स्वास्थ्य

चेन्नई शहर में सूखी मछलियों में जहरीले रसायन पाए गए, स्वास्थ्य के लिए खतरनाक: अध्ययन

Dayanidhi

हम जिस 'करुवडु' या सूखी मछली की करी के स्वाद की तारीफ करते नहीं थकते हैं, वह फायदे से ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है। एक नए अध्ययन से पता चलता है कि चेन्नई शहर के विभिन्न हिस्सों से ली गई लगभग 22 प्रकार की सूखी मछलियों में भारी मात्रा में हानिकारक रसायन पाए गए हैं।

अध्ययन के हवाले से शोधकर्ताओं ने पाया है कि 17 स्थानों से ली गई 22 प्रकार की सूखी मछलियों में कैडमियम, सीसा और कोबाल्ट का भारी मात्रा में पाया जाना चिंताजनक है। मछलियों में सीयर मछली, सार्डिन, क्योर ट्यूना, एन्कोवीज, मालाबार एन्कोवीज और अन्य लोकप्रिय किस्में शामिल हैं।

द न्यू कॉलेज के प्राणीशास्त्र विभाग के अध्ययन के अनुसार, सूखी मछली के अत्यधिक सेवन से कैंसर का खतरा हो सकता है।

एनवायर्नमेंटल साइंस एंड पोल्लुशण रिसर्च नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन, जिसका शीषर्क 'भारत में तमिलनाडु राज्य के चेन्नई शहर में सूखी मछली की खपत के कारण मानव स्वास्थ्य पर जोखिम मूल्यांकन: एक आधारभूत रिपोर्ट' है।

अध्ययन में पाया गया कि सूखी मछली में सीसे का स्तर 32.85  मिलीग्राम प्रति किलोग्राम से 42.09 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम पाया गया, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित अनुमेय सीमा 2.17 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम है।

सूखी मछली में कैडमियम का स्तर 2.18 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम से 3.51 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम तक था, जबकि डब्ल्यूएचओ की सुरक्षित सीमा 0.05 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम है। कोबाल्ट की सांद्रता भी 1.13 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम की सुरक्षित सीमा से अधिक थी। यह 2.95 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम और 9.55 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम के बीच था।

अध्ययन के हवाले से द न्यू कॉलेज में प्राणीशास्त्र के सहायक प्रोफेसर मोहम्मद सैय्यद मुस्तफा ने कहा कि, चेन्नई में ताजी मछली में मौजूद भारी धातुओं और माइक्रोप्लास्टिक्स पर पहले भी अध्ययन हो चुके हैं। हम यह जांचना चाहते थे कि क्या सूखी मछली में भी भारी धातुएं हैं। उन्होंने कहा, हमने चेन्नई में सबसे ज्यादा खपत होने वाली सूखी मछली को चुना। सूखी मछली मछुआरों और समुद्र के पास रहने वाले लोगों का मुख्य भोजन है।

उन्होंने कहा, उच्च स्तर के हानिकारक रसायनों की मौजूदगी समुद्री प्रदूषण के कारण है। उत्तरी चेन्नई में समुद्र में ई-कचरा भी डाला जाता है, जिसमें कैडमियम और सीसा घटक होते हैं।

पर्यावरण इंजीनियर और इको सोसाइटी के संस्थापक डार्विन अन्नादुराई ने कहा कि, ये भारी धातु घटक फाइटोप्लांकटन पर जमा हो जाते हैं, जिसे ज़ोप्लांकटन खाते हैं, जबकि छोटी मछलियां फाइटोप्लांकटन को खाती हैं। तो, खाद्य श्रृंखला में अंतिम जानवर के ऊतकों में भारी धातुओं की मात्रा बढ़ जाती है। यदि हम भारी धातु से दूषित मछली खाते हैं, तो धातु की मात्रा हमारे शरीर में बढ़ जाएगी, जिससे विषाक्तता या कैंसर हो सकता है।

अध्ययनकर्ता, मोहम्मद सैय्यद मुस्तफा ने कहा कि, प्रदूषण का एक अन्य कारण ताजी मछली को ठीक करने में खराब गुणवत्ता वाले नमक का उपयोग भी है। डार्विन ने कहा कि खाद्य सुरक्षा विभाग द्वारा ताजी और सूखी मछली का लगातार नमूना लिया जाना चाहिए।