स्वास्थ्य

दवा कंपनियों पर नकेल डालने की कवायद में जुटी अमेरिकी सरकार

फार्मास्युटिकल उद्योग पर प्रिस्क्रिप्शन दवाओं की भारी दरों को कम करने के लिए बाइडेन सरकार का दबाव महत्वपूर्ण है

Latha Jishnu

अगस्त के अंत में, अमेरिका में कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं। सरकारी एजेंसी, सेंटर फॉर मेडिकेयर एंड मेडिकेड सर्विसेज (सीएमएस) ने उन प्रिस्क्रिप्शन दवाओं की पहली सूची की घोषणा की, जिन्हें पिछले साल अमेरिकी कांग्रेस द्वारा पारित मुद्रास्फीति कटौती अधिनियम (आईआरए) के तहत मोलभाव के लिए चुना गया है।

इसका मतलब यह है कि जॉनसन एंड जॉनसन, नोवार्टिस, मर्क, ब्रिस्टल मायर स्क्विब और एली लिली जैसी फार्मास्युटिकल कंपनियां अब रक्त कैंसर, मधुमेह और हृदय में थक्के से लेकर क्रोहन रोग तक जैसी जीवन-घातक स्थितियों के इलाज के लिए उपयोग की जाने वाली दवाओं के लिए अपनी इच्छानुसार कीमतें निर्धारित नहीं कर पाएंगी। यह बिग फार्मा पर लगाम लगाने की दिशा में एक छोटा लेकिन बहुत महत्वपूर्ण कदम है। बिग फार्मा मरीजों और अमेरिकी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की कीमत पर दशकों से बे-रोक-टोक कारोबार में लगा है और भारी मुनाफा कमा रहा है।

यह कदम छोटा इसलिए है क्योंकि यह बातचीत केवल मेडिकेयर कार्यक्रम के अंतर्गत महंगी डॉक्टरी दवाओं को कवर करती है और निजी बीमा या नकद बिक्री पर लागू नहीं है। फिर भी, कांग्रेस के बजट कार्यालय द्वारा किए गए अनुमानों के अनुसार, बचत अमेरिकी प्रशासन और व्यक्तियों के लिए बहुत बड़ी होगी (10 वर्षों में 287 बिलियन डॉलर से अधिक)। डेमोक्रेट्स द्वारा समर्थित लेकिन हर रिपब्लिकन सदस्य द्वारा विरोध किए गए आईआरए कानून पर अगस्त 2022 में राष्ट्रपति जो बाइडेन ने हस्ताक्षर किए और उन्होंने इसे अपनी आर्थिक नीति की आधारशिला बना दिया है।

मोलभाव के लिए चुनी गई पहली 10 दवाओं की सूची को चिह्नित करने के लिए जारी एक बयान में व्हाइट हाउस ने इसे एक ऐतिहासिक कार्रवाई बताया। बहुत लंबे समय से अमेरिका ने किसी भी बड़ी अर्थव्यवस्था की तुलना में प्रिस्क्रिप्शन दवाओं के लिए अधिक भुगतान करते आए हैं लेकिन इसमें बदलाव आनेवाला है।

बाइडेन ने यह वादा किया, “जहां एक तरफ फार्मास्युटिकल उद्योग रिकॉर्ड मुनाफा कमाता है, वहीं लाखों अमेरिकियों को जीवनरक्षक दवाओं या भोजन, किराए और अन्य बुनियादी आवश्यकताओं के बीच चयन करने के लिए मजबूर किया जाता है। ये दिन खत्म हो रहे हैं।” उन्हें यह कहते हुए सुनना अच्छा लगा कि वह पीछे नहीं हटेंगे, यह अलग बात है कि बिग फार्मा ने अब तक आईआरए के खिलाफ आठ मुकदमे दायर किए हैं और इसकी प्रगति को रोकने के लिए पिछले साल लगभग 400 मिलियन डॉलर खर्च किए हैं।

उम्मीद है कि आईआरए महत्वपूर्ण बदलाव करेगी क्योंकि इसका लक्ष्य मुद्रास्फीति से दवाओं की कीमतों में होने वाली वृद्धि को रोकना है। यह कानून के मुख्य घटकों में से एक है। दूसरा पहलू मूल्य वार्ता के माध्यम से मेडिकेयर की दवा-मूल्य निर्धारण नीति में सुधार करना है। 1963 में जब राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने सरकारी विज्ञान पर पेटेंट दावों को प्रतिबंधित करने का आदेश जारी किया था, तब से किसी अमेरिकी सरकार ने बिग फार्मा को इतनी गंभीरता से चुनौती नहीं दी है।

कैनेडी का आदेश दूरदर्शी था। उन्होंने कहा कि संघीय अनुसंधान, विशेष रूप से “उन क्षेत्रों में जो सीधे तौर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य से संबंधित हैं”, सभी के साथ साझा किया जाना चाहिए। अपनी हत्या से ठीक एक महीने पहले जारी किए गए अपने आदेश में कैनेडी ने लिखा था कि देश का हित “हमारे अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों और अमेरिकी विदेश नीति के उद्देश्यों के अनुरूप एक हद तक सरकार द्वारा वित्त पोषित अनुसंधान और विकास के लाभों को विदेशी देशों के साथ साझा करने में है।” यह बाद के अमेरिकी प्रशासन के सिद्धांत से बिल्कुल अलग है, जिसने दवाओं और स्वास्थ्य देखभाल पर कब्जे के लिए बौद्धिक संपदा कानूनों को हथियार बनाया है और इसका इस्तेमाल विकासशील देशों को डराने के लिए किया है।

लेकिन 1960 के दशक और कैनेडी युग के दृष्टिकोण के बाद से अमेरिका में बहुत कुछ बदल गया है। एलिजाबेथ वॉरेन और प्रमिला जयपाल जैसी कुछ प्रतिबद्ध और दृढ़ योद्धाओं को छोड़कर, कानून निर्माता अधिकांशतः शक्तिशाली दवा उद्योग के कब्जे में हैं और यह कैपिटल हिल पर सबसे बड़ा लॉबिस्ट भी है।

यह लॉबी अपने हितों को बढ़ावा देने के लिए सैकड़ों मिलियन डॉलर खर्च करती है और इसने हिलेरी क्लिंटन की असफल राष्ट्रपति पद की दावेदारी सहित कई लोगों के चुनाव अभियानों को वित्त पोषित किया है। जैसा कि बाइडेन ने नोट में लिखा है कि लॉबी ने आईआरए के खिलाफ अभियान चलाने के लिए 400 मिलियन डॉलर खर्च किए। अमेरिका में वरिष्ठ नागरिकों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक संघ की मानें तो आईआरए “फार्मा उद्योग के उस व्यापार पर रोक लगाएगा जिसे उन्होंने आम लोगों की जान की कीमत पर खड़ा किया है।”

यह अतिशयोक्ति नहीं है, क्योंकि जून 2022 से मई 2023 तक मेडिकेयर खर्च में दवाओं का 45 बिलियन डॉलर से अधिक का योगदान था। सरकार के अनुसार, पिछले साल वरिष्ठ नागरिकों को अपनी जेब से 3.4 बिलियन डॉलर की लागत भी चुकानी पड़ी।

ये दवाएं अपने निर्माताओं के लिए सोने की खान हैं क्योंकि बाजार में इनका कोई विकल्प भी नहीं मिलता। उदाहरण के लिए, रक्त कैंसर से लड़ने के लिए एबीवी और जे एंड जे द्वारा संयुक्त रूप से विपणन की जाने वाली दवा इम्ब्रूविका की कीमत प्रति गोली 484 डॉलर है और यह एक ऐसी दवा है जिसे रोजाना लेना होता है।

क्रोन रोग के लिए उपयोग किया जाने वाला जे एंड जे का स्टेलारा खून या इंजेक्शन के माध्यम से दिया जाता है। इस दवा की 0.5 मिलीलीटर की कीमत अविश्वसनीय 13,971 डॉलर है। कोई जेनरिक विकल्प दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है। आईआरए के जवाब में, फार्मा कंपनियां और उद्योग संघ पूरी ताकत से सामने आए हैं।

मूल्य वार्ता को चुनौती देने वाले मुकदमों में, उन्होंने ऐसी नीति के लिए कई संविधान-आधारित बाधाओं का हवाला दिया है। उन्होंने कानून के अलग-अलग तत्वों को निशाना बनाते हुए यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स सहित विभिन्न कंपनियों और व्यापार निकायों पर भी सोचा समझा हमला किया है। जहां मर्क और ब्रिस्टल मायर्स स्क्विब दावा कर रहे हैं कि आईआरए उनके पहले और पांचवें संशोधन अधिकारों पर हमला है, वहीं उद्योग के पैरोंकारों और अन्य वादियों ने अपने मुकदमे में आठवें संशोधन का हवाला दिया है। ये सभी व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी हैं।

आश्चर्य की बात है या कहें तो आश्चर्य की बात नहीं है कि, यूएस चैंबर ऑफ कॉमर्स ने भी एक चुनौती दायर की है, जिसमें तर्क दिया गया है कि मूल्य निर्धारण प्रावधान “हमारे संविधान में निहित मुक्त उद्यम के लिए मौलिक सुरक्षा का उल्लंघन करते हैं।” चैंबर ने इस कार्यक्रम को उसके रास्ते में ही रोकने का बेशर्मी से प्रयास करते हुए प्रारंभिक निषेधाज्ञा की भी मांग की।

कठघरे में लाए जाने पर अपने गुस्से को दर्शाने के लिए मुकदमों में अत्यधिक कड़ी भाषा का इस्तेमाल किया गया है। चुनौती दायर करने वाली पहली कंपनी मर्क ने दवा वार्ता कार्यक्रम को एक दिखावा और “राजनीतिक धोखा” कहा है जो “जबरन वसूली के बराबर” है। स्पष्ट रूप से नाराज बहुराष्ट्रीय कंपनी का कहना है, “पांचवे संशोधन के तहत सरकार को सार्वजनिक उपयोग के लिए संपत्ति लेने पर उचित मुआवजा देने की आवश्यकता है। फिर भी इस योजना का एकमात्र उद्देश्य मेडिकेयर के लिए उचित बाजार मूल्य का भुगतान किए बिना डॉक्टरी दवाओं को प्राप्त करना है।”

हालांकि व्हाइट हाउस का कहना है कि बिग फार्मा नियमित रूप से अमेरिकियों को समान दवाओं के लिए अन्य देशों के ग्राहकों की तुलना में कई गुना अधिक भुगतान करने के लिए मजबूर करता है। उसे विश्वास है कि संविधान में ऐसा कुछ भी नहीं है जो मेडिकेयर को दवा की कम कीमतों पर बातचीत करने से रोकता हो। अमेरिका और अन्य जगहों पर लाखों लोग निष्पक्ष अदालत के फैसले पर अपनी उम्मीदें लगाए बैठे हैं। दुनिया में कहीं भी बिग फार्मा के प्रति सहानुभूति तो नहीं ही है।