रिपब्लिकन पार्टी से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के दावेदार विवेक रामास्वामी समर्थन प्राप्त करने के अपने असफल प्रयास के दौरान जितनी सुर्खियां नहीं बटोर पाये थे, उतनी वे अब प्राप्त कर रहे हैं।
अपने अभियान के असफल होने के बाद रामास्वामी का डोनाल्ड ट्रम्प का समर्थन करने का निर्णय उनकी उसी सूझबूझ को दर्शाता है, जिसके लिए वे निवेश जगत में प्रसिद्ध हैं।
नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रम्प ने भारतीय मूल के इस फार्मा निवेशक को एलन मस्क के साथ संघीय नौकरशाही ढांचे में कटौती करने की पहल के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया है।
रामास्वामी के लिए सरकारी दक्षता विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी, डीओजीई) का नेतृत्व मिलना अत्यंत लाभकारी पुरस्कार है: उन्हें संघीय एजेंसियां पसंद नहीं हैं और वे शिक्षा विभाग और एफबीआई को बंद करने के अलावा फेडरल रिजर्व का व्यापक पुनर्गठन करने की इच्छा रखते हैं, लेकिन उनका मुख्य लक्ष्य फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) है, जोकि संघीय दवा नियामक है और उस समय से उनके निशाने पर है जब से उन्होंने अपनी दवा निर्माण कंपनी रोइवेंट साइंसेज की स्थापना की थी और इसकी बहुप्रचारित दवा एफडीए मानकों पर सफल नहीं हो पाई थी।
रामास्वामी और एफडीए के प्रति उनकी गहरी नफरत की कहानी फार्मा निर्माण को लेकर उनके व्यावसायिक दृष्टिकोण से जुड़ी हुई है। वह खुद को बायोटेक्नोलॉजी क्षेत्र के एक वैज्ञानिक के रूप में पेश करते हैं, हालांकि वह कोई वैज्ञानिक नहीं हैं, और उनके पास सिर्फ जीवविज्ञान में अंडरग्रेजुएट की डिग्री है।
उनकी ग्रेजुएट डिग्री कानून में है और उन्होंने अपना करियर एक हेज फंड कंपनी से शुरू किया, जहां उन्होंने बायोटेक निवेश के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल की। ऐसा लगता है कि उनका अपना खुद का फार्मा उद्यम स्थापित करने के विचार को यहीं से बढ़ावा मिला था।
उनका मॉडल सरल था: फार्मा कंपनियों द्वारा छोड़ी गई दवाओं के पेटेंट के लिए वेब को खंगालना, पेटेंट खरीदना (ये बहुत कम कीमत पर मिल सकते थे ) और उन्हें विकसित करना और बाजार में उतारना ताकि खूब पैसा कमाया जा सके।
यह मॉडल काफी हद तक मार्टिन श्क्रेली जैसा ही था, जिसके बारे में हमने लगभग पांच साल पहले लिखा था।
श्क्रेली भी एक हेज फंड मैनेजर थे, जो रेट्रोफिन और ट्यूरिंग फार्मास्यूटिकल्स जैसी दवा कंपनियों के सह-संस्थापक थे और परजीवी संक्रमण के इलाज के लिए प्रयोग किये जानेवाले पाइरीमेथामाइन की कीमत में अंधाधुंध वृद्धि करने के लिए कुख्यात हुए थे।
श्क्रेली ने दवा के अधिकार बहुत कम कीमत पर खरीदे और उसकी कीमत में 5,000 प्रतिशत की बढ़ोतरी करदी। व्यवसाय कुशल रामास्वामी ने भी कुछ ऐसा ही किया, लेकिन उन्होंने और अधिक जोखिम उठाते हुए, एक ऐसी दवा का प्रचार किया जिसे अभी मंजूरी भी नहीं मिली थी।
उन्होंने 2015 में केवल 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर में इंटेपिरडाइन के पेटेंट अधिकार खरीद लिए। यह एक प्रायोगिक दवा थी जिसे अंतिम नैदानिक परीक्षणों के विफल होने के बाद जीएसके (ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन) ने छोड़ दिया था।
इसे रोइवेंट के माध्यम से खरीदा गया था, लेकिन इंटेपिरडाइन को रोइवेंट की सहायक कंपनी एक्सोवेंट को बेच दिया गया था। बायोटेक उद्योग में, जो अटकलों और बड़े रिटर्न के वादे पर फलता-फूलता है, रामास्वामी एक्सोवेंट के लिए उद्योग के इतिहास में सबसे बड़ी आरंभिक सार्वजनिक पेशकश हासिल करने में सफल हुए थे।
इंटेपिरिडिन विफल हो गया और एक्सोवेंट के शेयर मूल्य में भारी गिरावट आई, लेकिन उसके पहले ही इसके प्रमोटर ने अपना मुनाफा निकाल लिया था । इसके अलावा, उन्होंने एक्सोवेंट के मूल्यवान हिस्सों को एक जापानी कंपनी को बेचकर और पैसे बनाये।
पिछले दो वर्षों के अपने राजनीतिक अभियान के दौरान वे पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ईपीए) से लेकर एफडीए और अन्य सभी संघीय नियामक निकायों पर तीखे हमले करते रहे हैं। मस्क और रामास्वामी का मानना है कि बजट में कमी और मानव संसाधनों में 75 प्रतिशत की कटौती से व्यवसायों को अधिक स्वतंत्र रूप से और अधिक लाभप्रद रूप से काम करने का अवसर प्राप्त होगा ।
विशेष रूप से उनके अपने व्यवसायों को, जहां क्लीनिकल ट्रायल के एफडीए के नियमों का रामास्वामी की कंपनी पर असर पड़ता है, तो वहीं मस्क की इलेक्ट्रिक वाहन कंपनी टेस्ला ईपीए नियमों का उल्लंघन कर रही है।
इस फार्मा उद्यमी की एफडीए से क्या शिकायत है? इस एजेंसी ने रोइवेंट की कम से कम छह दवाओं को मंजूरी दी है और इसके बाजार पूंजीकरण को 9 बिलियन डॉलर तक बढ़ाने में भरपूर मदद की है।
फार्मा के कुछ अंदरूनी जानकारों के अनुसार, रामास्वामी का एफडीए पर हमला पाखंडपूर्ण और खतरनाक है, क्योंकि उनकी 1 बिलियन डॉलर की निजी संपत्ति एफडीए द्वारा अनुमोदन के बल पर ही इकट्ठा हुई थी।
वहीं दूसरों ने नियामक एजेंसी द्वारा प्रदान की गई सुरक्षा के महत्व पर जोर दिया है। इसके बावजूद दवाएं खतरनाक साबित हुई हैं, उदाहरण के तौर पर मर्क की दर्द निवारक दवा वायोक्स जिसे दिल के दौरे आने की शिकायत के कारण वापस लेना पड़ा। यदि कोई नियामक विकास पर नज़र नहीं रखेगा तो हानिकारक दवाएं बाज़ार में आती रहेंगी।
सबसे ज्यादा उद्धृत मामला थैलिडोमाइड का है - इस मामले में जिन बच्चों की माताओं ने गर्भावस्था के दौरान मतली को नियंत्रित करने के लिए यह दवा ली थी, वे बच्चे जन्मजात दोषों के साथ पैदा हुए थे ।
इस बात का श्रेय एफडीए को जाता है कि उसने मॉर्निंग सिकनेस के लिए थैलिडोमाइड को मंजूरी देने से दृढ़ता से इनकार कर दिया, भले ही इसे अन्य विकसित देशों में बेचा जा रहा था । अमेरिका में इसका विपणन करने वाली कंपनी रिचर्डसन-मेरेल ने छह बार एफडीए से मंजूरी मांगी और हर बार उसे मना कर दिया गया।
थैलिडोमाइड मामले ने कांग्रेस को एफडीए को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने के लिए प्रेरित किया कि निर्माता अपनी दवाओं की सुरक्षा और प्रभावशीलता दोनों को प्रदर्शित करें।
एफडीए द्वारा निर्धारित कई नियमों को श्रमसाध्य और समय लेने वाला माना जा सकता है, लेकिन वे नैदानिक परीक्षणों की नकल करने की मांग करते समय इन दो नियमों को ध्यान में रखते हैं। इसका सीधा कारण यह सुनिश्चित करना है कि लोग अप्रमाणित और अप्रभावी दवाएँ न खरीदें - जैसे कि रोइवेंट की इंटेपिरिडीन पूरी तरह से परीक्षण के बिना हो सकती थी।
हालाँकि, रामास्वामी ने एजेंसी पर भ्रष्टाचार और अपनी आवश्यकताओं के माध्यम से दवा विकास की लागत में अनावश्यक रूप से वृद्धि करने का आरोप लगाया है। एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर हाल ही में किये एक पोस्ट में, उन्होंने कहा कि उनकी मुख्य चिंता यह है कि एफडीए एक के बजाय दो चरण-3 अध्ययनों की मांग करके और अन्य देशों से वैध नैदानिक परिणामों को स्वीकार करने से इनकार करके "नवाचार के लिए अनावश्यक अवरोध खड़ा करता है"।
उनका तर्क है कि इससे रोगियों की "आशाजनक उपचार" तक पहुंच में बाधा आती है और प्रतिस्पर्धा में बाधा उत्पन्न होने से दवा की लागत भी बढ़ जाती है।
उन्होंने एफडीए कर्मचारियों पर "नई चिकित्सा विकसित करने की लागत पर उनके दैनिक निर्णयों से होनेवाले प्रभाव के प्रति लापरवाही बरतने का आरोप लगाया, जिसका बोझ अनिवार्य रूप से स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर पड़ता है"।
यह आक्षेप करते हुए वे इस बात को चालाकी से से नजरअंदाज कर देते हैं कि दवाओं के मूल्य निर्धारण में एफडीए की कोई भूमिका नहीं है। नई तकनीकें हासिल करने और वैसी छोटी बायोटेक कंपनियां, जो वास्तव में फार्मा के क्षेत्र में खोजें कर रही हैं- उनसे आशाजनक उपचार प्राप्त करने में उन्हें कितना खर्च करना पड़ता है, इन सबको ध्यान में रखकर दवा कंपनियां मूल्य निर्धारित करती हैं।
दवा मूल्य निर्धारण की वास्तविक समस्या में रोइवेंट के प्रमोटर को कोई दिलचस्पी नहीं है, और उन्हें दिलचस्पी लेनी भी क्यों चाहिए? कंपनी के नाम में "आरओआई" का मतलब है “ रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट", और रामास्वामी ने कंपनी की स्थापना में अपने मुख्य उद्देश्य के बारे में स्पष्ट रूप से बताया है।
फोर्ब्स को दिए गए एक साक्षात्कार में, उन्होंने घोषणा की: "यह दवा उद्योग में अब तक का सबसे अधिक निवेश पर रिटर्न देने वाला प्रयास होगा।" दवाओं के बेरोकटोक निर्माण की अनुमति मिलने से बेहतर और क्या हो सकता है? दुनिया भर के दवा निर्माता जो अमेरिकी बाजार में दवाओं के निर्यात और विपणन के लिए एफडीए नियमों के अधीन हैं, खासकर भारतीय जेनेरिक कंपनियां, यह देखने के लिए अपनी सांस रोके हुए हैं कि रामास्वामी का डीओजीई नियामक के साथ क्या करता है।