स्वास्थ्य

बीमारियों से तड़प रहे भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ित, रोज पूछे जा रहे खामोश सत्ता से एक सवाल

रोज एक सवाल की श्रृंखला में गैस पीड़ित मुआवजा न मिलने, अस्पताल में सुविधाओं की कमी, रासायनिक प्रदूषण, विधवा पेंशन, बीमा सुरक्षा, निगरानी समिति सहित अब तक 30 सवाल उठा चुके हैं

Rakesh Kumar Malviya

प्रमिला शर्मा उस हत्यारे यूनियन कार्बाइड कारखाने के ठीक सामने बसी जेपी नगर बस्ती की निवासी हैं। पंद्रह सदस्यों वाले उनके परिवार में 12 सदस्यों को कई किस्म की बीमारियों ने घेर रखा है जिनकी वजह गैस है। महीने में दो चक्कर गैस अस्पताल के लगाने पड़ते हैं। प्रमिला बताती हैं कि पिछले कुछ महीनों से उन्हें अस्पताल से पर्याप्त दवाएं नहीं मिल पा रही हैं। उनके पर्चे में लिखी चार पांच तरह की दवाओं में से दो तीन नहीं मिल पाती है। इससे उन्हें यह बाजार से खरीद कर लानी पड़ती है। 23 नवम्बर को भी वे जब अस्पताल गईं तो उन्हें दो दवाएं नहीं मिल पाईं। महीने में तकरीबन तीन से चार सौ रुपए की दवाएं खरीदनी पड़ रही हैं, उनके पूरे परिवार को चार से पांच हजार रुपए का खर्च दवाओं पर हो रहा है, जबकि यह अस्पताल से मिलती तो बहुत राहत होती। प्रमिला कहती हैं कि हम जैसे गरीब परिवारों के लिए यह बहुत भारी पड़ रहा है।

विदया शुक्ला जब महज 12 साल की थीं तब उन्होंने गैस त्रासदी का सामना किया था। पिछले 12 सालों में इसका दंश इतना गहरा हो गया है कि उन्हें तकरीबन हर सप्ताह दो बार डायलिसिस करवाना पड़ता है। भोपाल गैस मेमोरियल अस्पताल में यह होता रहा है, लेकिन पिछले कुछ समय से यहां पर दवाओं का संकट चल रहा है। विदया शुक्ला की बेटी उर्वशी शुक्ला कहती हैं कि केवल हम ही नहीं अस्पताल में सस्ता इलाज करवाने की अच्छा रखने वाले सभी लोगों को यहां परेशान होना पड़ रहा है। मरीजों के अनुपात में डॉक्टरों की कमी है और उन्हें सभी दवाएं भी नहीं मिल पा रही हैं।

भोपाल गैस पीड़ितों के लिए संघर्ष करने वाले समूह भोपाल ग्रुप फॉर इंफोर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढ़ींगरा कहती हैं कि ​पिछले एक महीने से गैस पीड़ित मरीजों को हृदय रोग के लिए जरूरी स्टेटिंस, दर्द का जेल, यहाँ तक की सर्दी— खांसी की भी दवाइयां उपलब्ध नहीं है। यह हालत पिछले एक महीने से है। यूनिट इंचार्ज का कहना है दवाइयां आ ही नहीं रही हैं, तो हम कहां से दें। मरीजों को नाट अवेलेबल लिखकर पर्चा वापस कर दिया जा रहा है। उनका कहना है कि जैसे—जैसे गैस त्रासदी का वक्त बीत रहा है, गैस पीड़ितों के लिए सुविधाओं में कटौती की जा रही है, जबकि अब भी लोग उसकी पीड़ा से उबरे नहीं हैं।

भोपाल गैस पीड़ित संगठन गैस त्रासदी के 37 साल होने पर हर दिन एक सवाल पूछ रहे हैं। 24 नवम्बर तक को उनके सवाल करते हुए तीस दिन पूरे हो गए हैं। इससे पहले डाउन टू अर्थ उनके बीस सवालों को प्रकाशित कर चुका है।

अब तक पूछे गए सवाल...

21. भोपाल में यूनियन कार्बाइड कारखाने और उसके आस पास की प्रदूषित मिट्टी पानी की वैज्ञानिक जांच करने के संयुक्त राष्ट्र संघ के पर्यावरणीय कार्यक्रम के प्रस्ताव को केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री ने आज तक स्वीकार क्यों नहीं किया है ?

22.कार्बाइड  कारखाने के पीछे स्थित जहरीले तालाब में सिंघाड़े उगाने और मछली पालने के सालों से चल रहे जहरीले व्यवसाय के खिलाफ मध्य प्रदेश सरकार ने आज तक कोई कार्यवाही क्यों नहीं की है ?

23. वरिष्ठ चिकित्सा विशेषज्ञों की स्पष्ट सलाह के बावजूद मध्यप्रदेश सरकार ने गैस पीड़ितों के इलाज में योग को शामिल क्यों नहीं किया है ?

24. भोपाल गैस काण्ड की वजह से विधवा हुई 500 से ज्यादा महिलाओं को मुख्यमंत्री द्वारा घोषित पेंशन से वंचित क्यों रखा गया है ?

25. गैस पीड़ितों को सामाजिक सुरक्षा समर्थन के लिए आवंटित 45 रुपयों को पिछले 10 सालों से मध्य प्रदेश सरकार क्यों इस्तेमाल नहीं कर पाई है ?

26. प्रदेश सरकार के भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग में पिछले 3 सालों से क्यों ऐसे एक भी IAS अधिकारी नियुक्त नहीं हुए हैं जो साथ में दूसरा विभाग न संभालता हो ?

27. प्रदूषित भूजल की वजह से स्वास्थ्य को पहुंची क्षति के बारे में सरकारी शोध प्रकाशित होने के बावजूद आज तक प्रदूषित भूजल से पीड़ित इंसानो को गैस राहत अस्पतालों में मुफ्त इलाज की सुविधा से वंचित क्यों रखा जा रहा है ?

28. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र तथा प्रदेश सरकार द्वारा गैस काण्ड के बाद जन्मे 1 लाख बच्चों का चिकित्सीय बीमा करवाने के सम्बन्ध में 3 अक्टूबर 1991 को जारी अपने आदेश के उल्लंघन का आज तक संज्ञान क्यों नहीं लिया है ?

29. गैस काण्ड की वजह से 30 फीसदी पीड़ितों में अवसाद, घबराहट और अनिद्रा जैसी मानसिक बीमारियाँ होने के वैज्ञानिक सबूत होने के बावजूद गैस काण्ड की वजह से एक भी इन्सान को मानसिक स्वास्थ्य में क्षति के लिए मुआवजा क्यों नहीं मिला है ?

30. गैस पीड़ितों के चिकित्सीय पुनर्वास के लिए 2004 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित निगरानी समिति द्वारा आज तक की गई अधिंकांश अनुशंसाओं का मध्य प्रदेश सरकार द्वारा पालन क्यों नहीं किया गया है ?