदान से मधुमेह का खतरे और इसके कारण होने वाली जटिलताओं को आरंभिक दौर में ही रोका जा सकता है।
इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं में एनसीएल के डॉ महेश कुलकर्णी के अलावा राजेश्वरी राठौर, बाबासाहेब पी. सोनावने, एम.जी. जगदीश प्रसाद, बी. शांताकुमारी और चेल्लाराम मधुमेह संस्थान, पुणे के ए.जी. उन्नीकृष्णन और श्वेता कहार शामिल हैं। (इंडिया साइंस वायर)