स्वास्थ्य

यह हो सकता है भारत में कोविड-19 के बढ़ते मामलों के लिए जिम्मेदार वेरिएंट

नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के मुताबिक, कोरोना मामलों का बोझ ज्यादा होने के कारण भारत पांच फीसदी नमूनों का जीनोम सीक्वेंस नहीं करने जा रहा है।

Banjot Kaur

पहली बार, 23 अप्रैल, 2021 को एक वेबिनार में सरकार के शीर्षस्थ संस्थानों के प्रमुखों ने संकेत दिया कि भारत में नोवल कोरोनवायरस (सार्स कोव-2) की दूसरी लहर के पीछे इसका वेरिएंट (वायरस नया संस्करण) जिम्मेदार हो सकता है।

नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (एनसीडीसी) के निदेशक सुजीत सिंह ने कहा कि हर महीने 15-30 नमूनों की ही सीक्वेंसिंग करने का फैसला लिया गया है, क्योंकि सीक्वेंसिंग बहुत खर्चीला काम है और मामले भी बढ़ रहे हैं।

सिंह के बयान से साफ है कि सरकार ने पहले जो लक्ष्य घोषित किया था, उससे पीछे हटा जा रहा है. सरकार ने पहले कहा था कि वह कुल कोविड पॉजिटिव नमूनों के पांच प्रतिशत हिस्से की सीक्वेंसिंग की जाएगी।

वेबिनार में सिंह ने बताया कि सार्स-कोव-2 का भारतीय वेरिएंट ‘B.1.617 वंशावली (लीनिएज)’ से जुड़ा है, जो देश के 13 राज्यों के 732 लोगों को संक्रमित कर चुका है. सिंह ने कहा कि 732 लोगों में से दो अंतरराष्ट्रीय यात्री और बाकी सभी भारतीय नागरिक हैं।

बी.1.617 लीनिएज में वायरस के स्पाइक प्रोटीन के रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन पर दो मुख्य म्यूटेशंस - एल452आर और ई484क्यू हैं। इस वेरिएंट के पास कुल 13 से ज्यादा म्यूटेशंस हैं, लेकिन ये सभी स्पाइक प्रोटीन में नहीं हैं जो वास्तव में मानव शरीर में प्रवेश पाने के लिए कोशिकाओं के साथ बंधे होते हैं। वैज्ञानिक अध्ययनों का कहना है कि ई484क्यू म्यूटेशन एंटीबॉडी के हमले से बच सकता है, जबकि एल452आर संक्रमण फैलने की दर को बढ़ा सकता है।

दूसरा वेरिएंट बी.1.1.7 लीनिएज है, जो देश भर के ज्यादातर नमूनों में पाया गया है, जिसे यूके वेरिएंट के रूप में भी जाना जाता है. यह सभी राज्यों के 1,644 नमूनों में पाया गया है।

सिंह ने कहा कि इस समय दिल्ली में कोरोना के मामलों के बढ़ने के पीछे यूके वेरिएंट हो सकता है। उन्होंने कहा, “मार्च के दूसरे हफ्ते में, यह वेरिएंट 28 फीसदी नमूनों में पाया गया था. मार्च के अंतिम सप्ताह में, यह 50 फीसदी नमूनों में मिलने लगा था.” उन्होंने आगे कहा कि दिल्ली में भारतीय वेरिएंट भी विस्तार ले रहा है. उन्होंने कहा, “दिल्ली में (कोरोना मामलों में) उछाल के पीछे स्पष्ट रूप से वेरिएंट्स वजह हैं।”

पंजाब में यूके का वेरिएंट मामलों को बढ़ा रहा है. महाराष्ट्र के मामले में, ‘भारतीय वेरिएंट’ प्रमुख कारण है. सिंह ने कहा कि यह 50 फीसदी से ज्यादा नमूनों में पाया गया है।

भारत में फैल रहे सार्स-कोव-2 के वेरिएंट्स का एक विश्लेषण.  स्रोत: एनसीडीसी 

विभिन्न राज्यों में 112 नमूनों में दक्षिण अफ्रीकी वेरिएंट और 1,757 नमूनों में ब्राजील का वेरिएंट पाया गया है। यूके का वेरिएंट 50 फीसदी ज्यादा संक्रमण फैलाने वाले हैं। यह अधिक गंभीरता नहीं रखता है। लेकिन अस्पताल में भर्ती होने और मौतों के मामलों में इजाफा अधिक गंभीरता और मारकता को बढ़ा सकता है।

ब्राजील से जुड़ा वेरिएंट टीकाकरण के बाद घटे हुए न्यूट्रलाइजेशन के साथ जुड़ा है। दक्षिण अफ्रीकी वेरिएंट भी 50 फीसदी अधिक फैलाव और वैक्सीन प्रभावकारिता को सीमित करने से जुड़ा है।

डाउन टू अर्थ ने विशेषज्ञों से पूछा कि क्या ‘भारतीय वेरिएंट’ ज्यादा तेजी से फैलने वाला और घातक है? इस सवाल का जवाब नहीं मिला। हालांकि, वायरोलॉजिस्ट शाहिद जमील ने कहा, “प्रारंभिक जानकारी से पता चलता है कि दोनों भारतीय टीके भारतीय वेरिएंट के खिलाफ काम करते हैं, हालांकि, बहुत ज्यादा शोध करने की जरूरत है।”

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने 22 अप्रैल को ट्वीट किया था कि भारत बॉयोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड का कोवैक्सिन अन्य सभी वेरिएंट के खिलाफ कारगर है, लेकिन इसके साथ कोई डेटा या विश्लेषण नहीं दिया था।  इसने यह भी कहा था कि इसके वैज्ञानिकों ने एक शोध पत्र लिखा है, जिसे “प्रकाशन के लिए भेजा गया है”। कोविशील्ड- ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका पीएलसी की ओर से विकसित टीके का भारतीय संस्करण है और यह यूके और ब्राजील वेरिएंट के खिलाफ काम करता है। लेकिन इसने दक्षिण अफ्रीकी वेरिएंट के खिलाफ सिर्फ 10 फीसदी असर ही दिखाया है।

जीनोम सीक्वेंसिंग

सीमित मात्रा में जीनोम सीक्वेंसिंग करने के लिए भारत सरकार की आलोचना की गई है। वास्तव में, अब तक, 15,133 नमूनों का ही जीनोम सीक्वेंसिंग किया गया है, जो जनवरी से अब तक सामने आए कुल पॉजिटिव मामलों के एक फीसदी से भी कम है।

एनसीडीसी के निदेशक सिंह ने कहा:

हमने अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के 100 फीसदी नमूने लेने का लक्ष्य रखा है। यह देखते हुए कि सीक्वेंसिंग बहुत खर्चीला काम है और मामलों की संख्या भी बढ़ रही है, इसलिए केवल प्रमुख प्रवेश स्थलों पर हर महीने 15-30 नमूनों का जीनोम सिक्वेंसिंग करने का फैसला लिया है। इन जगहों को पहले से चिन्हित कर लिया गया है और चिकित्सकीय रूप से गंभीर मामलों को देखने वाले अस्पतालों पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है, ताकि यह समझा जा सके कि क्या वेरिएंट रोग की गंभीरता या घातकता को भी बढ़ा रहा है।

यह जीनोम अनुक्रमण है, जो यह बताता है कि किस भौगोलिक इलाके में कौन सा वेरिएंट फैल रहा है. फिलहाल, भारत में यह काम 10 प्रयोगशालाएं कर रही हैं, जिन्हें सामूहिक रूप से एक समूह इंसाकोग बनाया है। जमील, जो इंसाकोग के सलाहकार समूह के अध्यक्ष हैं, ने बताया कि इसमें पांच और प्रयोगशालाएं शामिल होंगी।

 ‘भारतीय वेरिएंटदिसंबर में पहचान लिया गया था

इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के निदेशक, अनुराग अग्रवाल ने बताया कि ‘भारतीय वेरिएंट’ को दिसंबर 2020 में ही जीनोम सीक्वेंसिंग के दौरान देखा गया था. लेकिन तब भारत में मामलों में गिरावट आ रही थी। अग्रवाल ने कहा, “जब हम सीक्वेंस तैयार करते हैं, तब हम हर बार सैकड़ों म्यूटेशंस देखते हैं. जब महामारी में गिरावट का रुझान हो तो तब एक अज्ञात विशेषता वाले वेरिएंट या म्यूटेशन के बारे में जानकारी देने के लिए वास्तव में कोई कारण नहीं था। ”

उन्होंने कहा, ‘भारतीय वेरिएंट’ - एल452आर- के म्यूटेशंस में से एक दिसंबर में कैलिफोर्निया के मामलों में उछाल से जुड़ा था। “लेकिन दुनिया को इसकी जानकारी जनवरी-फरवरी में हो पाई. जब हमने इसे महाराष्ट्र में अन्य म्यूटेशंस के साथ जुड़ा पाया तो इसके बारे में सतर्क किया।”

अग्रवाल ने वेरिएंट की स्थिति के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा, ‘यह वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट (वीओआई) और वेरिएंट ऑफ कंसर्न (वीओसी) के बीच का है.” केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री, नीति आयोग और आईसीएमआर ने संयोगवश माना कि यह वेरिएंट केवल एक वीओआई है।

वेरिएंट ऑफ कंसर्न यानी वीओआई उसे कहते हैं जो जो बढ़ी हुई संक्रामकता का कारण है। और जो महामारी विज्ञान के फील्ड सर्वेक्षण के माध्यम से सत्यापित है। साथ ही यह ऐसा वेरिएंट है जो अस्पताल में भर्ती होने और मौत के मामले बढ़ाता है, वायरस को निष्क्रिय करने में एंटीबॉडीज की क्षमता को घटाता है, वैक्सीन के प्रभाव और रोग की पहचान को कम करता है। अन्य वेरिएंट वीओआई कहलाते हैं।

अब तक, चार वेरिएंट - यूके, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और कैलिफोर्निया को वैश्विक स्तर पर वीओसी के तौर पर मान्यता दी गई है। लेकिन भारतीय वेरिएंट पर अभी तक कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है, लेकिन अब यह आठ देशों में पाया गया है, जिसमें 70 फीसदी मामले भारत में हैं।

आरटी-पीसीआर और वेरिएंट्स

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के निदेशक प्रिया अब्राहम ने इस संभावना को नकार दिया कि आरटी-पीसीआर किट ‘भारतीय वेरिएंट’ की पहचान करने में सक्षम नहीं हैं। उन्होंने कहा कि ये किट सभी वेरिएंट्स की पहचान करने में सक्षम हैं. इसके बाद उन्होंने बताया कि ये टेस्ट गलत तरीके से निगेटिव रिपोर्ट क्यों दे रहे हैं, जैसा कि देश के विभिन्न हिस्सों से रिपोर्ट आ रही हैं. इसकी वजहों में शामिल हैं:

  • अत्यंत तनावपूर्ण स्थिति में गलत तरीके से नमूना लेना वजह हो सकता है
  • उन व्यक्तियों का नासोफेरिंजल रीजन (नाक का भीतरी हिस्सा) (स्वैब से) से नमूना लिया जाना, जिनमें रोग की शुरुआत होने के सात दिन बाद टेस्ट होता है तो जांच की संवेदनशीलता घटा सकती है. इससे गलत तरीके से निगेटिव रिपोर्ट आ सकती है।
  • गलत तरीके से नमूनों को लाने-ले जाने के दौरान जरूरी एंजाइम खराब होने का भी असर पड़ता है

अब्राहम ने कहा कि इन कारणों की वजह से टेस्ट के नतीजों में अंतर आ सकता है, जिसमें किसी भी व्यक्ति की रिपोर्ट गलत तरीके से निगेटिव आ सकती है।