दुनिया में करीब 14 फीसदी वयस्क और 12 फीसदी बच्चे अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स की लत का शिकार बन चुके हैं। लोगों में स्वास्थ्य के नजरिए से हानिकारक इन खाद्य पदार्थों को लेकर जो लगाव है, वो करीब-करीब शराब और तम्बाकू जितना ही बढ़ चुका है; फोटो: आईस्टॉक 
स्वास्थ्य

सोचने, समझने, सीखने की क्षमता में गिरावट के साथ स्ट्रोक के खतरे को बढ़ा रहे हैं आइसक्रीम, चिप्स, बर्गर

हमारा खानपान और जीवनशैली काफी हद तक हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालती है। यही वजह है कि यदि हम नियमित पोषण से भरपूर आहार लेते हैं तो इससे न केवल हमारा तन बल्कि मन भी स्वस्थ रहता है

Lalit Maurya

यदि आप या आपके बच्चे फ्राइज, चिप्स, बर्गर, कैंडी, सॉफ्ट ड्रिंक या आइसक्रीम जैसे अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स यानी बेहद ज्यादा प्रोसेस किए जाने वाले खाद्य पदार्थों के दीवाने हैं तो एक बार फिर सोच लें, क्योंकि इन्हें खाने की दीवानगी आपको शारीरिक और दिमागी तौर पर बीमार बना सकती है।

कहते हैं हमारा खानपान और जीवनशैली काफी हद तक हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालती है। यदि हम नियमित पोषण से भरपूर आहार लेते हैं तो इससे न केवल हमारा तन बल्कि मन भी स्वस्थ रहता है। वहीं दूसरी तरफ बेहद तला, या प्रोसेस किया जंक फ़ूड हमारी सेहत को बिगाड़ सकता है।

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स के स्वास्थ्य पर पड़ते प्रभावों को समझने के लिए किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि लम्बे समय तक इन खाद्य पदार्थों का सेवन सोचने-समझने, पढ़ने, सीखने और याद रखने की क्षमता में गिरावट के साथ स्ट्रोक के खतरे को बढ़ा रहा है। मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल के शोधकर्ताओं द्वारा किए इस अध्ययन के नतीजे जर्नल न्यूरोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं।

इतना ही नहीं रिसर्च में यह भी सामने आया है कि कम या बिना प्रोसेस किए खाद्य पदार्थों का सेवन करने से मस्तिष्क को स्वस्थ रखने में मदद मिलती है और इससे दिमाग से जुड़ी गंभीर समस्याओं में कमी आती है। इस बारे में मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर डब्ल्यू टेलर किम्बर्ली ने प्रेस से साझा की गई जानकरी में कहा है, “हर किसी को न केवल इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि वो क्या खाते हैं, साथ ही इस पर भी विचार करना चाहिए कि वो कैसे बनता है।“

उनके मुताबिक बहुत ज्यादा प्रोसेस किए खाद्य पदार्थों का सेवन करने से मस्तिष्क को नुकसान होता है। साथ ही इसकी वजह से स्ट्रोक या सोचने-समझने में परेशानी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। लेकिन अच्छी खबर यह है कि इन खाद्य पदार्थों का सीमित सेवन, दिमाग को स्वस्थ रखने में मददगार साबित हो सकता है।

क्या होते हैं अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स

गौरतलब है कि जब प्राकृतिक तरीके से प्राप्त खाद्य उत्पादों को कई लेवल पर प्रोसेस किया जाता है, जिससे वो कई दिनों तक खाने योग्य बने रहे या फिर जब डीप फ्राई करके उनकी कुदरती संरचना को बदल दिया जाता है, तो ऐसे खाद्य उत्पादों को अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स कहते हैं।

इन अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों में आमतौर पर अतिरिक्त चीनी, वसा या नमक होता है। दूसरी तरफ इनमें प्रोटीन और फाइबर कम होता है। कई बार इन खाद्य उत्पादों में स्वाद, बनावट और शेल्फ लाइफ को बेहतर बनाने के लिए एडिटिव्स और प्रिजर्वेटिव्स का भी इस्तेमाल किया जाता है। इनमें सॉफ्ट ड्रिंक्स, चिप्स, फ्राइज, टॉफी, चॉकलेट, लॉली पॉप, आइसक्रीम, शर्करा युक्त अनाज, प्रसंस्कृत मांस, जंक फ़ूड, डिब्बाबंद खाद्य उत्पाद और फास्ट फूड शामिल हैं।

दूसरी तरफ कम या बिना प्रोसेस किए खाद्य पदार्थ अपने प्राकृतिक रूप में होते हैं जो पोषक तत्वों को बनाए रखते हैं। उनमें अतिरिक्त चीनी, वसा या दूसरे कृत्रिम तत्व नहीं होते हैं। इनमें फल, ताजी सब्जियां जैसे उत्पाद शामिल हैं।

यह अध्ययन अमेरिका में 45 वर्ष या उससे अधिक आयु के 30,239 लोगों पर किया गया था। इन लोगों पर करीब ग्यारह वर्षों तक नजर रखी गई। अध्ययन में शामिल इन लोगों से इस बारे में सवाल किए गए कि वे आमतौर पर क्या खाते हैं? इसके आधार पर शोधकर्ताओं ने इस बात की जांच की कि उनका कितना भोजन बेहद ज्यादा प्रोसेस किया हुआ था।

अच्छी सेहत की कुंजी है स्वस्थ आहार

अध्ययन की शुरूआत में इन सभी लोगों में स्ट्रोक या सोचने-समझने या सीखने की क्षमता में गिरावट का कोई इतिहास नहीं था। हालांकि अध्ययन के अंत तक 768 लोगों में संज्ञानात्मक यानी सोचने समझने की क्षमता में गिरावट को अनुभव किया जबकि 1,108 में स्ट्रोक की समस्या देखी गई।

रिसर्च के नतीजे दर्शाते हैं कि बहुत ज्यादा प्रोसेस किए खाद्य पदार्थों के सेवन में दस फीसदी के इजाफे से याददाश्त से जुड़ी समस्याओं का जोखिम 16 फीसदी तक बढ़ गया। वहीं दूसरी तरफ बिना प्रोसेस किया भोजन खाने से इसका जोखिम 12 फीसदी तक घट गया था। यदि स्ट्रोक से जुड़े आंकड़ों को देखें तो बेहद प्रोसेस किए खाद्य उत्पादों का सेवन करने से स्ट्रोक का खतरा आठ फीसदी तक बढ़ गया।

वहीं बेहद कम या बिना प्रोसेस किए खाद्य पदार्थों का सेवन करने से स्ट्रोक का जोखिम नौ फीसदी तक घट गया था। इसके साथ ही स्वास्थ्य के नजरिए से हानिकारक इन खाद्य पदार्थों का सेवन करने से अश्वेत लोगों में स्ट्रोक का जोखिम 15 फीसदी तक बढ़ गया। शोधकर्ताओं के मुताबिक ऐसा शायद इसलिए था क्योंकि अश्वेत लोगों में उच्च रक्तचाप की आशंका ज्यादा होती है।

डॉक्टर किम्बर्ली के मुताबिक अध्ययन के नतीजे स्पष्ट तौर पर दर्शाते हैं कि खाद्य पदार्थों को किस स्तर तक प्रोसेस किया जाता है वो हमारे दिमाग की सेहत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसे में कम या बिना प्रोसेस किया आहार सेहत को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उनके अनुसार छोटे-छोटे बदलाव भी मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के साथ स्ट्रोक के जोखिम और याददाश्त से जुड़ी समस्याओं को कम करने में बड़ा अंतर ला सकते हैं।

शोधकर्ता अब यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि यह अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फ़ूड हमारे मस्तिष्क को कैसे प्रभावित करते हैं। वे यह समझना चाहते हैं कि हमारा शरीर इन खाद्य पदार्थों को कैसे प्रोसेस करता है। इसमें हमारी आंत में मौजूद बैक्टीरिया की भूमिका भी शामिल है।

शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि हमारे रक्त में ऐसे मार्कर भी मिल सकते हैं जो यह दर्शाते हैं कि हम कितना अल्ट्रा-प्रोसेस्ड भोजन खाते हैं। इससे लोगों को अपने खानपान में बदलाव करके अपने दिमाग को स्वस्थ बनाने की योजनाएं बनाने में मदद मिल सकती है।

खतरों को लेकर सीएसई लम्बे समय से करता रहा है आगाह

देखा जाए तो देश दुनिया के वैज्ञानिक लम्बे समय से जंक या अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड के बढ़ते खतरों को लेकर आगाह करते रहे हैं। सीएसई भी पिछले कई वर्षों से इसके खतरों को लेकर लोगों को जागरूक करता रहा है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने एक व्यापक अध्ययन भी किया था, जिसमें जंक फ़ूड से जुड़े खतरों के बारे में चेताया था।

इस अध्ययन के मुताबिक भारत में बेचे जा रहे अधिकांश पैकेज्ड और फास्ट फूड आइटम में खतरनाक रूप से नमक और वसा की उच्च मात्रा मौजूद है, जो भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) द्वारा निर्धारित तय सीमा से बहुत ज्यादा है।

इस अध्ययन का कहना है कि जंक फूड और पैकेटबंद भोजन खाकर हम जाने-अनजाने खुद को बीमारियों के भंवरजाल में धकेल रहे हैं। नतीजे बताते हैं कि जंक फूड में नमक, वसा, ट्रांस फैट की अत्यधिक मात्रा है जो मोटापा, उच्च रक्तचाप, मधुमेह और हृदय की बीमारियों को बढ़ा रहा है।

ब्रिटिश जर्नल ऑफ ओप्थोमोलॉजी में छपे एक अन्य शोध से पता चला है कि जंक फूड बुजुर्गों में मैक्यूलर डिजनरेशन नामक विकार को जन्म दे रहा है, जोकि उनकी आंखों के लिए गंभीर खतरा है। जर्नल ओबेसिटी में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि जंक फूड का सेवन हमारी गहरी नींद की गुणवत्ता को भी प्रभावित कर सकता है। देखा जाए तो यह अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड अनगिनत बीमारियों की जड़ हैं, जिनमें बढ़ता वजन, ह्रदय रोग से लेकर कैंसर तक शामिल हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी आंकड़ों भी दर्शाते हैं कि हर साल जरूरत से ज्यादा नमक (सोडियम) का सेवन करने से दुनिया में 30 लाख से ज्यादा लोगों की जान जा रही है। इसके साथ ही इसकी वजह से रक्तचाप और हृदय सम्बन्धी रोगों का खतरा भी बढ़ रहा है। इसे सीमित करने के लिए डब्ल्यूएचओ ने नई गाइडलाइन भी जारी की है।

हाल ही में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टरों ने जंक फूड पैकेटों के लेबल पर शुगर, साल्ट और फैट की वैज्ञानिक सीमा से सम्बंधित जानकारी को दर्शाए जाने की मांग की थी। यूनिसेफ ने भी अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि भारत में जंक फ़ूड बच्चों के स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बनता जा रहा है।

विशेषज्ञों का भी कहना है कि दुनिया में करीब 14 फीसदी वयस्क और 12 फीसदी बच्चे अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स की लत का शिकार बन चुके हैं। लोगों में स्वास्थ्य के नजरिए से हानिकारक इन खाद्य पदार्थों को लेकर जो लगाव है, वो करीब-करीब शराब और तम्बाकू जितना ही बढ़ चुका है। बेहद ज्यादा कार्बोहाइड्रेट और वसा वाले यह अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फ़ूड किसी नशीले पदार्थ से कम नहीं, जो धीरे-धीरे लोगों को अपना आदी बना रहे हैं।

ऐसे में इससे पहले हमारी आने वाली पीढ़ियां इन हानिकारक खाद्य पदार्थों की लत का शिकार हो अपनी सेहत बिगाड़ लें। हमें एक बेहतर भविष्य के निर्माण के लिए इन खाद्य पदार्थों से दूरी बनाने की जरूरत है।