स्वास्थ्य

संसद में आज: केरल के अट्टापडी आदिवासी बस्तियों में 121 से अधिक बच्चों की मौत

23,245 गांवों को ठोस अपशिष्ट प्रबंधन तथा 8,159 गांवों को तरल अपशिष्ट प्रबंधन व्यवस्था से कवर किया गया है

Madhumita Paul, Dayanidhi

जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने पिछले आठ वर्षों में केरल के अट्टापदी आदिवासी बस्तियों में 121 से अधिक बच्चों की मौत पर हालिया समाचारों के आधार पर केरल राज्य से एक विस्तृत तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी है। इस बात की जानकारी आज जनजातीय मामलों की राज्य मंत्री रेणुका सिंह सरुता ने लोकसभा में दी  उन्होंने कहा  कि केरल राज्य के अट्टापदी में इस तरह की मौतों और आदिवासी बच्चों में कुपोषण के कारणों की जांच करने के लिए कहा गया है।

केरल सरकार द्वारा से प्राप्त जानकारी के मुताबिक आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से सभी गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं, किशोर लड़कियों और शिशुओं को पौष्टिक भोजन प्रदान किया जाता है। सभी शिशुओं को "अमृतम" नामक एक पोषण मिश्रण भी वितरित किया जा रहा है। सरुता ने कहा कि इनके अलावा जरूरतमंद आदिवासियों को पका भोजन उपलब्ध कराने वाला सामुदायिक रसोई और अनुसूचित जनजाति विकास विभाग का खाद्य सहायता कार्यक्रम भी विशेष पैकेज के रूप में है।

अट्टापडी में 231 गर्भवती एसटी महिलाओं में से 16 सिकल सेल एनीमिक रोगी हैं। अनुसूचित जनजाति विकास विभाग द्वारा गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को लक्षित एक कार्यक्रम "जननी जन्म रक्षा" को पूरा करने के लिए 18 महीने (गर्भावस्था के तीसरे महीने से 1 वर्ष तक के बच्चे तक) के लिए 2000 / - रुपये प्रति माह की वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए कार्यान्वित किया जा रहा है। 

प्लास्टिक का कचरा

वर्ष 2019-20 के दौरान देश में प्लास्टिक कचरे का उत्पादन 34.69 लाख टन प्रति वर्ष (टीपीए) था , जिसमें से लगभग 15.8 लाख टीपीए प्लास्टिक कचरे को पुनर्नवीनीकरण किया जाता है और 1.67 लाख टीपीए सीमेंट भट्टों में उपयोग होता है। यह आज केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने लोकसभा में बताया। उन्होंने कहा असंसाधित और प्लास्टिक कचरे का एक हिस्सा नदियों जैसे सतही अपशिष्ट निकायों के माध्यम से समुद्र में मिल सकता है।

यादव ने कहा कि जहां तक प्लास्टिक कैरी बैग का संबंध है, प्लास्टिक कचरा प्रबंधन संशोधन नियम, 2021, 30 सितंबर, 2021 से पचहत्तर माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक कैरी बैग के निर्माण, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध है। 31 दिसंबर, 2022 से एक सौ बीस माइक्रोन की मोटाई से कम मोटाई वाले, प्लास्टिक पर प्रतिबंध है।

वायु, जल और मृदा प्रदूषण

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने लोक सभा में बताया कि थर्मल पावर प्लांटों द्वारा उत्पन्न फ्लाई ऐश के अवैज्ञानिक निपटान और प्रबंधन से हवा, पानी और मिट्टी के प्रदूषण के संबंध में, सरकार के साथ संगठनों द्वारा किए गए किसी भी हालिया अध्ययन की कोई रिपोर्ट नहीं है।

वर्तमान में, देश में 179 ताप विद्युत संयंत्रों ने वर्ष 2020-21 के दौरान 222.8 मिलियन टन फ्लाई ऐश उत्पन्न हुआ है और 205.1 मिलियन टन विभिन्न उद्देश्यों में उपयोग किया गया है। यादव ने कहा कि वित्त वर्ष 2020-21 में मौजूदा फ्लाई ऐश का उपयोग 92 फीसदी है। 

सबसे प्रदूषित शहर

विभिन्न मापदंडों की जटिलता और अलग-अलग शहरों की वायु गुणवत्ता पर उनके प्रभाव के कारण वायु गुणवत्ता के आधार पर शहरों की रैंकिंग नहीं की जाती है। हालांकि, वायु गुणवत्ता के आधार पर 124 शहरों की पहचान गैर-प्राप्ति शहरों के रूप में की जाती है, यानी वे शहर जो राष्ट्रीय परिवेश वायु गुणवत्ता मानकों से अधिक हैं, उनकी लगातार पांच वर्षों तक निगरानी की जाती है, यह आज केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे, ने लोकसभा को बताया।

132 शहरों के परिवेशी वायु गुणवत्ता के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि 96 शहरों में वार्षिक औसत पीएम10 की एकाग्रता में कमी की प्रवृत्ति दिखाई दी और 36 शहरों में 2019-2020 की तुलना में 2020-2021 में बढ़ती प्रवृत्ति दिखाई दी। चौबे ने कहा कि 18 शहरों को 2019-20 में निर्धारित राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (पीएम10 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से कम) के भीतर पाया गया, जो वर्ष 2020-21 में बढ़कर 27 हो गया है।

इस्पात संयंत्रों से कार्बन उत्सर्जन में कमी

सर्वोत्तम उपलब्ध प्रौद्योगिकियों (बीएटी) को व्यापक रूप से अपनाने के साथ, इस्पात संयंत्रों ने अपनी विशिष्ट ऊर्जा खपत को काफी हद तक कम कर दिया है जिससे कार्बन उत्सर्जन तीव्रता में काफी कमी आई है।

भारतीय इस्पात उद्योग की औसत सीओ2 उत्सर्जन तीव्रता 2005 में 3.1 टी /टीसीएस से घटकर 2020 तक लगभग 2.6  टी /टीसीएस हो गई है और 2030 से पहले 2.4  टी /टीसीएस के अनुमानित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए यह सही दिशा में है, यह आज इस्पात मंत्री रामचंद्र प्रसाद सिंह ने राज्यसभा में बताया।

स्टॉर्म जल निकासी परियोजना

आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने पहले ही अमृत मिशन की पूरी अवधि के लिए 77,640 करोड़ रुपये (35,990 करोड़ रुपये की प्रतिबद्ध केंद्रीय सहायता सहित) की सभी राज्य वार्षिक कार्य योजनाओं (एसएएपी) को मंजूरी दे दी है, जिसमें से 2,969 करोड़ रुपये स्टॉर्म जल निकासी क्षेत्र को (4 फीसदी) आवंटित किया गया है।

आवास और शहरी मामलों के मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने राज्यसभा में बताया कि 19 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने 2,957 करोड़ रुपये की 801स्टॉर्म जल निकासी की परियोजनाएं शुरू की हैं।

 पुरी ने कहा कि इनमें से 1,114 करोड़ रुपये की 612 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं, 1,829 करोड़ रुपये की 187 परियोजनाएं कार्यान्वयन के अधीन हैं और 14 करोड़ रुपये की दो परियोजनाएं निविदा चरण में हैं।

एसबी एम-2.0 के माध्यम से अपशिष्ट और जल प्रबंधन

एसबीएम (जी) 2.0 के तहत, जो 2020-21 से 2024-25 तक लागू है, खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) स्थिति को बनाए रखने और सभी गांवों में ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन (एसएलडब्ल्यूएम) की व्यवस्था करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। यानी गांवों को ओडीएफ से ओडीएफ प्लस में बदलने के लिए यह किया गया है, यह आज  जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने राज्यसभा में बताया।

जैसा कि राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों क्षेत्रों द्वारा प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार  लगभग 2 लाख गांवों में एसएलडब्ल्यूएम गतिविधियां पहले ही शुरू की जा चुकी हैं। शेखावत ने कहा कि 23,245 गांवों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन व्यवस्था को कवर किया गया है  वहीं  8,159 गांवों को तरल अपशिष्ट प्रबंधन व्यवस्था से कवर किया गया है।