कोविड-19 महामारी का यह दौर किसी के लिए बुरे सपने जैसा है, तो किसी के लिए वरदान से कम भी नहीं। एक तरफ जहां दुनिया की एक बड़ी आबादी अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए भी जद्दोजहद कर रही है, वहीं दूसरी तरफ दुनिया के 10 सबसे अमीर लोगों की सम्पति पिछले दो वर्षों में दोगुनी हो चुकी है।
इस बारे में हाल ही में अंतराष्ट्रीय संगठन ऑक्सफेम द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट “इनक्वॉलिटी किल्स” के हवाले से पता चला है कि पिछले दो वर्षों में जहां दुनिया के 10 सबसे अमीरजादों की सम्पति करीब 52 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 111.4 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गई है। इसका मतलब है कि उनकी सम्पति 11.1 लाख रुपए प्रति सेकंड की दर से बढ़ रही है। या फिर इस तरह भी कह सकते हैं कि उनकी सम्पति में हर दिन 9,656 करोड़ रुपए का इजाफा हो रहा है।
यह सम्पति कितनी है इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि यदि यह 10 धनकुबेर हर रोज 743 लाख रुपए (दस लाख डॉलर) भी खर्च करते हैं तो इन्हें अपनी कुल सम्पति को खर्च करने में 414 साल लगेंगे। महामारी के शुरुआत से हर 26 घंटे में एक नया अरबपति पैदा हो रहा है।
वहीं इस दौरान दुनिया की 99 फीसदी आबादी की आय में कमी दर्ज की गई थी। कुछ के लिए हालात तो इतने बुरे हैं कि वो नहीं जानते की अगले दिन उनके बच्चों को रोटी नसीब होगी या नहीं। स्थिति यह है कि इस महामारी के चलते और 16 करोड़ लोगो गरीबी की मार झेलने को मजबूर हो गए हैं। असमानता की यह खाई सिर्फ लोगों के बीच में ही नहीं बल्कि देशों के बीच भी है।
असमानता की नहीं कोई वैक्सीन
ऑक्सफैम इंटरनेशनल की कार्यकारी निदेशक गैब्रिएला बुचर ने बताया कि, “अगर यह दस लोग कल अपनी संपत्ति का 99.999 फीसदी हिस्सा खो भी देते है तो भी वो धरती के 99 फीसदी लोगों से ज्यादा अमीर होंगे। “देखा जाए तो उनके पास दुनिया के 310 करोड़ लोगों की कुल सम्पति की तुलना में छह गुना अधिक संपत्ति है।
इतना ही नहीं रिपोर्ट के अनुसार अमीर गरीब के बीच की यह खाई कितनी बड़ी है इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि 1995 से लेकर दुनिया के एक फीसदी सबसे अमीर वर्ग के पास सबसे गरीब 50 फीसदी आबादी की तुलना में 20 गुना अधिक संपत्ति है। इसी तरह 252 लोगों के पास इतनी दौलत है जो दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और कैरेबियन में रहने वाली 100 करोड़ महिलाओं और बच्चियों की संपत्ति से भी ज्यादा है।
दुर्भाग्य की बात है कि यह असमानता हर चार सेकंड में होने वाली मौत के लिए भी किसी न किसी रूप में जिम्मेवार है। अनुमान है कि यह असमानता किसी न किसी रूप में हर दिन होने वाली 21,300 मौतों के लिए जिम्मेवार है। गौरतलब है कि इस महामारी की वजह से अब तक करीब 1.7 करोड़ लोग मारे जा चुके हैं। दूसरे विश्व युद्ध के बाद से इतने बड़े पैमाने पर मानव जीवन की क्षति नहीं हुई है। इनमें से लाखों अभी भी जीवित होते यदि उनके पास वैक्सीन उपलब्ध होती।
कहीं हद तक इस असमानता के चलते लोगों के मन में आक्रोश भी बढ़ता जा रहा है यही वजह है कि पिछले 15 वर्षों में दुनिया भर में तीन गुना ज्यादा विरोध आंदोलन हुए हैं। सभी क्षेत्रों में इन आंदोलनों में वृद्धि देखी गई है। इनमें भारत में किसानों द्वारा किया विरोध भी शामिल है जोकि अब तक के सबसे बड़े विरोध आंदोलनों में से एक था।
बदलती जलवायु के लिए जिम्मेवार कौन
बात सिर्फ संपत्ति तक ही सीमित नहीं है यदि पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से देखें तो यह अमीर वर्ग कहीं ज्यादा प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहा है। अनुमान है कि 20 सबसे अमीर अरबपति गरीब तबके के 100 करोड़ लोगों की तुलना में औसतन 8,000 गुना अधिक कार्बन उत्सर्जित कर रहे हैं।
समस्या यह नहीं है कि वो अमीर क्यों हैं और इतना जल्दी इतना अमीर कैसे बन जाते हैं। पर समस्या तब जरूर होती है जब दुनिया के कमजोर देशों में हर साल 56 लाख लोग बिना इलाज के मर जाते हैं। देखा जाए तो बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं और देखभाल एक मानव अधिकार है, लेकिन यह एक लक्ज़री बन चुका है।
रिपोर्ट में ब्राजील के साउ पाउलो का एक उदाहरण दिया गया है जिसके अनुसार जहां दौलत आपके लिए बेहतर स्वास्थ्य और लम्बी उम्र भी खरीद सकती है। अनुमान है कि वहां गरीब क्षेत्रों की तुलना में अमीर इलाकों में रहने वालों लोगों की जीवन प्रत्याशा 14 वर्ष ज्यादा है।
वहीं खाने की कमी हर साल कम से कम 21 लाख लोगों की जान ले लेती है। जब पिछड़े देशों में 2030 तक जलवायु संकट हर साल 231,000 लोगों की जान लेने वाला हो तो हमें इस बारे में फिर से सोचने की जरुरत है।
इस महामारी के दौर में भी दुनिया के 2,755 अरबपतियों की संपत्ति में इजाफा हुआ है। यह इजाफा भी को छोटा मोटा नहीं इतना है जितना उन्हें पिछले 14 वर्षों में भी नहीं हुआ था। ऐसे में सवालों का उठना तो लाजिमी ही है। इस रिपोर्ट में भारत के अरबपति गौतम अडानी का भी जिक्र किया गया है, जिनकी सम्पति महामारी के दौरान आठ गुना बढ़ गई है। जिन्हें अपने जीवाश्म ईंधन आधारित व्यापार से काफी फायदा हुआ है।
यदि आपदा के दौर में इस अमीर वर्ग की आय में एक तरफ जहां इतना इजाफा हुआ है वहीं दूसरी तरफ दुनिया की एक बड़ी आबादी अपनी रोज की जरूरतों के लिए भी संघर्ष करती है, तो कहीं न कहीं न केवल भारत बल्कि दुनिया भर में सरकारों द्वारा उठाए कदमों पर भी संदेह होता है, क्योंकि कुछ जिम्मेवारी तो शासन और प्रशासन की भी है। ऐसे में इस असमानता की खाई को भरना कितना जरुरी है उसका अंदाजा आप खुद ही लगा सकते हैं, क्योंकि यह एक ऐसी महामारी है जिसकी कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है।