स्वास्थ्य

एक वयस्क की तुलना में 50 फीसदी ज्यादा तेजी से कैलोरी बर्न करता है एक साल का बच्चा

वहीं 30 से 40 वर्ष की तुलना में 90 की उम्र के बाद, किसी आम इंसान की कैलोरी सम्बन्धी जरूरतों में 26 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई

Lalit Maurya

एक बारह महीने का बच्चा अपने शरीर के अनुरूप एक व्यस्क वयस्क की तुलना में 50 फीसदी ज्यादा तेजी से कैलोरी बर्न करता है। हम में से अधिकांश लोगों को अपने बचपन का वो समय याद होगा जब जो अच्छा लगता था उसे खाने से पहले सोचना नहीं पड़ता था, न वजन बढ़ने की चिंता थी न ही रक्तचाप और मधुमेह का खतरा। जानते हैं ऐसा क्यों होता था क्योंकि उस भोजन से जितनी कैलोरी ऊर्जा हम लेते थे हमारा शरीर उसे बर्न कर सकता था, पर समय के साथ हमारे शरीर के कैलोरी को बर्न करने की क्षमता में गिरावट आती जाती है।

इस बारे में हाल ही में किए एक नए शोध से पता चला है कि जीवन के शुरुवाती वर्षों में हमारे शरीर की कैलोरी बर्न करने की क्षमता सबसे ज्यादा होती है, जो समय के साथ गिरती जाती है।

इस बारे में ड्यूक यूनिवर्सिटी में इवोल्यूशनरी एंथ्रोपोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर और इस अध्ययन से जुड़े हरमन पोंटज़र ने बताया कि जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं हमारे शरीर में बहुत सारे परिवर्तन सामने आते हैं। हालांकि हैरानी की बात है कि हमारे मेटाबॉलिज्म और उसके चरणों का समय उन बदलावों से मेल नहीं खाता है।

इसे समझने के लिए पोंटज़र और अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के एक दल ने दुनिया भर के 29 देशों के करीब 6,600 लोगों पर अध्ययन किया है, जिसमें एक सप्ताह से लेकर 95 वर्ष की आयु के वृद्ध भी शामिल थे। इस शोध में शोधकर्ताओं ने इन लोगों द्वारा बर्न की गई औसत कैलोरी का विश्लेषण किया है। 

इससे पहले बड़े पैमाने पर किए अधिकांश अध्ययनों से पता चला है कि हर दिन हमारा शरीर सांस लेने, भोजन पचाने, रक्त पंप करने जैसे बुनियादी कार्यों जो किसी इंसान के जीवित रहने के लिए जरुरी हैं उनके लिए हर दिन अपनी करीब 50 से 70 फीसदी कैलोरी बर्न करता है। यह उस ऊर्जा को ध्यान में नहीं रखता है जो हम बाकी सब कामों जैसे जिम में पसीना बहाने, टहलने, बर्तन धोने आदि के लिए खर्च करते हैं।

इस शोध के जो नतीजे सामने आए हैं वो हैरान कर देने वाले हैं, अधिकांश लोगों का मानना है कि हम अपने जीवनकाल में जो ऊर्जा व्यय करते हैं वो  किशोरावस्था और 20 की उम्र में सबसे ज्यादा होती है, जब कैलोरी बर्न करने की क्षमता अपने चरम पर पहुंच जाती है। लेकिन ऐसा नहीं है शोधकर्ताओं के अनुसार यदि वजन के लिहाज से देखें तो शिशुओं में मेटाबॉलिस्म की दर सबसे ज्यादा होती है। 

उम्र के किस पड़ाव में कितना घटता बढ़ता है मेटाबॉलिस्म

शिशुओं में जीवन के शुरुवाती 12 महीनों में ऊर्जा की जरुरत काफी बढ़ जाती है। यदि शरीर के आकार के आधार पर देखें तो एक बारह महीने का बच्चा वयस्क की तुलना में 50 फीसदी ज्यादा तेजी से कैलोरी बर्न करता है। पोंटज़र ने बताया कि ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं है, कि अपने शुरुवाती वर्ष में शिशु अपने जन्म के समय के वजन को तीन गुना करने में व्यस्त होते हैं। बेशक वे बढ़ रहे होते हैं, लेकिन एक बार जब आप उस पर नियंत्रण कर लेते हैं, तब भी उनका ऊर्जा व्यय उनके शरीर के आकार और संरचना की अपेक्षा कहीं अधिक तेजी से बढ़ता है।

इस बारे में जानकारी देते हुए पोंटज़र ने बताया कि एक बच्चे की कोशिकाओं में उन्हें और अधिक सक्रिय बनाने के लिए कुछ चल रहा होता है, पर हमें अभी तक यह नहीं पता है कि वो प्रक्रियाएं क्या हैं। शोध से पता चला है कि शैशवावस्था में इस प्रारंभिक वृद्धि के बाद मेटाबॉलिस्म की दर हर साल लगभग 3 फीसदी की रफ्तार से धीमी होती जाती है, जब तक कि हम 20 साल के नहीं हो जाते, तब यह एक नए सामान्य स्तर पर पहुंच जाती है।

पोंटजर के अनुसार हालांकि देखा जाए तो किशोरावस्था विकास का समय होता है इसके बावजूद शरीर के आकार को ध्यान में रखते हुए दैनिक कैलोरी की जरूरतों में कोई वृद्धि नहीं देखी गई। "हमने वास्तव में सोचा था कि यौवन अलग होगा और ऐसा नहीं है।"

वहीं यदि 30 के पड़ाव की बात करें तो उस समय भी ऊर्जा का व्यय काफी स्थिर था, शोधकर्ताओं ने पाया कि कैलोरी बर्न करने के मामले में जीवन के 20, 30, 40 और 50-सबसे स्थिर वर्ष थे। यहां तक कि गर्भावस्था के दौरान भी, एक महिला की कैलोरी सम्बन्धी जरूरतें अपेक्षा से कम या ज्यादा नहीं थीं। 

आंकड़ों के अनुसार 60 की उम्र के बाद भी मेटाबॉलिस्म में कोई खास गिरावट दर्ज नहीं की गई थी, इसकी रफ्तार बहुत मंद थी, वो केवल 0.7 फीसदी दर्ज की गई थी। पर 90 की उम्र के बाद 30 से 40 की उम्र की तुलना में किसी आम इंसान में कैलोरी की जरुरत में 26 फीसदी की गिरावट देखी गई थी। 

शोधकर्ताओं का कहना है कि जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं, मांसपेशियों का घटना इसकी एक वजह हो सकता है, क्योंकि मांसपेशियां, वसा की तुलना में कहीं अधिक कैलोरी बर्न करती हैं। लेकिन यह पूरा सच नहीं है, इसके लिए कहीं हद तक कोशिकाओं का धीमा पड़ना भी जिम्मेवार होता है।

हालांकि देखा जाए तो लम्बे समय के दौरान ऊर्जा के व्यय में जो बदलाव आया है उसका विश्लेषण इतना आसान नहीं है, क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ-साथ कई अन्य बदलाव भी होते हैं। हालांकि इतना तो स्पष्ट है कि टिश्यूस का मेटाबॉलिस्म, जो काम कोशिकाएं करती हैं, वो समय के साथ जीवनकाल में बदलता रहता है। ड्यूक यूनिवर्सिटी द्वारा किया यह शोध जर्नल साइंस में प्रकाशित हुआ है।