रिसर्च से पता चला है कि कॉस्मेटिक्स जैसे उत्पादों में मौजूद फॉरएवर केमिकल्स त्वचा के जरिए शरीर में पहुंच सकते हैं। प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक 
स्वास्थ्य

सावधान! त्वचा के जरिए आपके शरीर में पैठ बना सकते हैं फॉरएवर केमिकल्स

दुनिया भर में 12,000 से ज्यादा तरह के फॉरएवर केमिकल्स के मौजूद होने की पुष्टि हो चुकी है। यह ऐसे केमिकल्स हैं, जो पर्यावरण और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं

Lalit Maurya

एक नई शोध से पता चला है कि उद्योगों और दैनिक उपभोक्ता उत्पादों में पाए जाने वाले कई फॉरएवर केमिकल त्वचा के माध्यम से रक्त में प्रवेश कर सकते हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि इन फॉरएवर केमिकल्स का उपयोग पानी और दागों को दूर रखने की अद्भुत क्षमता के कारण उद्योगों के साथ-साथ कई उपभोक्ता उत्पादों जैसे वाटरप्रूफ कपड़ों, स्कूल यूनिफॉर्म और व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों में किया जाता है। वैश्विक स्तर पर कुछ फॉरएवर केमिकल्स पर सरकारों ने प्रतिबंध लगा दिया है, लेकिन कई ऐसे फॉरएवर केमिकल्स हैं जिनका अभी भी उपयोग हो रहा है। हालांकि, यह फॉरएवर केमिकल्स हमारे स्वास्थ्य को कितनी हद तक प्रभावित कर सकते हैं, इस बारे में अब तक पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं है।

बता दें कि पर-एंड पॉली-फ्लोरो अल्काइल सब्स्टेंसेस (पीएफएएस) मानव निर्मित, रासायनिक यौगिकों का एक समूह है, जो बहुत धीमी गति से पर्यावरण में विघटित होते हैं। इसके कारण यह विषैले केमिकल्स बेहद लम्बे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं। यही वजह है कि इन हानिकारक केमिकल्स को 'फॉरएवर केमिकल्स' के नाम से भी जाना जाता है।

इससे पहले किए गए अध्ययनों में भी इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि यह हानिकारक केमिकल्स इंसानों द्वारा ली जा रही सांस या पीने के पानी के जरिए शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक शरीर में प्रवेश करने के बाद यह विषैले पदार्थ लिवर में गड़बड़ी, जन्म के समय कम वजन जैसी स्वास्थ्य से जुड़ी अन्य समस्याओं को जन्म दे सकते हैं। इतना ही नहीं इनकी वजह से टीकों की मदद से पैदा होने वाली प्रतिरक्षा पर भी असर पड़ता है।

अब तक यही माना जाता रहा कि यह फॉरएवर केमिकल्स त्वचा को भेद शरीर में प्रवेश नहीं कर सकते। लेकिन इस नए अध्ययन में पुष्टि हो चुकी है कि यह केमिकल्स त्वचा की बाधा को पार कर सकते हैं। हालांकि हाल में किए कुछ अध्ययनों में रक्त और दूध में मौजूद इन केमिकल्स और व्यक्तिगत देखभाल में किए जाने वाले उत्पादों के बीच सम्बन्ध पाया गया है। वहीं यह नया अध्ययन अब तक का सबसे व्यापक अध्ययन है, जिसमें पुष्टि की गई है कि यह जहरीले केमिकल्स त्वचा के जरिए शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।

इस अध्ययन के नतीजे जर्नल एनवायरनमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित हुए हैं।

जर्नल एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में शोधकर्ताओं को एंटी-फॉगिंग स्प्रे में बड़े पैमाने पर यह हानिकारक केमिकल्स मिले थे। जो पर्यावरण के साथ-साथ स्वास्थ्य को भी गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं। हाल ही में बैंड-एड जैसे कई जाने-माने ब्रांड के बैंडेज में भी जहरीले फॉरेवर केमिकल मिले थे। इसी तरह वैज्ञानिकों को दुनिया भर में इस्तेमाल होने वाली फूड पैकेजिंग में 68 तरह के 'फॉरएवर केमिकल्स' की मौजूदगी के सबूत मिले थे।

12,000 से ज्यादा तरह के फॉरएवर केमिकल्स की हो चुकी है पुष्टि

अब तक दुनिया भर में 12,000 से ज्यादा तरह के फॉरएवर केमिकल्स के मौजूद होने की पुष्टि हो चुकी है। देखा जाए तो यह ऐसे केमिकल्स हैं, जो पर्यावरण और स्वास्थ्य को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकते हैं। यहां तक की बहुत ज्यादा समय तक इनके संपर्क में रहने से कैंसर तक का खतरा पैदा हो सकता है।

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अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 17 अलग-अलग तरह के फॉरएवर केमिकल्स की जांच की है। इन केमिकल्स को जांच के लिए इसलिए चुना गया क्योंकि इनका बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। साथ ही इनके प्रभावों और कैसे यह केमिकल्स इंसानों के संपर्क में आ सकते हैं उनका भी अध्ययन किया गया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि सुरक्षित पेयजल के मद्देनजर इन केमिकल्स को लेकर यूरोपियन यूनियन ने नियम भी बनाए हैं।

शोधकर्ताओं ने पाया है कि परीक्षण किए गए 17 में से 15 पीएफएएस त्वचा के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। इनमें से 13.5 फीसदी पीएफओए केमिकल्स भी शामिल थे जो रक्त तक में पहुंच गए। वहीं पीएफओए की 38 फीसदी मात्रा त्वचा में प्रवेश कर गई थी कि मतलब की वो आगे चलकर रक्त में प्रवेश कर सकते हैं।

रिसर्च के मुताबिक इनकी शरीर में इनकी कितनी मात्रा पहुंच सकती है, यह मॉलिक्यूल में कार्बन श्रृंखला की लंबाई पर निर्भर करता है। लंबी कार्बन श्रृंखला वाले केमिकल कम अवशोषित होते हैं, जबकि छोटी श्रृंखला वाले रसायन, जो पीएफओए जैसी लम्बी श्रृंखलाओं की जगह लेते हैं, वो त्वचा के जरिए कहीं ज्यादा आसानी से शरीर में पहुंच सकते हैं। उदाहरण के लिए परफ्लुओरो पेन्टानोइक एसिड 59 फीसदी अवशोषित हुआ था, जो पीएफओए से चार गुणा अधिक है।

अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर मोहम्मद अब्दुल्ला ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि, "यह समझना कितना महत्वपूर्ण है कि ये हमेशा बने रहने वाले केमिकल कैसे त्वचा के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। चूंकि अलग-अलग तरह के बहुत सारे पीएफएएस केमिकल हैं, इसलिए भविष्य के अध्ययनों में  किसी एक समय पर न केवल एक केमिकल बल्कि इन हानिकारक केमिकल्स की एक विस्तृत श्रृंखला से होने वाले जोखिमों को देखना महत्वपूर्ण है।