स्वास्थ्य

पीएमजेएवाई का सच: कोविड-19 की दूसरी लहर में निजी बीमा कंपनियों ने की मनमानी

महामारी के दौरान बीमा दावों की संख्या बढ़ती रही, लेकिन निजी बीमा कंपनियों ने इन दावों के निपटारे में या तो देरी की या फिर उन्हें खारिज ही कर दिया

Shagun, G Ram Mohan, Ranju Dodum, Imran Khan, K A Shaji, Rakesh Kumar Malviya, Gajanan Khergamker, Bhagirath

स्वास्थ्य के क्षेत्र में बीमा केंद्रित दृष्टिकोण महामारी के दौरान कितना प्रभावी रहा?  कोरोना काल में बीमाधारकों के अनुभव बताते हैं कि उन्हें वादों के अनुरूप बीमा का लाभ नहीं मिला। ऐसे में क्या सरकार स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे पर फिर से अपना ध्यान केंद्रित करेगी? हम एक लंबी सीरीज के जरिए आपको बीमा के उन अनुभवों और सच्चाईयों से वाकिफ कराएंगे जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत जब थी, तब वह लोगों को नहीं मिला...। इससे पहले की तीन कडियों के लिंक नीचे दिए गए हैं। आज पढ़ें, चौथी कड़ी ...

एक तरफ आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जल आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) जहां गरीबों को कोविड-19 के आर्थिक बोझ से कुछ खास राहत नहीं दिला सकी, तो वहीं दूसरी तरफ उन लोगों का अनुभव भी संतोषजनक नहीं रहा, जिन्होंने निजी स्वास्थ्य बीमा कंपनियों को भुगतान किया था। जैसे-जैसे कोविड-19 के मामले बढ़ते गए, वैसे ही कैशलेस इलाज कराने और क्लेम की राशि पाने में परेशानियां भी बढ़ती गईं। 

केरल के तिरुवनंतपुरम जिले में स्थित वेली गांव में रहने वाले केजी फिलिप और उनकी पत्नी एलिजाबेथ को कोविड-19 के संक्रमण से उबरे हुए करीब 10 महीने बीत चुके हैं। इन दोनों का इलाज राज्य सरकार की तरफ से अधिकृत तिरुवनंतपुरम के बाहरी इलाके में स्थित दो अलग-अलग महामारी देखभाल केंद्रों पर चला। इलाज के दौरान परिवार को भारी आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा। उनकी एकमात्र उम्मीद एक निजी बीमा कंपनी से ली गई कोरोना रक्षक पॉलिसी थी। उन्होंने यह बीमा तभी ले लिया था, जब महामारी ने देश को जकड़ना शुरू किया था।

भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) ने साल 2020 में खासतौर पर कोरोना संक्रमण को ध्यान में रखते हुए कोरोना रक्षक और कोरोना कवच के नाम से दो शॉर्ट टर्म पॉलिसी तैयार की थीं। कोरोना कवच क्षतिपूर्ति आधारित योजना है, जो कोविड-19 के कैशलेस इलाज या फिर इलाज में खर्च की गई रकम की भरपाई का वादा करती है। वहीं, कोरोना रक्षक एक लाभ आधारित योजना है, जिसमें हर कोविड-19 मरीज को मुआवजे के तौर पर एक निश्वित राशि देने का वादा किया जाता है।

फिलिप ने प्रीमियम के तौर पर कुल 19,500 रुपए का भुगतान किया था, जिसके लिए बीमा प्रदाता ने बिल जमा करने पर परिवार के हर प्रभावित सदस्य को ढाई लाख रुपए अदा करने का वादा किया था। लेकिन, अब कंपनी उन लोगों को यह राशि देने से इनकार कर रही है, जिनका इलाज सरकार की तरफ से निर्धारित कोविड केयर सेंटरों में किया गया है। फिलिप के पक्ष में जिला कलेक्टर और बीमा लोकपाल के हस्तक्षेप करने के बाद भी उन्हें बीमा राशि हासिल करने के लिए इंतजार करना पड़ रहा है।

इरडा की ओर से स्थापित जनरल इंश्योरेंस काउंसिल के अनुसार, मार्च 2020 से सितंबर 2021 के बीच देशभर में 26 लाख निजी बीमा दावे किए गए। इनमें से 22 लाख दावों का निपटारा किया गया और 2 लाख दावे खारिज कर दिए गए। लेकिन, तमाम लाभार्थियों ने डाउन टू अर्थ को बताया कि उन्हें क्लेम से कम राशि का भुगतान किया गया। 

इसी तरह, पिछले साल सितंबर में जब कोरोना की पहली लहर चरम पर थी, तब सूरज दास की मां और बहन भी संक्रमण की चपेट में आ गईं। उन्हें ओडिशा के भुवनेश्वर में स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती किया गया। कुछ ही समय पहले कोविड-19 से अपने पिता को खो चुके सूरज बताते हैं, “मेरे बीमा में 5 लाख रुपए का कवरेज था। अस्पताल का बिल 5.30 लाख रुपए से अधिक आने के बाद भी बीमा कंपनी ने सिर्फ 1.20 लाख रुपए की राशि ही अदा की। कंपनी ने 'कंज्यूमेबल्स' पर हुए खर्च में कटौती कर दी, जबकि रोजाना इस पर 10 से 25 हजार रुपए तक खर्च हुए थे।”  

पटना में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता गालिब कलीम ने भी दूसरी लहर के दौरान एक निजी स्वास्थ्य बीमा कंपनी के साथ अपने कड़वे अनुभव साझा किए। अप्रैल 2021 के तीसरे हफ्ते में उनकी हालत बिगड़ने पर उन्हें पटना के एक निजी अस्पताल में भर्ती किया गया। 7 दिन तक आईसीयू में उनके इलाज पर 2 लाख रुपए से अधिक खर्च हुए। वह बताते हैं, “मेरे पास हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी थी, इसलिए मुझे अस्पताल के खर्चों की कोई चिंता नहीं थी। लेकिन, जब इंश्योरेंस कंपनी के अधिकारियों ने मुझे बताया कि कोविड एक महामारी है, इसलिए इसका इलाज मेरी पॉलिसी में कवर नहीं होगा। यह सुनकर मुझे झटका लगा। जिस अस्पताल में मेरा इलाज चला, उसने भी यही कारण बताते हुए इंश्योरेंस क्लेम में मेरी कोई मदद नहीं की।” आखिर में कई शिकायतों के बाद बीमा कंपनी ने कलीम को महज 22 हजार रुपए अदा किए। 

बीमा कंपनियों ने अस्पताल में भर्ती होने पर किए गए दावों की एक बड़ी राशि को इस आधार पर खारिज कर दिया कि मरीजों को होम आइसोलेशन में ही रखा जाना चाहिए था और उन्हें बिना जरूरत के अस्पतालों में भर्ती कर दिया गया।

इंश्योरेंस अवेयरनेस के लिए बेशक के नाम से एक कम्युनिटी प्लेटफॉर्म की स्थापना करने वाले महावीर चोपड़ा कहते हैं, “स्वास्थ्य बीमा एक ऐसा उत्पाद है, जिसे कोरोना काल से पहले डिजाइन किया गया था और इसमें महामारी के दौरान आने वाली अप्रत्याशित लागत की गणना नहीं की गई है। उदाहरण के तौर पर कोविड की वजह से अस्पताल में भर्ती होने पर आइसोलेशन और स्टरलाइजेशन की जरूरत पड़ती है, जो खर्चीला है। कोविड के बाद रूम चार्ज भी काफी बढ़ जाते हैं।” 

नधामुनि आंध्र प्रदेश में प्राइवेट हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी स्टार हेल्थ इंश्योरेंस में बतौर अधिकारी कार्यरत हैं। क्लेम सेटलमेंट में कमी के कारणों को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा, “पहली लहर के दौरान बीमा कंपनियों ने बड़ी संख्या में दावा राशि का भुगतान किया। लेकिन, दूसरी लहर के दौरान अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान और विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से निर्धारित मानदंड के मुताबिक कोविड मामलों को हल्के, मध्यम और गंभीर के तौर पर वर्गीकृत कर दिया गया। फिर इसी आधार पर दावों का निपटारा भी किया गया।” 

हालांकि, विश्लेषकों का मानना है कि कोविड-19 के इलाज के लिए बनाए गए प्रोटोकॉल या तय मानकों के मुताबिक इलाज में कमियां इन बीमा दावों के खराब निपटान के लिए जिम्मेदार हैं। मुंबई निवासी एक्टिविस्ट और स्वतंत्र शोधार्थी रवि दुग्गल ने बतौर सह-लेखक इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली के 31 जुलाई, 2021 के संस्करण में एक लेख लिखा था। इसके मुताबिक भले ही बीमा व्यवसाय को इरडा नियंत्रित करता है, लेकिन प्राइवेट हेल्थकेयर मार्केट अनियंत्रित है और यहां बड़े पैमाने पर अनैतिक क्रियाकलाप हो रहे हैं। 

स्पष्टता और पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से जीआईसी ने जून 2020 में अपनी सदस्य इंश्योरेंस कंपनियों में दायर किए जा रहे कोविड दावों के संबंध में रेट लिस्ट जारी की। इसमें पीपीई किट और बायो मेडिकल वेस्ट के चार्ज भी शामिल किए गए। इस अनुसूची में जीआईसी ने सलाह दी कि बीमा कंपनियां सरकारी दरों के मुताबिक दावों का भुगतान करें और जहां पर यह लागू न हो सके, उसके लिए चार्ट में दिए गए रेट का पालन करें। 

प्राइवेट इंश्योरेंस कंपनियों के अधिकारी कहते हैं कि महामारी के हालात में इस तरह के मानकों का पालन करना मुश्किल था। बजाज जनरल इंश्योरेंस के स्वास्थ्य प्रमुख भास्कर नेरूरकर कहते हैं कि जीआईसी की ओर से जारी की गईं दरों में 650 रुपए प्रति किट की दर से सामान्य मरीज के लिए रोजाना तीन पीपीई किट और आईसीयू में भर्ती मरीजों के लिए चार पीपीई किट कवर की गई हैं। जबकि, किल्लत के चलते कंज्यूमेबल्स की वास्तविक कीमतें इससे ज्यादा थीं। 

इसी तरह, कई लोगों को बेड के लिए लंबी दूरी तय करने के लिए मजबूर किया गया, लेकिन प्लान के तहत ट्रांसपोर्टेशन कवर नहीं था। एक उदाहरण ओडिशा का है, जहां संक्रमण की चपेट में आए कम से कम 30 युवाओं ने दम तोड़ दिया, क्योंकि राज्य में एक्स्ट्राकोर्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सीजनेशन (एकमो) ट्रीटमेंट मशीन की कमी थी। पूरे प्रदेश में सिर्फ एक निजी अस्पताल में ही यह मशीन उपलब्ध थी। डॉक्टरों ने बताया कि इसके चलते मरीजों को इलाज के लिए हवाई मार्ग से दूसरे राज्यों में ले जाना पड़ा, यह काफी खर्चीला था। एक मरीज के लिए पहले एकमो कनेक्शन में 10 लाख रुपए खर्च होते हैं और बाद में इसमें 3 लाख रुपए प्रतिदिन का खर्च आता है। मरीजों को एयरलिफ्ट करने में लाखों रुपए खर्च हुए।

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